नई दिल्ली: देश में आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए सार्वजनिक व्यय (पब्लिक एक्सपेंडिचर) में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए आगामी बजट में राजकोषीय घाटा लक्ष्य (फिस्कल डेफिसिट टार्गेट) में संशोधन करते हुए इसे 3.4 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है. हालांकि इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की भरपाई के लिए कर राजस्व में वृद्धि नहीं होने जा रही है.


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सूत्रों ने बताया, "हालात ऐसे हैं कि उपभोग, मांग, निवेश और पूंजी निर्माण को प्रोत्साहन की जरूरत है, लिहाजा राजकोषीय घाटे पर विचार किया जा सकता है. हालांकि गलत खर्च को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और राजकोषीय घाटे में संशोधन सुनियंत्रित होगा." वित्त वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा लक्ष्य 3.4 फीसदी रखा गया था, हालांकि वित्त वर्ष का अंतिम आंकड़ा आना अभी बाकी है. 


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बढ़ सकता है देश का व्यापार घाटा
दूसरी तरफ, उपभोग में कमी की समस्या से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने व्यापार घाटा (ट्रेड डिफिसिट) में वृद्धि एक अलग समस्या बनती जा रही है. दुनियाभर में संरक्षणवाद बढ़ने और मध्य-पूर्व के क्षेत्र में तनाव पैदा होने से भारत के व्यापारिक माल का निर्यात प्रभावित हो सकता है. भारत में 1988 के बाद से व्यापार घाटे का सिलसिला रहा है, इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, क्योंकि भारत में इसके पड़ोसी पूर्वी एशियाई देशों के विपरीत आर्थिक विकास आंतरिक उपभोग पर ज्यादा निर्भर है. 


व्यापार घाटा का दिख सकता है दोहरा असर
लेकिन व्यापार घाटा बढ़ने से इस बार अर्थव्यवस्था पर दोहरा असर पड़ेगा, क्योंकि आंतरिक उपभोग पहले से ही सुस्त पड़ा हुआ है. अप्रैल के आंकड़े से लगता है कि यह अंतर और बढ़ेगा. हालांकि, 1988 से लेकर 2018 के आंकड़े बताते हैं कि कुल मिलाकर व्यापार संतुलन जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) के प्रतिशत के रूप में काफी कम हुआ है. 


अप्रैल में आयात 4.48 फीसदी बढ़ा
भारतीय निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यक्ष मोहित सिंगला ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया, "आंकड़ों से जाहिर है कि व्यापार घाटा मुख्य रूप से मध्यवर्ती उत्पादों व कच्चे माल के आयात के कारण बढ़ा है." अप्रैल में भारत का निर्यात पिछले साल से 0.64 फीसदी बढ़कर 25.91 अरब डॉलर हो गया. जबकि आयात पिछले साल से 4.48 फीसदी बढ़कर 41.40 अरब डॉलर हो गया.