नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार (2 अगस्त) को कहा कि ओड़िशा में बिना पर्यावरण मंजूरी के परिचालन कर रही खनन कंपनियों को 2000-01 से अवैध रुप से निकाले गये लौह और मैग्नीज अयस्क के मूल्य पर 100 प्रतिशत जुर्माना राज्य सरकार को देना होगा. न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने इन वर्षों के दौरान हुई उन चूकों की पहचान के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत न्यायाधीश के मार्गदर्शन में एक विशेषज्ञ समिति बनाने का भी निर्देश दिया जिनकी वजह से राज्य में अवैध खनन हुआ. समिति अवैध खनन को रोकने के उपाय भी सुझाएगी.


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पीठ ने ऐसी गतिविधियों के फलस्वरुप पर्यावरण को पहुंचने नुकसान पर चिंता भी प्रकट की और केंद्र से राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008 पर पुनर्विचार करने को कहा. पीठ ने कहा कि यह खासकर संरक्षण और खनिज विकास के संदर्भ में यह लगभग एक दशक पुरानी है.


पीठ ने कहा कि बिना पर्यावरण या वन मंजूरी के या दोनों तरह की मंजूरियों के बिना खुदाई कर निकाले गये खनिज पर खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957, की धारा 21 (5) लागू होगी और अवैध या गैर कानूनी ढंग से निकाले गये खनिज के दाम का शत प्रतिशत की क्षतिपूर्ति खनन लीजधारक करेंगे. इसका भुगतान 31 दिसंबर तक किया जाना होगा. हालांकि एनजीओ कॉमन कॉज की सीबीआई जांच की मांग नहीं मानी गई. न्यायालय ने कहा कि तत्काल चिंता इन अवैध गतिविधि रोकना है.