Salary Hike: 15 साल के टॉप पर प्राइवेट सेक्टर का प्रॉफिट, फिर भी सिंगल डिजिट में सैलरी हाइक
Private Sector Profit: जीडीपी गिरने का प्रमुख कारण मांग में गिरावट बताया जा रहा है. कॉर्पोरेट और इकोनॉमिक मंत्रालय के चुनिंदा अधिकारियों के बीच हुई बातचीत के आधार पर सरकार के लिए उद्योग चैंबर फिक्की और क्वेस कॉर्प लिमिटेड की तरफ से रिपोर्ट तैयार की गई.
Salary Hike in Single Digit: कुछ दिन पहले मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) के आंकड़े जारी हुए तो नीति निर्माताओं के बीच इसको लेकर चिंता साफ देखी जा रही है. चिंता हो भी क्यों न, जीडीपी का आंकड़ा गिरकर दो साल के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है. कॉर्पोरेट सेक्टर में पिछले चार साल के दौरान मुनाफे में चार गुने का इजाफा हुआ है. इसके बावजूद सिंगल डिजिट की इनकम ग्रोथ जीडीपी के लिए चिंताजनक है. जीडीपी गिरने का प्रमुख कारण मांग में गिरावट बताया जा रहा है. कॉर्पोरेट और इकोनॉमिक मंत्रालय के चुनिंदा अधिकारियों के बीच हुई बातचीत के आधार पर सरकार के लिए उद्योग चैंबर फिक्की और क्वेस कॉर्प लिमिटेड की तरफ से रिपोर्ट तैयार की गई.
2019 और 2023 के बीच सिंगल डिजिट में रही सैलरी हाइक
इस रिपोर्ट के आधार पर साफ हुआ कि 2019 और 2023 के बीच छह सेक्टर में कम्पाउंडेड एनुअल वेज ग्रोथ 0.8 से 5.4 प्रतिशत के बीच रही. ये सेक्टर इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रोसेस एंड इंफ्रास्ट्रक्चर (EMPI) कंपनियों और फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) आदि हैं. इतना ही नहीं फॉर्मल सेक्टर में श्रमिकों की स्थिति और भी खराब रही. यहां इनकी रियल इनकम में निगेटिव ग्रोथ दर्ज की गई. निगेटिव ग्रोथ का मतलब यह नहीं कि उनकी सैलरी पहले से कम हो गई. इसका सीधा मतलब यह रहा कि महंगाई के नंबर्स को एडजस्ट करने के बाद सैलरी ग्रोथ निगेटिव में रही है. साल 2019-20 से 2023-24 तक के पांच साल में खुदरा महंगाई दर 4.8 प्रतिशत, 6.2 प्रतिशत, 5.5 प्रतिशत, 6.7 प्रतिशत और 5.4 प्रतिशत बढ़ी है.
'उद्योग जगत को अपने अंदर झांकने की जरूरत'
चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (CEA) वी अनंत नागेश्वरन (V Anantha Nageswaran) ने कुछ कॉर्पोरेट जुटान के दौरान अपने संबोधन में फिक्की-क्वेस रिपोर्ट का जिक्र किया. उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय उद्योग जगत को अपने अंदर झांकने की जरूरत है और इसके बारे में कुछ सोचना चाहिए. सरकार के सूत्रों का कहना है कि खासकर शहरी क्षेत्रों में आमदनी में कमी होने खपत घटने का प्रमुख कारण बना है. यही कारण है कि जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर नीचे आई है. कोविड के बाद मांग में तेजी के साथ खपत बढ़ी, लेकिन सैलरी ग्रोथ की सुस्त रफ्तार ने कोविड पूर्व के आर्थिक सुधार को लेकर चिंताएं सामने ला दी हैं.
लिस्टेड कंपनियां ज्यादा फायदा कमा रही
वी अनंत नागेश्वरन (V Anantha Nageswaran) ने कहा कि लिस्टेड कंपनियां ज्यादा फायदा कमा रही हैं. लेकिन वे कर्मचारियों को उस रेश्यो में कम पैसा दे रही हैं. नागेश्वरन ने प्राइवेट कॉर्पोरेट सेक्टर को ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम पर रखने और कैपिटल इनटेंसिव व लेबर इनटेंसिव के बीच बैलेंस बनाने के लिए कहा. उन्होंने कहा लिस्टेड कंपनियों के प्रॉफिट की बात करें तो यह जीडीपी (GDP) के प्रतिशत के रूप में 2023-24 में 15 साल के दौरान हाई लेवल पर पहुंच गया है. लेकिन इस दौरान कंपनियों के वेज कॉस्ट इंक्रीज रेट में गिरावट आई है.
आमदनी बढ़ने से खपत और बचत दोनों को बढ़ावा मिलता है
सीईए (CEA) ने एक कार्यक्रम में कहा था कि कॉर्पोरेट सेक्टर की आमदनी का एक हिस्सा उनके प्रॉफिट में और दूसरा कर्मचारियों को सैलरी के रूप में जाता है. इन दोनों के बीच बैलेंस बनाए बिना कंपनियों के प्रोडक्ट खरीदने के लिए पर्याप्त मांग नहीं रहेगी. लगातार आमदनी बढ़ने से खपत और बचत दोनों को बढ़ावा मिलता है और इकोनॉमिक एक्सपेंशन होता है. नागेश्वरन ने कहा, 'दूसरे शब्दों में कर्मचारियों को अच्छी तरह पेमेंट नहीं करना या पर्याप्त कर्मचारियों को काम पर नहीं रखना छोटी इंडस्ट्री के लिए खतरनाक हो सकता है.'
500 कंपनियों का प्रॉफिट जीडीपी का 4.8% तक पहुंचा
सीईए ने यह भी कहा, लॉन्ग टर्म ग्रोथ और कंज्मप्शन का सबसे अहम कारण एम्पलायमेंट इनकम ग्रोथ और खर्च की क्षमता में बढ़ावा करना है. मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के अनुसार निफ्टी 500 कंपनियों का प्रॉफिट पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी का 4.8% तक पहुंच गया, जो 2007-08 के बूम वर्ष (ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसेस से पहले) में 5.2% की वृद्धि के बाद सबसे ज्यादा है. सीईए ने माना कि कंपनियों ने अपने फायदे का एक हिस्सा डिलीवरेजिंग के लिए यूज किया है और उनकी बैलेंस शीट मजबूत हो गई. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अब उनके लिए कैपिटल फार्मेशन और एम्पलायमेंट ग्रोथ का समय है.
कोविड महामारी के बाद पहली बार मजदूरी में कमी आई
देश में पिछली तिमाही में महामारी के बाद पहली बार वेज (मजदूरी) में कमी आई है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार इससे इकोनॉमी की तेज रफ्तार पर ब्रेक लगा है. दरअसल, उपभोक्ता खर्च और कॉर्पोरेट मुनाफे में गिरावट आ रही है. एलारा सिक्योरिटीज के आंकड़ों के अनुसार लिस्टेड नॉन फाइनेंशियल कंपनियों के लिए इंफलेशन एडजस्टेड एम्पलायमेंट कॉस्ट जुलाई से सितंबर के बीच एक साल पहले की तुलना में 0.5% घट गई है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के आंकड़ों से यह भी साफ होता है कि मजदूरी वृद्धि में लगातार मंदी है और महंगाई बढ़ रही है. यह देश के शहरी मध्यम वर्ग के लिए फाइनेंशियल स्ट्रेस की तरफ इशारा करती है.
गिरती वेज ग्रोथ, शहरी खपत में गिरावट का अहम कारण
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मेजर आईटी सर्विस एक्सपोर्ट कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड (TCS), इंफोसिस लिमिटेड, विप्रो लिमिटेड और एचसीएल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने जुलाई से सितंबर के तीन महीने में कर्मचारी लागत में साल-दर-साल 3.3% की वृद्धि दर्ज की है. यह 2023 की समान अवधि में करीब 8% से काफी कम है. प्राइवेट कंज्मपशन एक्सपेंडीचर (Private Consumption Expenditure) का जीडीपी में करीब 60% हिस्सा है. यह 6% बढ़ा है जो पहली तिमाही के 7.4% से कम है. गिरती मजदूरी वृद्धि शहरी खपत मंदी के पीछे एक कारण है.
साबुन से लेकर कारों तक हर चीज पर कटौती कर रहे ग्राहक
ग्राहक साबुन से लेकर कारों तक हर चीज पर कटौती कर रहे हैं. मारुति सुजुकी लिमिटेड से लेकर हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड तक देश की कुछ बड़ी कंपनियों ने हाल ही में कमजोर कमाई दर्ज की है. उन्होंने यह कहा कि शहरी मध्यम वर्ग का खर्च कम हो गया है. कंपनियों की तरफ से कर्मचारियों को कम सैलीरी देने से मांग में कमी आती है. यह केवल कंपनियों के मुनाफे को प्रभावित करती है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के एनालिस्ट निखिल गुप्ता और तनिशा लधा ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में लिखा था, 'किसी भी इकोनॉमी में उपभोक्ता खर्च खून की तरह बहता है.' 'भारत में कमजोर उपभोक्ता वित्त के लिए मुख्य कारक आमदनी वृद्धि में मंदी है.'