Rupee Slumps To All Time Low: डॉलर के मुकाबले गिरकर सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, आपकी जेब पर क्या असर पड़ेगा?
Rupee Slumps : अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 48 पैसे गिरकर 78.85 प्रति डॉलर के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. गिरावट का कारण विदेशी पूंजी की बाजार से निकासी और कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी है.
Rupee Slumps To All-time Low: विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी और क्रूड ऑयल की कीमत में आई तेजी से डॉलर के मुकाबले रुपये ने गिरावट का नया रिकॉर्ड बनाया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार (Interbank Forex Exchange Market) में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 48 पैसे औंधे मुंह गिरकर 78.85 प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. गिरावट का कारण विदेशी पूंजी की बाजार से लगातार निकासी और कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी है.
48 पैसे की बड़ी गिरावट
एक्सचेंज मार्केट में डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को 78.53 प्रति डॉलर पर खुला और कारोबार के अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले यह 48 पैसे गिरकर 78.85 प्रति डॉलर के नये सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ. शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा, 'कमजोर घरेलू शेयर बाजार और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बीच भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अबतक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली ने भी रुपये पर दबाव डाला.'
छह कारोबारी दिन में 100 पैसे टूटा
एलकेपी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट डिपार्टमेंट के वाइस प्रेसिडेंट, जतिन त्रिवेदी ने कहा कि विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और फेडरल रिजर्व के आक्रामक रुख के कारण पिछले छह कारोबारी दिनों में रुपये में 100 पैसे की गिरावट आई है. उन्होंने कहा कि यदि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट नहीं आती तो आगे कमजोरी जारी रह सकती है.
इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.01 प्रतिशत की तेजी के साथ 103.95 पर पहुंच गया. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा बढ़कर 118.5 डॉलर प्रति बैरल हो गया.
आप पर कैसे पड़ेगा असर?
रुपये के सबसे निचले स्तर पर जाने का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा. भारतीय मुद्रा में गिरावट का सबसे ज्यादा असर आयात पर दिखेगा. भारत में आयात होने वाली चीजों के दाम में बढ़ोतरी होगी. देश में 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात होता है, यानी इससे भारत को कच्चे तेल के लिए आधिक कीमत चुकानी पड़ेगी और विदेशी मुद्रा ज्यादा खर्च होगी. ऐसे में तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं.