बड़ी टेक कंपनियों को न्यूज साइट्स का कंटेंट इस्तेमाल करने पर देना होगा पैसा: राजीव चंद्रशेखर
एक लेख में राजीव चंद्रशेखर ने लिखा, लोकतंत्र को फलने-फूलने के लिए, हम सत्य, सटीकता और सत्यमेव जयते के लिए समर्पित भारतीय समाचार प्रवर्तकों को आर्थिक रूप से कमजोर नहीं होने दे सकते. यह दुनिया भर की परेशानी है.
कंटेंट के इस्तेमाल के लिए पैसे देने का दबाव लगातार दुनिया की बड़ी टेक कंपनियों पर बढ़ता जा रहा है. देश के आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पिछले हफ्ते संकेत दिए थे कि भारत सरकार एक कानून बनाने पर विचार कर रही है, जिसके तहत गूगल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, एपल, ट्विटर और अमेजन पे जैसी नामी टेक कंपनियों को भारतीय अखबारों और वेबसाइट्स का कंटेंट इस्तेमाल करने के लिए उन्हें पैसा देना होगा. यह न सिर्फ ठीक होगा बल्कि राष्ट्रीय हित में भी रहेगा.
अपने एक लेख में राजीव चंद्रशेखर ने लिखा, लोकतंत्र को फलने-फूलने के लिए, हम सत्य, सटीकता और सत्यमेव जयते के लिए समर्पित भारतीय समाचार प्रवर्तकों को आर्थिक रूप से कमजोर नहीं होने दे सकते. यह दुनिया भर की परेशानी है.
साल 2014 में स्पेन ने जर्मनी से प्रेरणा लेते हुए खुद का वेतन जनादेश लागू करने की कोशिश की. इसके बाद गूगल न्यूज स्पैनिश बाज़ार से हट गया, लेकिन हाल ही में यूरोपीय संघ के 2019 के कॉपीराइट नियमों के तहत उसने पब्लिशर्स के साथ कुछ सौदे किए और बाजार में लौट आया, जिसके बाद पूरे मार्केट में मुफ्त का दौर खत्म हो गया. नए नियमों के कारण फ्रेंच मीडिया ने कई नए साइन अप किए. इस साल मई में गूगल ने यह ऐलान किया कि फीड के लिए वह 300 यूरोपियन पब्लिकेशन्स को मुआवजा देगा.
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया ने एक कानून पास किया, जिसमें कहा गया कि स्थानीय मीडिया को उनका शेयर दिया जाएगा. भारत, कनाडा, फ्रांस और यूके उन देशों में शुमार थे, जिनके साथ ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन पीएम ने कानून पर चर्चा की थी.
पिछले साल, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन ने गूगल को भारत के प्रतिद्वंद्विता नियामक के तौर पर पाया, जिसमें न्यूज एग्रीगेशन के लिए उसने अपने दबदबे का दुरुपयोग किया.
राजीव चंद्रशेखर ने लिखा कि इस बारे में जांच जारी है और नतीजे सामने आने के बाद इस समस्या को हल किया जा सकता है. इस मामले में जिस चीज पर असर पड़ रहा है, वह सिर्फ बिजनेस ही नहीं है. मीडिया एक अहम संस्था है जो मूल भारतीय मूल्यों को कायम रखता है और राष्ट्रीय संप्रभुता का समर्थन करता है.
उन्होंने लिखा, चूंकि बड़ी टेक कंपनियां में हमारे संकल्प का परीक्षण लेने की कोशिश कर सकती हैं, जैसा कि हमने कहीं और देखा है, यह केवल बाजार की विफलता के बारे में नहीं है, यह वैश्वीकरण के युग में शासन के बारे में है. यह हमारी सुधारवादी इच्छा के बारे में है. जो अनुचित है उसे आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए.
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