नई दिल्ली. कहते हैं कि किसी मंजिल को पाने के लिए कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है. इस बात को सही साबित किया है आंध्रप्रदेश के बीएम बालकृष्णा ने. बालकृष्णा ने अपनी मेहनत के बलबूते पर न सिर्फ अपना बिजनेस खड़ा किया बल्कि उसे काफी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. आज उनकी कहानी से कई लोग मोटिवेट होते हैं. आइए आपको भी बीएम बालकृष्णा की सक्सेस स्टोरी बताते हैं. 


6 बार हुए थे गणित में फेल


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बालकृष्णा का जन्म आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के एक छोटे से गांव संकरायाल पेटा में हुआ. वे जो कुछ भी करते थे उसे कभी छोटा नहीं समझते थे. उनके पिता एक किसान थे और मां आंगनवाड़ी में शिक्षक के साथ-साथ घर पर ही सिलाई का भी काम करती थीे. उनके घर में दूध का भी कारोबार होता था. बालकृष्णा ने छह बार लगातार गणित में फेल होने के बाद किसी तरह स्कूल की शिक्षा पूरी की.


ऑटोमोबाइल में किया डिप्लोमा


जब वो स्कूल में पढ़ते थे तभी से कुछ न कुछ करने की ललक उनके भीतर थी. उन्होंने अपने पेरेंट्स से कहा था कि वे एक फोन बूथ में 300 रुपये तनख्वाह की नौकरी करना चाहते हैं. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने नेल्लोर जिले से ऑटोमोबाइल में डिप्लोमा किया. उन्होंने यह तय किया कि वे और समय बर्बाद नहीं करेंगे. जब वो डिप्लोमा कर रहे थे, तब उनके पेरेंट्स उनकी मेस की फीस भी बड़ी मुश्किल से दे पाते थे. बालकृष्णा नहीं चाहते थे कि उनकी मेहनत बेकार चली जाए. 


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1000 रुपये लेकर निकले थे जॉब की तलाश में


पैसे की महत्ता समझ कर बालकृष्णा ने यह महसूस किया कि उनके पेरेंट्स उन्हें सहारा देने के लिए कितनी मेहनत करते हैं. उस समय दूध तीन रुपये लीटर मिलता था इसका मतलब उनके माता-पिता उन्हें 1000 रुपये भेजने के लिए 350 लीटर दूध बेचते होंगे. ये सब महसूस कर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी लगन के साथ की, परीक्षा में 74% लाकर पास हुए और वे अपने कॉलेज के दूसरे टॉपर थे. उनके इस रिजल्ट से उनके पेरेंट्स बेहद खुश थे और वे उन्हें आगे पढ़ाई करने देना चाहते थे. बालकृष्णा चाहते थे कि वे अपने परिवार का लाइफ स्टाइल सुधारे और घर में आर्थिक मदद दें, इसलिए वे जॉब की तलाश करने लगे. उनकी मां ने उन्हें 1000 रुपये दिए और कहा कि वे बैंगलोर के आस-पास कोई नौकरी ढूंढ लें.


कार धोने की करनी पड़ी थी जॉब


इसके बाद बालकृष्णा बैंगलोर आ गए और कई ऑटोमोबाइल कंपनी में जॉब के लिए अप्लाई कर दिया पर कहीं सफलता नहीं मिली. उनका सारा उत्साह बिखर गया. अंत में उन्होंने तय किया कि कोई भी नौकरी मिले वे करेंगे और कुछ दिनों के बाद उन्हें एक कार धोने की नौकरी मिल गई. यहां काम करते हुए उन्हें 500 रुपये की तनख्वाह मिलती थी. ये काम करते हुए उन्हें एक पंप बिजनेस का ऑफर आया. ये उनके हुनर वाले फील्ड से तो नहीं जुड़ा था लेकिन इसमें उन्हें 2000 रुपये तनख्वाह मिल रही थी, जो उनके परिवार की मदद के लिए काफी था. इसलिए उन्होंने वहां मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव के पद पर ज्वांइन कर लिया. वहां उन्होंने 14 साल काम किया.


PF के पैसों से शुरू किया खुद का ब्रांड


काम का बोझ ज्यादा होने की वजह से उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी. 2010 में उन्होंने अपने प्रोविडेंट फण्ड के 1.27 लाख रुपये से खुद का ब्रांड एक्वापॉट शुरू किया. शुरूआत में फण्ड जुगाड़ने में काफी मुश्किल आई. वे जब इसके बारे में अपने जानने वालों को बताते थे, तो सब उन्हें इसे छोड़ने की सलाह देते थे.


मार्केटिंग पर दिया खास ध्यान


बालकृष्णा ने केवल अपने दिल की सुनी. शुरूआत में बहुत ही कम लोगों के साथ उन्होंने काम शुरू किया. अगर कहीं उनके प्रोडेक्ट को रिपेयर करने के लिए वे खुद ही चले जाते थे. लोगों के साथ उनका तालमेल काफी अच्छा था. जल्द ही उनके ग्राहक बढ़ने लगे और तब उन्होंने अपना होलसेल बिजनेस शुरू किया. उन्होंने मार्केटिंग पर बहुत मेहनत की. उन्होंने टीशर्ट, ब्रोचर जैसी चीजें बांटना शुरू किया. उनकी ये कोशिश रंग लाई. उनके प्रोडेक्ट ‘एक्वापॉट (Aquapot)’ देश के टॉप 20 वाटर प्यूरीफायर में अपना नाम शामिल करने में सफल रहा. आज देशभर में उनकी कंपनी के प्रोडेक्ट का इस्तेमाल किया जाता है. उनकी ब्रांच हैदराबाद, बैंगलोर, विजयवाड़ा, तिरुपति और हुबली में भी फैली है और आज उनका टर्न-ओवर 25 करोड़ रुपये का हो गया है.


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बालकृष्णा इस फर्म के मालिक हैं और उन्होंने अपने बिजनेस को दिन रात मेहनत करके खड़ा किया है. वे कभी ब्रेक नहीं लेते और पूरे जोश के साथ लगातार काम करते हैं. वे विश्वास करते हैं कि कुछ भी असंभव नहीं होता. हम जो कुछ करें पूरी ईमानदारी के साथ करें और भविष्य के लिए बेंचमार्क सेट करके जाएं.


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