चेक बाउंस के मामलों को लेकर आई अच्छी खबर, सुप्रीम कोर्ट ने की ये शानदार पहल
देश में चेक बाउंस के बढ़ते मामलों (Cheque Bouncing cases) को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अच्छी पहल की है, जिससे अदालतों में सालों से चल रहे केसों का तुरंत निपटारा होने की उम्मी जागी है.
नई दिल्ली: देश में चेक बाउंस के बढ़ते मामलों (Cheque Bouncing cases) को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अच्छी पहल की है, जिससे अदालतों में सालों से चल रहे केसों का तुरंत निपटारा होने की उम्मी जागी है. सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले का संज्ञान (Suo motu) लेते हुए हल निकालने की कोशिश में जुट गया है. चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े और एल नागेश्वर राव की बेंच ने इस मामले पर देश की सभी हाई कोर्ट्स से जवाब मांगा है.
सभी हाई कोर्ट से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट्स से चेक बाउंस के मामलों के तुरंत निपटारे को लेकर मैकेनिज्म पर जवाब मांगा है. राज्यों के DGP से भी इस मामले पर 4 हफ्ते के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है. इस मामले में राज्यों के गृह विभाग, केंद्र के वित्त मंत्रालयों की भी मदद ली जाएगी.
चेक बाउंस केसों का निपटारा Negotiable Instruments Act (NI Act) के सेक्शन 138 के तहत होता है. इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों के तेज निपटारे के लिए एक मैकेनिज्म तैयार करने के लिए खुद संज्ञान लिया था. एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) और वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने इसे लेकर एक प्रीलिमनरी रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट पर सभी हाई कोर्ट से जवाब मांगा गया.
इस रिपोर्ट पर सिर्फ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, राजस्थान हाई कोर्ट और सिक्किम हाई कोर्ट ने ही अबतक जवाब सौंपे हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से 4 हफ्ते के अंदर इस रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया संज्ञान
चेक बाउंस होने के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेना पड़ा, इसकी वजह है कि देश की अलग अलग अदालतों में 40 लाख चेक बाउंस के मामले लंबित हैं. जिनमें से 18 लाख मामलों में आरोपियों का अता-पता तक नहीं है. कानून के मुताबिक चेक बाउंस मामलों का निपटारा 6 महीने के अंदर हो जाना चाहिए, लेकिन अक्सर ये मामले 3-4 साल तक चलते रहते हैं, जिससे अदालतों का काफी वक्त बर्बाद होता है.
चेक बाउंस के मामलों को लेकर वित्त मंत्रालय ने भी एक प्रस्ताव दिया था, जिसके मुताबिक ऐसे केसों को सिविल केस में बदल दिया जाए. लेकिन कारोबारियों के भारी विरोध के चलते मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
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