जिसने 3 मिनट में तोड़ा था अमेरिका का गुरूर, बिक गई उस दवा कंपनी की हिस्सेदारी, Cipla के प्रमोटर्स क्यों ले रहे ये फैसला ?
Cipla Share: अभी आपके-हमारे फेवरेट नमकीन और स्नैक्स ब्रांड `हल्दीराम` के बिकने की खबरों का शोर थमा भी नहीं था कि देश की दिग्गज दवा कंपनी के बिकने की खबरें आने लगी. देश की तीसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी सिप्ला (Cipla) अपनी बड़ी हिस्सेदारी बेचने जा रही है. `गरीबों की दवा` कंपनी सिप्ला ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी.
Cipla: अभी आपके-हमारे फेवरेट नमकीन और स्नैक्स ब्रांड 'हल्दीराम' के बिकने की खबरों का शोर थमा भी नहीं था कि देश की दिग्गज दवा कंपनी के बिकने की खबरें आने लगी. देश की तीसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी सिप्ला (Cipla) अपनी बड़ी हिस्सेदारी बेचने जा रही है. 'गरीबों की दवा' कंपनी सिप्ला ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी. खबर के मुताबिक फार्मा कंपनी सिप्ला (Cipla) यानी The Chemical Industrial And Pharmaceutical Laboratories के प्रोमोटर ने कंपनी में 2.53% हिस्सा बेच दिया. इस डील के बाद अब प्रोमोटर ग्रुप का हिस्सा 31.67% बचा है. ये डील 2637 करोड़ में हुई है .
सिप्ला ने बेच दिया अपना हिस्सा
सिप्ला के प्रवर्तकों ने कंपनी में तरलता बढ़ाने के लिए अपनी 2.53 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी. मुंबई स्थित फार्मा कंपनी ने शेयर बाजार को दी सूचना में बताया कि कुछ कंपनी प्रवर्तकों ने 15 मई 2024 को 2,04,50,375 शेयर बेचे. कंपनी ने कहा कि शिरीन हामिद, रुमाना हामिद, समीना हामिद और ओकासा फार्मा प्राइवेट लिमिटेड ने परोपकार सहित विशिष्ट जरूरतों के लिए तरलता बढ़ाने के मकसद से सिप्ला लिमिटेड के 2.53 प्रतिशत शेयर बेचे हैं. अब हामिद परिवार की सिप्ला में 31.67 प्रतिशत हिस्सेदारी बची है.
क्यों लिया फैसला ?
कंपनी के शेयर के भाव बढ़ रहे थे. कंपनी मुनाफा कमा रही थी. फिर आखिर उसे अपनी हिस्सेदारी बेचने की नौबत क्यों आई. लोगों के मन में सवाल उठा कि सिप्ला में हामिद परिवार अपनी हिस्सेदारी बेच क्यों रहा है? दरअसल परिवार में कंपनी को संभालने वाला कोई नहीं है. हामिद परिवार की आने वाली जनरेशन के बीच उत्तराधिकार का मामला काफी जटिल है. वर्तमान में सिप्ला की विरासत को फैमली के दूसरी पीढ़ी के वाईके हामिद और एमके हामिद बढ़ा रहे हैं. लेकिन कंपनी उत्तराधिकारी संकट से जूझ रही है. इससे पहले भी कंपनी की हिस्सेदारी बेचने की कोशिश होती रही है.
कभी तोड़ा था अमेरिका का गुरुर
1981 नें एड्स की जानलेवा बीमारी ने दुनियाभर के लोग परेशान थे. कई देशों में इस बीमारी ने खतरनाक रूप ले लिया था. खासकर अफ्रीका में HIV तेजी से फैल रहा था. साल 2000 में यूरोप में HIV कॉन्फ्रेंस में ख्वाजा हामीद के बेटे युसुफ हामीद पहुंचे थे. उन्हें बोलने के लिए सिर्फ 3 मिनट का वक्त दिया गया. उन्होंने 3 मिनट में 3 वादे किए, जिसके बाद न सिर्फ अफ्रीका दुनिया के कई देश उनके मुरीद हो गए, बल्कि एड्स की महंगी दवाईयां बेचने वाले देशों को उन्होंने चुनौती दे दी. युसुफ हामीद ने सिर्फ 36500 रुपये के सालाना कीमत पर एड्स की दवाईयां बाजार में लाने का वादा किया. उन्होंने गरीब देशों को दवा बनाने का फॉर्मूला देने का वादा किया. हामीद ने वादा किया कि मां से बच्चे में होने वाले एड्स की दवा को फ्री में देंगे. अमेरिका जैसे देश में जहां एड्स दवाईयां बन तो रही थी, लेकिन एकाधिकार की वजह से वो काफी महंगी थी. अमेरिका में बन रही ये दवाएं इतनी महंगी थी कि गरीब देशों के लिए खरीद पाना मुश्किल था. ख्वाजा हामीद ने सस्ती और फ्री दवाईयों का ऐलान कर अमेरिका को झटका दे दिया.
कैसे एक केमिस्ट ने की सिप्ला की शुरुआत
ख्वाजा हामीद जर्मनी में केमिस्ट के तौर पर काम कर रहे थे. जब वो भारत लौटे तो उन्होंने देखा कि यहां की बड़ी जनसंख्या महंगी दवाई खरीदने में असमर्थ है. उन्होंने ठान लिया कि वो गरीबों के लिए दवा बनाएंगे. साल 1935 में उन्होंने सिप्ला की शुरुआत की. उनकी सस्ती दवाईयों ने विदेशी फार्मा कंपनियों को कड़ी टक्कर देना शुरू कर दिया. साल 1939 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब विदेशों से दवाईयां मंगवाने में मुश्किल होने लगी, सिप्ला भारत के लिए वरदान साबित हुई. सिप्ला आज देश की तीसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी है. कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग 47 जगहों पर है. वित्त वर्ष 2023-24 में सिप्ला का मुनाफा 4,153.72 करोड़ रुपये रहा. वहीं कंपनी का रेवेन्यू 7.4% बढ़कर 6,163.2 करोड़ रुपये हो गया.