नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक विप्रो इन दिनों चर्चा में है। कंपनी में हुए इस्तीफों को लेकर उथल-पुथल मची हुई है। अजीज प्रेमजी की कंपनी में एक के बाद एक बड़े इस्तीफे हो रहे हैं। ताजा मामले में विप्रो ने अपने पूर्व कर्मचारी पर खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विप्रो ने अपने पूर्व सीनियर वाइस प्रेसीडेंट मोहम्मद हक और पूर्व सीएफओ जतिन दलाल के खिलाफ कोर्ट में अर्जी दी है। हक ने अगस्त में विप्रो की प्रतिद्वंदी कंपनी कॉग्निजेंट ज्वाइन कर ली थी। वहीं विप्रो के पूर्व सीएफओ जतिन दलाल का मामला भी कोर्ट पहुंच गया है। गौरतलब है कि विप्रो के पूर्व सीएफओ जतिन दलाल ने भी 1 दिसंबर को कॉग्निजेंट (Cognizant) ज्वाइन कर लिया है। विप्रो ने उनपर इंप्लायमेंट कांट्रैक्ट के उल्लघंन का आरोप लगाया है।  


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

क्या है पूरा मामला 


विप्रो देश की चौथी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है।  कंपनी में ताबततोड़ दो बड़े इस्तीफे हुए और दोनों ही कर्मचारियों ने ग्लोबल प्रतिस्पर्धी कंपनी कॉग्निजेंट को ज्वाइन कर लिया। जतिन दलाल लगभग 21 सालों तक विप्रो के साथ जुड़े रहे। उन्होंने विप्रो से इस्तीफा देने के बाद कॉग्निजेंट का दामन थाम लिया। वो कॉग्निजेंट के सीईओ रवि कुमार को रिपोर्ट कर रहे हैं। आपको बता दें कि रवि कुमार खुद भी विप्रो के पूर्व कर्मचारी रह चुके हैं। उन्होंने विप्रो में प्रेसिडेंट की जिम्मेदारी भी निभाई थी। बाद में उन्होंने विप्रो की ग्लोबल कॉम्पिटीटर कंपनी  कॉग्निजेंट का दामन थाम लिया। इसके बाद कंपनी के पूर्व सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और सीएफओ ने भी  कॉग्निजेंट ज्वाइन कर लिया। 


क्या है विप्रो का आरोप   
विप्रो ने अपने दोनों ही पूर्व कर्मचारियों पर एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट को ना मानने का आरोप लगाया है। कंपनी ने कहा है कि जतिन दलाल ने एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट के नॉन-कंपीट क्लॉज का उल्लघंन किया है। विप्रो ने कंपनी की गोपनीय जानकारी प्रतिस्पर्धी कंपनी के साथ साझा करने का आरोप लगाया है। कंपनी ने हक पर आरोप लगाया कि इस्तीफा देने से पहले उन्होंने कंपनी की गोपनीय फाइलें अपनी पर्सनल ईमेल पर भेजी थीं।  


क्या होता है नॉन-कंपीट क्लॉज 


जब आप नौकरी के लिए अपॉइंटमेंट लेटर साइन करते हैं उस वक्त अक्सर कंपनियां अपने एम्प्लॉइज के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करती है। इंप्लायमेंट कांट्रैक्ट में ‘नॉन-कंपीट क्लॉज’ शामिल रहता है। इसमें कंपनी और कर्मचारी के बीच एक कानूनी समझौता होता है। इंप्लायमेंट कांट्रैक्ट के इस क्लॉज में ये दर्ज होता है कि कर्मचारी अपने एम्प्लॉयर की कॉम्पिटीटर कंपनी के साथ एक निश्चित अवधि तक काम नहीं कर सकता है। कंपनियां इस तरह के क्लॉज उन कर्मचारियों के लिए रखती है, जो बड़े पदों पर या  स्ट्रैटजिक पोस्ट को संभालते हैं। ऐसा कंपनियां इसलिए करती हैं, ताकि वो कंपनी की अहम जानकारियों को प्रतिस्पर्धी कंपनी से साझा न कर सकें।