GDP के लिए वरदान बन सकता है महिलाओं का घरेलू कामकाज, करीब 23000 करोड़ का है काम
FICCI FLO: आंकड़ों के अनुसार घरों में काम करनी वाली भारतीय महिलाएं करीब 380 मिनट यानी 6 से 7 घंटे ऐसे काम में बिता रही हैं, जिसके उन्हें कोई पैसे नहीं मिलते. जबकि पुरुष करीब डेढ घंटे यानी 90 मिनट ऐसे कामों में बिता रहे हैं.
Ficci Report Findings: किचन में खाना बनाना, बच्चों को पढ़ाना, किसी बुजुर्ग की देखभाल करना हो-ये वो काम हैं जिन्हें करना आमतौर पर घर की महिलाओं की जिम्मेदारी होती है. चाहे महिला कामकाजी हो या पूरी तरह से गृहणी. हाल ही में बिजनेस फेडरेशन फिक्की (FICCI) की महिला विंग FICCI FLO ने महिलाओं के बिना पगार वाले ऐसे कामों का हिसाब लगाया है. फिक्की की तरफ से जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार भारतीय गृहणियों के कामकाज को यदि पैसों से तौला जा सके तो भारत की जीडीपी में 6 से 10% की बढ़ोतरी हो जाएगी. फिक्की FLO की प्रेसीडेंट सुधा शिवकुमार के अनुसार ये वो काम जिनका हिसाब लगाया गया है उनमें शामिल हैं.
6 से 7 घंटे काम का किसी तरह का पैसा नहीं मिलता
सुधा शिवकुमार ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार भारतीय महिलाएं तकरीबन 380 मिनट यानी दिन के 6 से 7 घंटे ऐसे काम में बिता रही हैं जिसके कोई पैसे नहीं मिलते. जबकि पुरुष तकरीबन डेढ घंटे यानी 90 मिनट ऐसे कामों में बिता रहे हैं जिसके उन्हें पैसे नहीं मिलते. इससे पहले कि आप ये दलील दें कि महिलाएं घर में रहती हैं, हम आपको बता दें कि ये औसत समय है और इसमें कामकाजी महिलाएं भी शामिल हैं.
साल में 200 दिन का काम
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने मार्च 2023 में जारी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत में महिलाएं 7 घंटे से ज्यादा अवैतनिक काम करती हैं. यानी वो काम जिसके उन्हें कोई पैसे नहीं मिलते. इसका मतलब हुआ साल में 200 दिन जबकि पुरुषों के लिए साल के 63 दिन. अगर महिलाओं को अनपेड काम के पैसे देने पड़े तो ये रकम देश की जीडीपी में 7.5% की बढ़त कर देगी. इस कैलकुलेशन को इस आधार पर किया गया कि गांव की महिलाओं को 21 रुपये और शहरी महिला को 33 रुपये प्रति घंटे दिए जाएं तो उन्हें करीब 23 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ सकता है. भारत की कुल आबादी में महिलाओं की संख्या करीब 49% है.
...तो महिलाओं से भारी हो जाएगा पुरुषों का पलड़ा
चूल्हा-चौका करती महिलाओं, घर में बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करती महिलाओं के काम को यदि पैसों से तौला जाए तो महिलाओं का पलड़ा पुरुषों से भारी हो जाएगा. लेकिन अर्थव्यवस्था रुपये की कसौटी पर तौली जाती है और उन आंकड़ों के अनुसार भारत में 37% महिलाएं ही कामकाजी वर्ग में आती हैं. जबकि दुनिया का औसत 47% है. महिला और बाल-विकास मंत्रालय के आंकड़ो के अनुसार भारतीय महिलाएं देश की कुल जीडीपी के 15 से 17% का अवैतनिक काम करती हैं. 2022 के आंकड़ों के अनुसार भारत की जीडीपी करीब 37 खरब है. 17 प्रतिशत अवैतनिक काम का मतलब हुआ कि 6 खरब रुपए से ज्यादा का हिसाब कभी लगाया ही नहीं जा सका है.
महिलाओं के काम करने में 2 बड़ी चुनौतियां
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के सर्वे में सामने आया है कि भारत में महिलाओं के काम करने के रास्ते में दो बड़ी चुनौतियां हैं, पहली -घर और बाहर की जिम्मेदारियों के बीच तालमेल बैठाने में परेशानी, दूसरी चुनौती है सुरक्षित ट्रांसपोर्ट की. इकोनॉमिस्ट और पीएम की इकोनॉमिक एडवाइजरी कमेटी की एक्सपर्ट शामिका रवि के अनुसार देश में महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी उनके करियर में एक बड़ी अड़चन है. बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल में लगी महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलने के बारे में सोचना मुश्किल हो जाता है.
एक करोड़ नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं
FICCI FLO ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से Care Giving Economy मे निवेश करने का सुझाव दिया है. रिपोर्ट के अनुसार बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल की इंडस्ट्री को अगर प्रोफेशनल तरीके से देखा जाए और सरकार जीडीपी के 2 प्रतिशत का निवेश इस दिशा में करे तो देश में एक करोड़ 10 लाख नई नौकरियां पैदा हो सकती है, जिसमें से 70 प्रतिशत महिलाओं के जिम्मे आ सकती हैं. हालांकि ये काम इतना आसान नहीं है. भारत का सामाजिक तानाबाना, सोच और परवरिश इन आंकड़ों के रास्ते में बड़ी अड़चन बन सकती है.
परवरिश महिलाओं को घर से बांधकर रखती है
भारत में वर्क फोर्स में भागीदारी पर काम कर रही एनजीओ FSG GLOW के हाल के सर्वे में सामने आया कि 84% ग्रामीण और 69% शहरी महिलाओं को काम करने के लिए घर के बड़ों की इजाजत चाहिए. उसके बिना वो काम पर नहीं जा सकतीं. 33% महिलाओं को सुरक्षा और काम की जगह दूर होने की वजह से काम पर नहीं भेजा गया. महिलाएं कौन सा काम करेंगी, इसके दायरे भी बंधे हुए हैं. सर्वे में पाया गया कि कामकाजी महिलाओं में से 60% टीचिंग, नर्सिंग या घर के काम जैसे साफ-सफाई वगैरह से जुड़ी हैं. लीडरशिप, मैनेजमेंट या टेक्निकल कामों में पुरुषों की हिस्सेदारी ज्यादा है.
सुरक्षित सफर की गारंटी नहीं
भारत के 5 शहरों में किए गए एक सर्वे में महिलाओं ने माना कि अगर उन्हें आने जाने के लिए सुरक्षित ट्रांसपोर्ट मिले तो वो काम करने के लिए बाहर जा सकती हैं. ये सर्वे प्राइवेट कैब सर्विस कंपनी Uber ने ऑक्सफोर्ड ECONOMICS संस्था के साथ मिलकर किया है. सर्वे में दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु, चेन्नई और कोलकाता की महिलाएं शामिल हुईं. 10 में से 7 महिलाओं के अनुसार घर संभालना केवल उनकी जिम्मेदारी है, इसलिए वो काम नहीं कर सकतीं. 10 में से 7 महिलाओं के अनुसार घर के पुरुष काम करने के लिए बाहर जाते हैं इसलिए वो बाहर नहीं जा सकतीं.