Indian Education System After Independence: हम भारत की आजादी के 77 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं. सैंकड़ों साल गुलामी का दंश झेलने वाले भारत ने बहुत कुछ बर्बाद होते देखा, लेकिन अब भारतीय उस दौर में  जी रहे हैं, जब फिर से विश्व स्तर पर देश की तूती बोल रही है. इन दशकों में देश लगातार विकास की राह पर चलता रहा है और धीरे-धीरे हर क्षेत्र में अपने पांव जमाएं और तरक्की करता रहा. आज हम तरक्की की रेस में सबसे आगे खड़े देशों में शामिल हैं. यह सब हो पाया है शिक्षा के कारण, क्योंकि किसी भी देश की का विकास और उन्नति तभी संभव है, जब उसका एजुकेशन सिस्टम बेहतर हो. आइए जानते हैं कि पिछले 77 सालों में भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या बदलाव हुए...


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ऐसे बढ़ी साक्षरता दर
किसी भी देश का विकास उसकी शिक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है. पहले ग्रामीण आबादी बहुत कम पढ़ी-लिखी हुआ करती थी. वक्त बदला और आज देश के गांव-गांव में शिक्षा की अलख जगी है. जब देश आजाद हुआ, हमारी साक्षरता दर केवल 18 प्रतिशत के करीब थी. साल 1951 में यह बढ़कर 18.33% हो , लेकिन तब महिला साक्षरता देर केवल 9 फीसदी थी. साल 2001 में देश का ओवरऑल लिटरेसी रेट 65.38 प्रतिशत जा पहुंचा, जिसमें मेल लिटरेसी रेट 75.65 और फीमेल लिटरेसी रेट 54.16 प्रतिशत था. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी. 


साल 2021 के आंकड़े बताते हैं कि भारत की साक्षरता दर 74.04% है, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% और महिलाओं की 65.46% थी. हालिया आंकड़ों के मुताबिक भारत में साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है. 


आजादी भारत ने एजुकेशन फॉर ऑल पर फोकस किया और इसी के साथ एजुकेशन डिपार्टमेंट की नींव रखी गई, जिसे बाद में मानव संसाधन मंत्रालय में तब्दील कर दिया गया. इतना ही नहीं हर प्रदेश में शिक्षा विभाग की स्थापित की गई , ताकि कम समय में देश के हर कोने में शिक्षा के क्षेत्र की मूलभूत जरूरतों को पूरा किया जा सके.


आजादी के बाद में प्रमुख शिक्षा आयोग
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948)
माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952)
भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66)
इन शिक्षा आयोगों के जरिए शिक्षा के सुधार के लिए विभिन्न शिक्षा नीतियों को लागू किया गया, जिसने भारत की शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 


अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
तकनीकी शिक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा सलाहकार निकाय के रूप अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की स्थापना 1945 में की गई. 1987 में यह एक वैधानिक निकाय बन गया, जो टेक्नीकल और मैनेजमेंट एजुकेशनके लिए मान्यता प्राप्त और अनुमोदित संस्थान है.


एनसीईआरटी की स्थापना
क्वालिटी ऑफ एजुकेशन को ध्यान में रखते हुए 1961 में एनसीईआरटी की नींव रखी गई. साल 1968 में कोठारी शिक्षा आयोग की सिफारिशों के अनुसरण में पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई गई. साल 1975 में 6 साल तक के बच्चों के समेकित बाल विकास सेवा योजना शुरू की गई. 1986 नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को अपनाया गया, 1992 में आचार्य राममूर्ति समिति द्वारा समीक्षा के आधार पर इसमें कुछ बदलाव किए गए.


यूजीसी
यूजीसी की स्थापना 1956 में हुई. यह एक वैधानिक निकाय है जो देश में विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करता है.  साथ ही यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को फाइनेंशियल सपोर्ट भी करता है. 


सर्व शिक्षा अभियान
नवंबर 2000 से केंद्र सरकार द्वारा इस अभियान की शुरुआ की गई, जिसका उद्देश्य 6-14 साल तक के हर बच्चे को प्रायमरी एजुकेशन उपलब्ध कराना था. साल 2009 में इसे मौलिक अधिकार बना दिया गया, शिक्षा का अधिकार अभियान के माध्यम से हर बच्चे को पढ़ने का हक दिलाना था. 


मिड डे मील
हर गांव में आंगनवाड़ी खोलने की शुरुआत की गई और छोटे बच्चों के शिक्षा के साथ संतुलित भोजन देने की पहल की गई. इसके साथ ही सरकारी स्कूलों में मिड डे मील योजना शुरू की गई.


हायर एजुकेशन के क्षेत्र में हुए बड़े बदलाव
भारतीय प्रौद्योगिकी, एम्स और भारतीय प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की गई. आजादी के बाद 6 आईआईएम और 9 आईआईटी की स्थापना की गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में मेडिकल कॉलजों की एस समय 731 हो गई है. वहीं, वर्तमान में देश में 20 आईआईएम और आईआईटी  23 हैं. साल 1950 तक विश्वविद्यालयों की संख्या 20 थी, जो 2018 में 850 हो गई. 14 नवंबर 2023 तक यूजीसी द्वारा प्रकाशित सेंट्र्ल यूनिवर्सिटी की लिस्ट में 56 विश्वविद्यालय  है. 


नेशनल एजुकेशन पॉलिसी
2020 में एक नई शिक्षा नीति लाई गई, जिसके तहत स्कूलों में क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई पर फोकस रहने के साथ 5+3+3+4 मॉडल अपनाया गया है. 


लंबा रास्ता तय करना बाकी
दुनिया को वेदों का ज्ञान देने वाला भारत गुलामी के कारण लड़खड़ाया जरूर, लेकिन फिर से विश्व गुरु बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है. अशिक्षा से निकलकर डिजिटल इंडिया तक सफर तय किया. आज दुनिया के हर कोने में भारत से बढ़कर निकले साइंटिस्ट, इंजीनियर, डॉक्टर और टेक्नीशियन देश का गौरव बढ़ा रहे हैं.  हालांकि, अभी तो इस दिशा में बहुत काम करना बाकी है. इस क्षेत्र में लगातार सरकार और विभिन्न अन्य संगठनों कई पहल की जा रही हैं.