कौन है मालविका राज, जिन्हें IIT ने एडमिशन देने से किया इनकार, तो दुनिया के सबसे बड़े टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट ने दिया मौका
जब मालविका 7वीं कक्षा में थी, तब उनके माता-पिता ने उन्हें स्कूल से निकाल दिया था. उसके बाद उनकी मां ने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर पर ही मालविका की शिक्षा जारी रखने के लिए उन्होंने एक शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार किया.
Malvika Raj Joshi: भारत के बहुत से प्रतिभाशाली छात्र अपनी तरक्की और बेहतर शिक्षा पाने के लिए विदेश चले जाते हैं. यह काफी बड़ा मुद्दा है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को कहीं ना कहीं प्रभावित करता है, और इसलिए इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए. हालांकि, हमारे देश में इस पर उतनी चर्चा नहीं होती है, जितनी होनी चाहिए. प्रतिभाशाली भारतीय छात्रों का विदेश जाना और दूसरे देशों की तरक्की में अपना योगदान देना कोई नई बात नहीं है. भारत की कई टॉप आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के पूर्व छात्र अपनी तरक्की के लिए बेहतर अवसरों और सही वातावरण की तलाश में अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसे दुनिया के अन्य हिस्सों में जाते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये देश हमेशा विशेष प्रतिभाओं की तलाश में रहते हैं. ऐसे कई मौके आए हैं, जब भारत अपनी प्रतिभा को बरकरार रखने में असफल रहा है. ऐसा ही एक मामला है मालविका राज जोशी का.
प्रतिभाशाली मालविका राज जोशी भारत के प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में एडमिशन के लिए जब एलिजिबल नहीं थीं, तब उनकी प्रतिभा को दुनिया के सबसे बड़े टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology) ने पहचाना और उन्हें अपने यहां पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप ऑफर की. बता दें कि उस समय मालविका 17 साल की थीं.
दरअसल, आईआईटी में मालविका को इसलिए एडमिशन नहीं मिल सका क्योंकि वह किसी भी बोर्ड परीक्षा में नहीं बैठी थी और उनके पास कक्षा 10वीं और 12वीं के सर्टिफिकेट नहीं थे, और आईआईटी में एडमिशन लेने के लिए यह एक बेसिक एलिजिबल क्राइटेरिया है. लेकिन बता दें कि प्रतिभाशाली मालविका ने प्रोग्रामिंग ओलंपियाड और इंफॉर्मेटिक्स के इंटरनेशनल ओलंपियाड में तीन पदक जीते है.
दरअसलस, जब मालविका 7वीं कक्षा में थी, तब उनके माता-पिता ने उन्हें स्कूल से निकाल दिया था. वह उस समय मुंबई के दादर पारसी यूथ असेंबली स्कूल में पढ़ रही थी और एक उत्कृष्ट छात्रा थीं. उन्हें स्कूल से निकालने का निर्णय उसकी माँ ने लिया था. हालांकि, उनके इंजीनियर पिता को इस कदम को स्वीकार करने में थोड़ा समय लगा. वहीं, मालविका की मां उनकी पढ़ाई नहीं छुड़वाना चाहती थी, इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर पर ही मालविका की शिक्षा जारी रखने के लिए उन्होंने एक शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार किया.
मालविका की असाधारण प्रतिभा के बावजूद, आईआईटी में उन्हें किसी भी तरह एडमिशन नहीं मिल सका. लेकिन एकमात्र इंडियन इंस्टीट्यूट, जहां उन्हें एडमिशन मिला, वह चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट (CMI) था, जिसने उन्हें उनके ज्ञान के आधार पर एमएससी लेवल के पाठ्यक्रम के लिए इनरेल किया, जो बीएससी लेवल के बराबर पाया गया था. कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में मालविका की प्रतिभा की पहचान एमआईटी (MIT) द्वारा की गई, जिसने उन्हें अंकों या शैक्षिक योग्यता के बजाय मेरिट के आधार पर एडमिशन दिया. ओलंपियाड में उनके पदकों ने ही उन्हें एमआईटी में दाखिला दिलाने में मदद की और अंत में उन्होंने बेचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल करने के लिए बोस्टन इस्टीट्यूट में एडमिशन लिया.