उमर अब्दुल्ला का बड़ा फैसला, जम्मू-कश्मीर में शैक्षणिक सत्र में हुआ बदलाव, अब मार्च में नहीं होगी परीक्षा
उमर अब्दुल्ला ने कहा `लंबे समय से, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर संभाग के शीतकालीन क्षेत्रों से, माता-पिता और छात्र परीक्षाओं के कार्यक्रम को मार्च के बजाय नवंबर-दिसंबर सत्र में बहाल करने की मांग कर रहे थे.`
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने के बाद उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के शीतकालीन क्षेत्र के शैक्षणिक सत्र के बारे में पहला बड़ा फैसला लिया. उमर ने जम्मू-कश्मीर की शिक्षा मंत्री सकीना मसूद इतु के साथ वीडियो बयान में 9वीं कक्षा तक के शैक्षणिक सत्र को मार्च सत्र के बजाय नवंबर-दिसंबर में बहाल करने की घोषणा की.
उमर अब्दुल्ला ने कहा "लंबे समय से, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर संभाग के शीतकालीन क्षेत्रों से, माता-पिता और छात्र परीक्षाओं के कार्यक्रम को मार्च के बजाय नवंबर-दिसंबर सत्र में बहाल करने की मांग कर रहे थे."
उन्होंने कहा, "आज शिक्षा मंत्री ने शैक्षणिक सत्र को नवंबर-दिसंबर में वापस लाने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाया और कैबिनेट ने इसे स्वीकार कर लिया है."
उन्होंने आगे कहा, "अब 9वीं कक्षा तक की सभी कक्षाओं की परीक्षाएं शीतकालीन अवकाश से पहले आयोजित की जाएंगी." "हालांकि, 10वीं से 12वीं कक्षा के छात्रों के मामले में, हम इस साल शैक्षणिक सत्र को बहाल नहीं कर सकते हैं, लेकिन 2025 में हम पुरानी योजना के अनुसार कार्यक्रम को वापस लाएंगे और उनकी परीक्षाएं भी शीतकालीन अवकाश से पहले आयोजित की जाएंगी."
शिक्षा मंत्री इतु ने एक्स पर लिखा, "हम कश्मीर प्रांत और जम्मू प्रांत के शीतकालीन क्षेत्रों के लिए नॉन-बोर्ड कक्षाओं यानी 9वीं कक्षा तक के लिए इस साल से नवंबर-दिसंबर में शैक्षणिक सत्र में बदलाव की घोषणा कर रहे हैं. उच्च कक्षाओं के लिए, सत्र अगले साल से बहाल किए जाएंगे. मैं छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से संबंधित मामले पर त्वरित निर्णय के लिए माननीय सीएम उमर अब्दुल्ला को धन्यवाद देती हूं."
2022 में, जम्मू-कश्मीर में एलजी मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाली सरकार ने शैक्षणिक सत्र को नवंबर-दिसंबर से बदलकर मार्च कर दिया था और कहा था कि यूनिफॉर्म एकेडमिक कैलेंडर का पालन किया जाएगा.
2022 से पहले कश्मीर के साथ-साथ जम्मू के शीतकालीन क्षेत्र में नवंबर-दिसंबर में शैक्षणिक सत्र होता था क्योंकि कश्मीर में तीन महीने कठोर सर्दी पड़ती थी और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले 2019 में लद्दाख क्षेत्र में भी इसका पालन किया जाता था, जब यह जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य का हिस्सा था.