छोटी उम्र से ही किया चुनौतियों का सामना, कई युद्ध लड़े; शिवाजी जयंती के मौके पर जानिए इस महान शूरवीर के बारे में
Shivaji Maharaj: छत्रपति शिवाजी महाराज पूरे देश के युवाओं के लिए बेहतरीन मिसाल है. उनका प्रेरक जीवन हर भारतीय को गर्व से भर देता है. शिवाजी ने साम्राज्य और धर्म के दुश्मनों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और जीते.
Chhatrapati Shivaji Birth Anniversary 2024: छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता और साम्राज्य के संस्थापक थे. वह देश के महान शासकों और योद्धाओं में से एक हैं, जो युवाओं को हर चुनौती से लड़ने की प्रेरणा देती है. वह मराठा साम्राज्य के सबसे पहले छत्रपति थे. उन्होंने छोटी सी उम्र से ही कई मुश्किल चुनौतियों का सामना किया था. पूरा जीवन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित करने वाले महान शूरवीर की आज जयंती है. इस मौके पर जानेंगे उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें...
कब और कहां हुआ था जन्म
मराठा साम्राज्या के महान शासक शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग पुणे में हुआ था. पिता शाहाजी और माता जीजाबाई ने अपने बेटे का नाम बड़े प्यार से शिवाजी राजे भोंसले रखा था.
शिवाजी की शिक्षा
शिवाजी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई. मां जीजाबाई ने उन्हें महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का पूरा ज्ञान दिया. बचपन में ही राजनीति और युद्ध नीति की शिक्षा हासिल कर लेने वाले शिवाजी का बचपन देश के महापुरुषों की कहानियां सुनते हुए और संतों के सत्संग के साथ गुजरा. वह धार्मिक, राजनीतिक, और युद्ध विद्या आदि सभी कलाओं में माहिर थे.
कैसे मिली छत्रपति की उपाधि?
शिवाजी महाराज की नीतियों, सैन्य योजनाओं और युद्ध कौशल के चलते सभी ओर उनकी तूती बोलती थी. उनकी सेना बहुत ही शक्तिशाली थी, जिसके कारण वह महाराष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बनकर उभरे. उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उनमें विजय पताका लहराईं. गुरिल्ला युद्ध कला के इस योद्धा की यह कला जंग में दुश्मनों पर बहुत भारी पड़ती थी. उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई थी. 6 जून 1674 को रायगढ़ में उन्हें 'किंग ऑफ मराठा' की उपाधि दी गई थी. इसके अलावा उन्हें प्रौढ प्रताप पुरंदर, क्षत्रिय कुलावतंस, सिंहासनाधीश्वर, हिन्दवा-धर्मोद्धारक जैसी कई उपाधियों से नवाजा गया था.
छत्रपति शिवाजी की मृत्यु
वहीं, जब औरंगजेब ने शिवाजी को धोके से कैद कर लिया था, तो अपनी अक्लमंदी और चतुराई से वह उसकी कैद से आजाद हो गए थे. पूरा जीवन सनातन धर्म की रक्षा में समर्पित करने वाले 3 अप्रैल 1680 को छत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गई.