UP Board Madrasa Education Act 2004: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 (UP Board Madrasa Education Act 2004) को 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया और राज्य सरकार को मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को अन्य स्कूलों में समायोजित करने का निर्देश दिया.


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जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बैंच ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता और बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2012 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर आदेश पारित किया है.


क्या है  यूपी मदरसा एजुकेशन बोर्ड एक्ट 2004?
दरअसल, यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 का उपयोग मदरसों के शिक्षा प्रणाली के विकास और प्रबंधन के लिए किया जाता है. इस एक्ट के तहत मदरसों के छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने की दिशा में कई प्रावधान हैं.


SIT का गठन के महीनों बाद आया फैसला
यह फैसला राज्य सरकार द्वारा राज्य में इस्लामी शिक्षा संस्थानों का सर्वे करने का निर्णय लेने और विदेशों से मदरसों की फंडिंग की जांच के लिए अक्टूबर 2023 में एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) का गठन करने के निर्णय लेने के महीनों बाद आया है.


मदरसों में आई 100 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग 
जांच रिपोर्ट में 8,000 से ज्यादा मदरसों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है. एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, सीमावर्ती इलाकों के करीब 80 मदरसों को करीब 100 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग मिली थी.


पिछले साल दिसंबर में, एक डिविजन बैंच ने मनमाने ढंग से निर्णय लेने की संभावित घटनाओं और ऐसे शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन में पारदर्शिता की आवश्यकता के बारे में चिंता जताई थी.


भारत संघ और राज्य सरकार पर उठाए गए सवाल 
पिछली सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने राज्य के शिक्षा विभाग के बजाय अल्पसंख्यक विभाग के दायरे में मदरसा बोर्ड को संचालित करने के पीछे के तर्क के संबंध में भारत संघ और राज्य सरकार दोनों पर सवाल उठाए थे.


यह अधिनियम मदरसों को राज्य अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के तहत कार्य करने का प्रावधान करता है. इसलिए, एक सवाल उठता है कि क्या मदरसा शिक्षा को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत चलाना मनमाना है, जबकि जैन, सिख, ईसाई आदि अन्य अल्पसंख्यक समुदायों सहित अन्य सभी शिक्षा संस्थान शिक्षा मंत्रालय के तहत चलाए जाते हैं.