पानी के भीतर कैसे सांस ले पाती है यह छिपकली? वैज्ञानिकों ने खोल दिया सुपर पावर का राज
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पानी के भीतर कैसे सांस ले पाती है यह छिपकली? वैज्ञानिकों ने खोल दिया सुपर पावर का राज

Water Anole Lizard: कोस्टा रिका के जंगलों में पाई जाने वाली छिपकलियां पानी के भीतर सांस ले पाती हैं. वह अपने थूथन पर हवा का एक अनोखा बुलबुला बनाती हैं और उसे छोटे स्कूबा टैंक के रूप में इस्तेमाल करती हैं.

पानी के भीतर कैसे सांस ले पाती है यह छिपकली? वैज्ञानिकों ने खोल दिया सुपर पावर का राज

Science News: बर्मिंघम यूनिवर्सिटी ने आधे समय पानी में रहने वाली छिपकली का राज खोल दिया है. वाटर एनोल (Anolis aquaticus) नाम मछली पानी के भीतर भी सांस लेने में सक्षम होती है. कोस्टा रिका के ट्रोपिकल जंगलों में पाई जाने वाली इस छिपकली ने कुछ साल पहले खूब सुर्खियां बटोरी थीं. तब इसे वहां के पानी में डूबे हुए हवा के चमकीले बुलबुलों को पकड़े हुए देखा गया था. रिसर्चर्स ने पाया कि यह छिपकली अपने नथुनों के ऊपर हवा का एक अनोखा बुलबुला बनाती है, जिससे यह लंबे समय तक पानी में डूबी रह सकती है. स्टडी की लीड ऑथर और इकोलॉजिस्ट लिंडसे स्विएर्क के प्रयोगों में इस अनूठे व्यवहार के बारे में जानकारी मिली.

कैसे बनते हैं ये बुलबुले?

स्विएर्क ने कहा, 'यह वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहला प्रयोग है जो वास्तव में बुलबुले के अनुकूली महत्व को दर्शाता है. इससे छिपकलियां पानी के नीचे अधिक समय तक रह पाती हैं. पहले, हमें इस पर शक था - हमने एक पैटर्न देखा - लेकिन हमने वास्तव में यह टेस्ट नहीं किया कि क्या यह कोई फंक्शनल रोल निभाता है.'

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अपने 'स्कूबा टैंक' का इस्तेमाल करती एक वाटर एनोल (Photo: Lindsey Swierk)

स्विएर्क ने इससे पहले, इन छिपकलियों को शिकारियों से खतरा महसूस होने पर पानी के नीचे गोता लगाते और अपने सिर के चारों ओर हवा के बुलबुले बनाते देखा था. लेकिन ये बुलबुले किस काम आते हैं, यह साफ नहीं था. पता लगाने के लिए डॉ स्विएर्क ने एक प्रयोग किया. उन्होंने कुछ छिपकलियों की त्वचा पर ऐसा पदार्थ लगाया जो बुलबुले बनने से रोकता है, एक कंट्रोल ग्रुप को यूं ही छोड़ दिया गया.

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प्रयोग से क्या पता चला?

प्रयोग के नतीजे हैरान करने वाले थे. बुलबुले बनाने में सक्षम छिपकलियां, बिना बुलबुले बनाने वाली छिपकलियों की तुलना में 32% अधिक समय तक पानी के अंदर रह सकती थीं. डॉ स्विएर्क की यह शानदार खोज Biology Letters में छपी है. यह इन फिर से सांस लेने वाले बुलबुलों के अनुकूली महत्व का ठोस सबूत पेश करती है.

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इन छिपकलियों को पक्षियों और सांपों जैसे शिकारियों से खतरा रहता है. पानी के नीचे गोता लगाकर और डूबे रहकर, वे 20 मिनट या उससे अधिक समय तक खतरे से बची रह सकती हैं. इस खोज से रिसर्च के नए रास्ते खुल गए हैं. शायद यह संभव है कि छिपकलियां कुछ जलीय कीटों की तरह बुलबुले का उपयोग गलफड़े के रूप में करती होंगी.

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