Indian Army Victory, History of 16 December: विजय दिवस 1971 में भारतीय सेना की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक है. हर साल 16 दिसंबर के दिन भारत बड़ी ही शान से विजय दिवस मनाता है.  इस दिन का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व है. विजय दिवस हर साल उन वीर सैनिकों की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक जीत को संभव बनाया. चलिए जानते हैं इस दिन पर हर भारतीय क्यों गौरवांवित महसूस करता है और कैसे यह देश के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ. 


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विजय दिवस का महत्व
विजय दिवस उन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश और मानवता की रक्षा की. यह दिन हमें सिखाता है कि न्याय और सत्य के लिए की गई लड़ाई हमेशा याद रखी जाती है. 16 दिसंबर का विजय दिवस केवल एक सैन्य जीत का उत्सव नहीं है, बल्कि यह मानवता, न्याय और साहस का प्रतीक है. यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है.


16 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है विजय दिवस?
16 दिसंबर 1971 का दिन भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है. विजय दिवस 16 दिसंबर को इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की थी. यह दिन भारतीय सेना और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी की निर्णायक जीत का प्रतीक है, जिसने पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर दिया और एक नए राष्ट्र, बांग्लादेश का जन्म हुआ. 


कब और कैसे शुरू हुआ 1971 का युद्ध?
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के 11 एयरबेस पर हमला किया. यह हमला भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत का कारण बना. इसके जवाब में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और युद्ध में कूद पड़ा.


बांग्लादेश बनने की पृष्ठभूमि
बांग्लादेश (पहले पूर्वी पाकिस्तान) सांस्कृतिक और राजनीतिक भेदभाव का शिकार था. पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन किया, जिसमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए. इस दमनकारी नीति के खिलाफ 26 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान ने स्वतंत्रता की मांग की.


भारत की भूमिका और इंदिरा गांधी का नेतृत्व
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मानवता और न्याय के पक्ष में खड़े होते हुए बांग्लादेश की मुक्ति के संघर्ष का समर्थन किया. भारतीय सेना ने बंगाली मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान को हराने की रणनीति बनाई.


युद्ध के प्रमुख मोर्चे और ऑपरेशन ट्राइडेंट
1971 का युद्ध दोनों मोर्चों पूर्व और पश्चिम पर लड़ा गया. इस दौरान भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत कराची बंदरगाह पर हमला कर पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुंचाया. यह भारतीय नौसेना के लिए ऐतिहासिक विजय साबित हुई.


पाकिस्तान का आत्मसमर्पण
13 दिनों तक चले इस युद्ध का समापन 16 दिसंबर को हुआ, जब पाकिस्तानी सेना के जनरल एए के नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. इस दिन 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जिसे इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है. इस आत्मसमर्पण के साथ ही बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया.


1971 के युद्ध का वैश्विक प्रभाव
इस युद्ध के बाद भारत ने क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई. बांग्लादेश का निर्माण न केवल भारतीय सेना की जीत थी, बल्कि मानवता और न्याय की भी विजय थी.