IAS Vandana Singh Chauhan: यूपीएससी की तैयारी के लिए छात्र सालों-साल मेहनत करते हैं. हालांकि कड़ी मेहनत के बाद भी बहुत से लोग इसमें सफल नहीं हो पाते, लेकिन कुछ लोग बिना किसी कोचिंग के ही दुनिया की इस सबसे मुश्किल परीक्षा को क्लीयर कर लेते हैं. ऐसी ही कहानी है हरियाण के नसरुल्लागढ़ की रहने वाली वंदना सिंह चौहान की. हिंदी मीडियम से पढ़ी वंदना ने साल 2012 में यूपीएससी में आठवीं रैंक पाई थी, हालांकि एक वक्त था, जब रूढ़िवादी सोच के कारण वंदना का परिवार उनकी पढ़ाई के खिलाफ था.


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दरअसल परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि वंदना ज्यादा पढ़ाई-लिखाई करें. हालांकि वंदना ने अपने सपने को पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष किया. वह शुरुआत से ही आईएएस अफसर बनना चाहती थीं. 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव में जन्मीं वंदना के परिवार में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था. एक इंटरव्यू के दौरान वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान ने बताया था कि गांव में कोई अच्छा स्कूल नहीं था, जिसके कारण उन्होंने अपने बेटे को पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था.


लेकिन वंदना भी आगे पढ़ना और बढ़ना चाहती थीं. वंदना के पिता बताते हैं, “उस दिन के बाद से ही उसने रट लगा ली थी कि मुझे कब पढ़ने भेजोगे?” शुरुआत में महिपाल सिंह चौहान ने बेटी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, हालांकि एक दिन जब वंदना के सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने गुस्से में आकर पिता से कह दिया कि मैं लड़की हूं, इसलिए मुझे पढ़ने नहीं भेज रहे.


बेटी की यह बात पिता को इस कदर चुभी कि उन्होंने वंदना का एडमिशन मुरादाबाद के एक गुरुकुल में करवा दिया, हालांकि वंदना की पढ़ाई को लेकर उनके दादा, ताऊ और चाचा समेत परिवार के सभी सदस्य महिपाल सिंह के फैसले के खिलाफ थे, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय के आड़े वंदना ने कभी किसी को नहीं आने दिया.


12वीं की परीक्षा के बाद वंदना ने घर पर रहकर यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. इस दौरान वह लॉ की पढ़ाई भी कर रही थीं. वह दिन में करीब 12-14 घंटे पढ़ाई करती थीं. एक इंटरव्यू के दौरान वंदना की मां मिथिलेश ने कहा था, गर्मियों में भी उसने अपने कमरे में कूलर नहीं लगने दिया. क्योंकि वह कहती थीं कि कमरे में ठंडक होने से नींद आती है.


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