Why Everyone Going to Moon: चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराकर भारत ने इतिहास रच दिया है. अब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा भी चांद के साउथ पोल पर मिशन भेजने की तैयारी में है. नासा के इस मिशन का मकसद होगा साइंटिफिक डिस्कवरी. लेकिन क्यों तमाम देश चांद पर एक के बाद एक मिशन भेज रहे हैं? आखिर उनको क्या चाहिए.आइए आपको बताते हैं.


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दरअसल हीलियम-3 पृथ्वी की सबसे महंगी चीजों में शुमार है. एक किलो हीलियम-3 की कीमत करीब 12.5 करोड़ रुपये के करीब है. जबकि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद पर 1.1 मिलियन टन के करीब हीलियम-3 मौजूद है और इसका काफी बड़ा हिस्सा साउथ पोल पर है. 


हीलियम-3 क्या है?


हीलियम गैस का एक स्टेबल आइसोटोप है हीलियम-3. यह प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से लैस होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एनर्जी का अहम सोर्स साबित हो सकता है. खास बात है कि न तो हीलियम-3 से किसी तरह का कोई वेस्टेज होता है और ना ही रेडिएशन निकलता है. इसका मतलब इससे जो ऊर्जा यानी एनर्जी बनेगी वह पूरी तरह क्लीन होगी. 


वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सिर्फ 1 ग्राम हीलियम-3 से 165 मेगावॉट आवर्स की बिजली बनाई जा सकती है. इससे करीब 16 घंटे तक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को बिजली सप्लाई की जा सकती है. 


धरती पर कहां उपलब्ध है हीलियम-3?


अब सवाल ये भी है कि जिस हीलियम-3 को पाने के लिए चांद पर एक के बाद एक मिशन भेजे जा रहे हैं, वो धरती पर कहां है? वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती के कोर यानी सबसे अंदरूनी हिस्से में हीलियम-3 पाई जाती है. यहां पहुंचना चांद पर जाने से भी कठिन ही है. धरती पर इसकी मात्रा सीमित है. कुछ वक्त पहले यूएस ज्योग्राफिकल यूनियन के जर्नल की रिपोर्ट पब्लिश हुई थी, जिसके मुताबिक हीलियम-3 का धरती के कोर से लगातार रिसाव हो रहा है. 


लेकिन वैज्ञानिकों को यह मालूम नहीं है कि वह जगह कहां है. हर साल करीब 2 किलो तक हीलियम-3 का रिसाव धरती से हो रहा है. हालांकि वैज्ञानिक कहते हैं कि हीलियम-3 का ज्यादातर हिस्सा बिग बैंग के बाद खत्म हो गया था. लेकिन यह फिलहाल मालूम चल नहीं पाया है कि क्यों पृथ्वी के कोर से 4.56 बिलियन साल बाद हीलियम-3 लीक हो रहा है.