Subhas Chandra Bose Birth Anniversary: भारत मंगलवार, 23 जनवरी को स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय सेना के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती मना रहा है. नेता जी के नाम से जाने जाने वाले, जिसका अर्थ है "सम्मानित नेता", बोस ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत करने में भूमिका निभाई. स्वतंत्रता संग्राम में उनकी अदम्य भावना को याद करने के लिए इस दिन को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाया जाता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

"दिल्ली चलो", "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" जैसे नारे देने वाले करिश्माई नेता का जन्म 23 जनवरी, 1897, कटक (बंगाल संभाग) उड़ीसा में एक प्रमुख वकील जानकीनाथ और प्रभावती के घर हुआ था. 


जानकीनाथ की 14 संतानों में बोस नौवीं संतान थे, जिनमें आठ बेटे और छह बेटियां शामिल थीं. राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण 1916 में उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता रेस्टिकेट कर दिया गया था. बाद में, उन्होंने 1919 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की.


पढ़ाई में अच्छे होने के कारण, बोस को भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भेजा गया, जिसे उन्होंने 1920 में पास किया. एक साल बाद, उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और देश में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने के बाद भारत वापस चले गए. नेताजी की जर्नी आसान नहीं थी वह साल 1921 और 1941 के बीच अलग अलग जेलों में कई बार कारावास का सामना करना पड़ा था.


वह 1923 में ऑल इंडिया युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और बाद में, 1938 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए. कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा वाले रास्ते का विरोध किया. उनका मानना था कि स्वतंत्रता दमन करने वालों से आसानी से नहीं मिलेगी, बल्कि उसे लड़कर लेना होगा.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर लाल किले में पराक्रम दिवस समारोह में हिस्सा लिया. वह देश की समृद्ध विविधता और अलग अलग संस्कृतियों को दिखाने के लिए नौ दिन के भारत पर्व का भी शुभारंभ करेंगे. स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दिग्गजों के योगदान को उचित रूप से सम्मानित करने के लिए कदम उठाने के प्रधान मंत्री की अप्रोच के अनुरूप, 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.