IAS Story: बेटी आईएएस बन जाए इसलिए मां ने नौकरी छोड़ी और घर में 4 साल तक TV ऑन भी नहीं हुआ

IAS देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. इसे पास करने के लिए कैंडिडेट्स दिन रात मेहनत करते हैं. सबकी अपनी अपनी अलग स्ट्रेटजी होती है. इसमें कैंडिडेट्स अपने सब्जेक्ट्स के मुताबिक अपनी पढ़ाई की प्लानिंग करते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही महिला आईएएस अफसर की कहानी बताने जा रहे हैं जोकि पहले प्रयास में प्री एग्जाम भी पास नहीं कर पाई थीं और दूसरी बार में उन्होंने 2 रैंक हासिल की.

Sep 17, 2022, 09:49 AM IST
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2020 में दूसरा स्थान मध्य प्रदेश की जागृति अवस्थी ने हासिल किया. जागृति मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MANIT) से एक इंजीनियर हैं. वह भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) में काम करती थीं, लेकिन जिला कलेक्टर बनने और सामाजिक उत्थान की दिशा में काम करने के अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

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अपने बुलंद सपनों के बावजूद, जागृति का पहला प्रयास प्लानिंग के मुताबिक नहीं हुआ, हालांकि, उसने केवल उसके संकल्प को मजबूत किया. जब COVID महामारी आई, तो अपनी स्थिति में अचानक बदलाव से घबराने के बजाय, जागृति ने उस समय और भी ज्यादा मेहनत की, जब महामारी ने स्टूडेंट्स को परीक्षा स्थगित करने की अनुमति दी थी. उसके चारों ओर देखने और इतने सारे लोगों को पीड़ित देखकर ही उन्हें अपने सपनों को प्राप्त करने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए और ज्यादा प्रेरणा मिली.

 

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जागृति यूपीएससी की तैयारी के लिए अपने 8-10-12-14 की अप्रोच से पढ़ाई की. विचार यह है कि अपने अध्ययन के समय को धीरे-धीरे बढ़ाकर अपनी तैयारी को मजबूत किया जाए और इस प्रकार आपके दिमाग को लंबी अवधि के लिए ज्यादा जानकारी संसाधित करने की अनुमति दी जाए. उनके रोजाना दिन के 8 से 10 घंटे समर्पित करने शुरू किए, धीरे-धीरे परीक्षा से दो महीने पहले इसे बढ़ाकर 12 से 14 घंटे कर दिया, यह कठिन लग सकता है.

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साल 2019 में जागृति ने अफसर बनने के सपने को पूरा करने की ठान ली और दिल्ली के एक कोचिंग संस्थान में एडमिशन ले लिया, हालांकि कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान उन्हें भोपाल लौटना पड़ा, लेकिन उनकी पढ़ाई नहीं रुकी. जागृति ने ऑनलाइन क्लासेज कीं.

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आईएएस बनने के लिए जागृति ने इंजीनियरिंग छोड़ी तो उनके माता पिता ने भी बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया. मां ने बेटी की मदद के लिए टीचर की नौकरी छोड़ दी.

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घर पर चार साल से टीवी को ऑन भी नहीं किया गया. ये सारे बलिदान जागृति को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे. पहले प्रयास में जागृति प्रीलिम्स भी पास नहीं हो सकी थीं लेकिन उन्होंने दृढ़ निश्चय किया और दूसरे प्रयास में टॉपर बन गईं.

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