Mushtaq Ahmad Bukhari passes away: जम्म कश्मीर में मंगलवार (1 अक्टूबर) को आखिरी चरण में 7 जिलों की 40 सीटों पर वोटिंग हुई और अब नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे. लेकिन, वोटिंग खत्म होने के एक दिन बाद ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री और सुरनकोट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार मुश्ताक अहमद शाह बुखारी (Mushtaq Ahmed Shah Bukhari) का बुधवार को निधन हो गया. सुरनकोट सीट से बीजेपी उम्मीदवार मुश्ताक अहमद शाह बुखारी के निधन के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या चुनाव आयोग फर से मतदान कराएगा. तो चलिए आपको बताते है कि इसको लेकर क्या नियम है.


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दो बार के विधायक और पूर्व मंत्री


मुश्ताक बुखारी अपने पुंछ जिले में स्थित आवास पर थे, जब उनको दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया.  75 साल के बुखारी के परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है. भाजपा के एक नेता ने बताया कि मुश्ताक अहमद शाह बुखारी (Mushtaq Ahmed Shah Bukhari) कुछ समय से अस्वस्थ थे और सुबह करीब सात बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिससे उनकी मौत हो गई. सुरनकोट से दो बार के विधायक रह चुके बुखारी फरवरी 2023 में भाजपा में शामिल हुए थे, जब केंद्र ने उनके पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया था.


सुरनकोट मे 25 सितंबर को डाले गए थे वोट


मुश्ताक अहमद शाह बुखारी (Mushtaq Ahmed Shah Bukhari) ने फरवरी 2022 में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के साथ चार दशक लंबा नाता तोड़ दिया था और फरवरी 2023 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) शामिल हो गए थे. इसके बाद बीजेपी ने उन्हें सुरनकोट से चुनाव मैदान में उतारा था. इस सीट पर 25 सितंबर को दूसरे चरण में 25 अन्य सीटों के साथ मतदान हुआ था.


दरअसल अनुसूचित जनजाति के दर्जे को लेकर उनका पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला से विवाद हुआ था, जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रवींद्र रैना और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने बुखारी के निधन पर शोक व्यक्त किया. रवीद्र रैना ने कहा कि बुखारी जननेता थे और उनके निधन से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भरना बहुत मुश्किल है.


क्या अब इस सीट पर दोबारा होंगे चुनाव?


नियम के अनुसार, अगर मतदान से पहले ही अगर किसी उम्मीदवार का निधन हो जाए तो चुनाव आयोग उस सीट पर चुनाव रद्द कर देता है और फिर मतदान के लिए नई तारीख घोषित की जाती है. हालाकि, अगर वोटिंग के बाद किसी प्रत्याशी की मौत हो जाए तो ऐसी स्थिति में तय कार्यक्रम के अनुसार वोटों की गिनती की जाती है और यदि काउंटिंग में मृतक उम्मीदवार की जीत होती है तो चुनाव रद्द कर दिया जाता है और जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 151A के तहत 6 महीने के अंदर उस सीट पर फिर से चुनाव कराए जाते हैं. वहीं, अगर नामांकन से पहले ही किसी प्रत्याशी का निधन हो जाए तो चुनाव आयोग उस पार्टी को दूसरा उम्मीदवार मैदान में उतारने और नामांकन का मौका देती है.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी भाषा)