अबकी बार के चुनावों में सबसे ज्‍यादा यूपी ने चौंकाया है. यहां के अप्रत्‍याशित नतीजों ने बीजेपी को तगड़ा झटका दिया. उसका असर ये हुआ कि सूबे में अब अखिलेश यादव के नेतृत्‍व वाली समाजवादी पार्टी के पास सबसे ज्‍यादा सीटें हैं. कहा जा रहा है कि जो करिश्‍मा 'धरतीपुत्र' मुलायम सिंह यादव नहीं कर सके वो कमाल बेटे अखिलेश यादव ने कर दिया. मुलायम सिंह जहां यूपी में अपने सियासी सफर के दौरान अधिकतम 35 सीटें जीत सके वहीं अखिलेश यादव ने उनसे ज्‍यादा 37 सीटें हासिल कीं. वो भी तब जब एग्जिट पोल से लेकर लगभग सभी ये कह रहे थे कि गिरी से गिरी हालत में बीजेपी कम से कम 50 लोकसभा सीटें जीतेगी. वो सारे अनुमान धरे रह गए और अखिलेश यादव बाजी मार ले गए. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

नई सच्‍चाई ये है कि सपा अब देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. 2004 के लोकसभा चुनावों में यूपी की 80 सीटों में से मुलायम सिंह यादव ने 35 सीटें जीती थीं. उस चुनाव में बसपा ने 19 और भाजपा ने 10 सीटें जीती थीं. 


अखिलेश यादव के लिए ये जीत इसलिए भी बड़ी है क्‍योंकि सपा-कांग्रेस के गठबंधन में यूपी की 80 में से से उनकी पार्टी ने 62 सीटों पर उम्‍मीदवार उतारे थे और उनमें से 37 को जीत हासिल हुई है. कांग्रेस ने 17 प्रत्‍याशी उतारे थे और उनको छह सीटें मिली हैं. 2019 के चुनावों पर यदि नजर डाली जाए तो पाएंगे तो उस दफे बीजेपी को 62 और सपा-बसपा गठबंधन को 15 सीटें मिली थीं.


सपा की सियासत
1. पेपर लीक, बेरोजगारी, अग्निवीर, आर्थिक कमजोरी, आरक्षण को कमजोर करने जैसे मुद्दों पर सपा-कांग्रेस ने फोकस किया. अखिलेश यादव ने बड़ी रैलियों के बजाय छोटी-छोटी सभाओं पर फोकस किया.


2. सपा-कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद बीएसपी को अपने पाले में नहीं ला सके. इसके अलावा मायावती के भाषणों-रैलियों में सपा का विरोध और प्रत्‍याशियों के चयन को लेकर ग्राउंड में ये मैसेज गया कि वो बीजेपी के खिलाफ नहीं बल्कि इंडिया अलायंस के खिलाफ लड़ रही हैं. लिहाजा उनके कोर दलित वोटर बेस ने उनका साथ छोड़ दिया और वो इंडिया अलायंस की तरफ शिफ्ट हुआ. 


राम मंदिर बनने के बावजूद प्रतिष्‍ठा की सीट अयोध्‍या क्‍यों हारी BJP?


3. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्‍या सीट है. राम मंदिर प्राण-प्रतिष्‍ठा होने और पूरी तरह से इस मुद्दे को उछालने के बावजूद बीजेपी इस सीट को नहीं बचा पाई. सपा ने सुनियोजित तरीके से फैजाबाद जनरल सीट से अपने दलित चेहरे अवधेश प्रसाद को उतारा. नौ बार विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के लगातार दो बार से सांसद लल्‍लू सिंह को हरा दिया. कहने का आशय ये है कि दलित वोटरों ने अबकी बार मायावती का साथ नहीं दिया. नतीजतन बसपा का खाता नहीं खुला और वो वोटर बेस कहीं न कहीं इंडिया अलायंस की तरफ चला गया. 


4.अखिलेश यादव ने मुस्लिम-यादव परंपरागत वोट बैंक पर इस बार दांव नहीं लगाया. उनके 62 प्रत्‍याशियों में से केवल 5 चेहरे यादव थे और संयोग से वो सभी उन्‍हीं के परिवार के सदस्‍य हैं. इसके अलावा वो अंत तक स्‍थानीय नेताओं के फीडबैक के आधार पर अपने प्रत्‍याशियों को बदलते रहे. उस वक्‍त तो सियासी जानकार ये मान रहे थे कि अखिलेश की ये रणनीति बैकफायर भी कर सकती है लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मुरादाबाद, मेरठ समेत कई जगहों पर उन्‍होंने टिकट बदले. इसका नतीजा ये है कि वो अंतिम समय में अपने लिए एकदम परफेक्‍ट प्रत्‍याशी तलाश सके. 


5. प्रत्‍याशियों के लिए उन्‍होंने PDA फॉर्मूले को अपनाया जिसमें पिछड़ा, दलित, अल्‍पसंख्‍यक समेत सभी जातियां थीं. टिकट वितरण में भी इसका ख्‍याल रखा गया जबकि बीजेपी इसके बरक्‍स कोई नैरेटिव नहीं दे पाई.