NDA Government: 1999 में कैसे चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP की वजह से 1 वोट से गिर गई थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
Chandrababu Naidu TDP: भाजपा के नेतृत्व में साल 1998 में केंद्र में दूसरी बार एनडीए की सरकार बनी थी. अटल बिहारी वाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने थे. 13 महीने बाद ही साल 1999 के अप्रैल महीने में यह सरकार महज एक वोट से गिर गई थी. इसका एक बड़ा कारण एनडीए के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी के पास स्पीकर का पद होना था.
Lok Sabha Speaker Post: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में एनडीए ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी कर ली है. भाजपा के पुरानी सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी फिर से सरकार में शामिल हो रही है. चर्चा है कि टीडीपी ने इस बार भी प्रमुख मंत्रालयों के साथ ही लोकसभा स्पीकर पद की मांग भी रखी है.
25 साल पहले के सियासी वाकए की याद ताजा
इस मामले ने राजनीतिक जानकारों के बीच 25 साल पहले के सियासी वाकए की याद ताजा कर दी. तब चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी की वजह से ही महज एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने की सरकार गिर गई थी. लोकसभा स्पीकर की इसमें बड़ी भूमिका थी और यह पोस्ट टीडीपी के पास ही था. आइए, भारतीय राजनीति की उस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बारे में विस्तार से जानते हैं.
वाजपेयी सरकार गिराने में कई प्लेयर्स, लेकिन स्पीकर की वजह से बड़ा खेल
करीब 25 साल पहले अप्रैल 1999 में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके की ओर से समर्थन वापसी के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. उन्हें सदन में अपना बहुमत साबित करना था. 17 अप्रैल 1999 को इस प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी. प्रमोद महाजन ने अनुमान लगा लिया था कि बहुमत उनके साथ है और वाजपेयी अपनी कुर्सी बचा लेंगे. बसपा प्रमुख मायावती भी सरकार से अलग हो चुकी थीं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के सैफुद्दीन सोज भी खिलाफ हो गए थे. फिर भी वाजपेयी सरकार को बहुमत था, लेकिन स्पीकर ने कांग्रेस सांसद गिरधर गमांग को लोकसभा में वोट देने का अधिकार दिया और खेल पलट गया.
मुख्यमंत्री को सांसद के रूप में विवेक के आधार पर वोट देने की इजाजत
कांग्रेस के सांसद गिरधर गमांग 17 फरवरी 1999 को ही ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे. प्रमोद महाजन को गलतफमी थी कि गमांग ने इस्तीफा दे दिया होगा या उन्हें लगता था कि नैतिकता और नियमों के आधार पर गिरधर गमांग बतौर सांसद वो देने नहीं आएंगे. क्योंकि वह मुख्यमंत्री हैं. लंबे समय बाद वोटिंग के दिन अचानक संसद पहुंचकर गिरधर गमांग ने सत्ता पक्ष में खलबची मचा दी.
मामला लोकसभा अध्यक्ष और चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी के सांसद जीएमसी बालयोगी तक पहुंचा और उन्होंने रूलिंग दी कि गिरधर गमांग अपने विवेक के आधार पर वोटिंग करें. गमांग ने अपनी पार्टी की बात सुनी और वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट किया. इस एक वोट की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई. तब सरकार के पक्ष में 269 वोट और सरकार के खिलाफ कुल 270 वोट पड़े थे.
संविधान के आर्टिकल 93 और 178 में लोकसभा अध्यक्ष का जिक्र
संविधान के आर्टिकल 93 और 178 में लोकसभा के अध्यक्ष पद और उनकी ताकत के बारे में विस्तार से बताया गया है. सदन की कार्यवाही चलने के दौरान लोकसभा अध्यक्ष की सबसे बड़ी ताकत होती है. संसद सत्र में स्पीकर ही सबसे बड़ी अथॉरिटी होती है. लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करना हो, लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देना हो, बैठक का एजेंडा क्या हो, सदन कब चलेगा, कब स्थगित होगा, किस बिल पर कब वोटिंग होगी, कौन वोट करेगा और कौन वोट नहीं करेगा जैसे तमाम अहम मुद्दे पर स्पीकर का फैसला ही सर्वमान्य होता है.
दलीय प्रतिबद्धता से ऊपर होता है लोकसभा अध्यक्ष का पद, लेकिन...
इसलिए सैद्धांतिक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी भी राजनीतिक पार्टी से ऊपर और बिल्कुल निष्पक्ष होता है. इसी स्पीकर पद पर रहते हुए चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सांसद जीएमसी बालयोगी का इतिहास और तत्कालीन भाजपा-एनडीए के सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ व्यवहार भूलाया नहीं जा सकता. इसलिए एनडीए की मौजूदा सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ही लोकसभा अध्यक्ष का पद टीडीपी को सौंपे. क्योंकि गठबंधन सरकार को विशेष परिस्थितियों में स्पीकर के संरक्षण की जरूरत बनी रहती है. क्योंकि आमतौर पर स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर भी कोई बड़ा फायदा नहीं होता है.
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