2024 में सियासत घूमकर 35 साल पुराने दौर में लौट गई है. यहां बात 1989 की हो रही है जब वीपी सिंह के नेतृत्‍व  में जनता दल की सरकार के साथ ही गठबंधन युग शुरू हुआ था. उसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी के केंद्रीय पटल पर आने के बाद ही बीजेपी को अपने दम पर स्‍पष्‍ट बहुमत मिला. 2019 में भी वह जलवा बरकरार रहा लेकिन इस बार बीजेपी अपने दम पर बहुमत के जादुई आंकड़े 272 तक नहीं पहुंच सकी. अब बीजेपी के नेतृत्‍व वाली एनडीए सरकार तो बनेगी लेकिन किंगमेकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू होंगे. कहने का मतलब ये है कि अब बीजेपी को गठबंधन धर्म का पालन करना पड़ेगा और सहयोगी दलों की मांगों को मानना पड़ेगा. 


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इसका असर ये होगा कि बीजेपी के कई महत्‍वपूर्ण फैसलों और सुधारों की राह पर ब्रेक लग सकता है. उसका कारण ये है कि नायडू और नीतीश के साथ बीजेपी के अतीत में रिश्‍ते उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं.  इन सूरतेहाल में आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से 4 अहम बीजेपी के फैसले हैं जिनकी आगे की राह मुश्किल हो सकती है:


वन नेशन-वन इलेक्‍शन
पीएम नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी का ये महत्‍वाकांक्षी अभियान है. सरकार ने पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्‍व में इसके लिए एक कमेटी भी गठित की थी. नायडू की पार्टी टीडीपी इसके पक्ष में नहीं रही है लेकिन नीतीश कुमार ने एक देश-एक चुनाव का समर्थन किया था. विपक्ष इसके खिलाफ रहा है और अब और मजबूती के साथ अपना मुखालफत करेगा. 


परिसीमन का सवाल
बीजेपी ने 2029 तक महिला आरक्षण देने का वादा किया है. यह परिसीमन लागू होने के बाद ही संभव होगा. परिसीमन का सबसे ज्‍यादा असर दक्षिण में होगा इसलिए वहां की पार्टियां इसके विरोध में है. लिहाजा इसके असर को देखते हुए टीडीपी भी इसके खिलाफ है.


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यूनिफॉर्म सिविल कोड
 भाजपा इसको लागू करने के पक्ष में है. तीसरी बार अपने दम पर बहुमत पाने की स्थिति में पूरे देश में इसको लागू करने की तैयारी थी. उत्‍तराखंड में तो इससे संबंधित बिल को विधानसभा में पेश भी किया गया. अब सहयोगी दलों के विरोध के कारण बीजेपी इसको अपनी प्राथमिकता सूची से हटाने पर मजबूर हो सकती है.


विनिवेश और विशेष राज्‍य
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू पब्लिक सेक्‍टर की कंपनियों में विनिवेश का विरोध करती रही है. लिहाजा बीजेपी को उसकी मांग के सामने झुकना पड़ सकता है. इसके साथ ही जेडीयू बिहार को विशेष राज्‍य का दर्जा देने की बात कहती रही है. चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी भी यही मांग करती रही है. उसने तो आंध्र प्रदेश के विशेष राज्‍य के मुद्दे पर ही 2018 में बीजेपी का साथ छोड़ दिया था.