Kanpur Lok Sabha Election 2024: कानपुर में रमेश अवस्थी ने दर्ज की अपने नाम जीत, नहीं चला इंडिया गठबंधन का जादू
Alok Mishra Kanpur Lok Sabha Chunav: हाल के वर्षों में यह धारणा खूब रही कि कानपुर वाले जिस पार्टी को लोकसभा चुनाव में जिताते हैं, केंद्र में उसी की सरकार बनती है. `मैनचेस्टर ऑफ यूपी` के नाम से मशहूर कानपुर अब वैसा नहीं रहा. यहां से लगातार कांग्रेस जीतती रही बाद में भाजपा को मौका मिला. कांग्रेस ने आलोक मिश्रा (Congress Candidate) को टिकट दिया है.
Kanpur Lok Sabha Election 2024: किसी जमाने में आज का कानपुर 'कान्हपुर' हुआ करता था. गंगा किनारे इस शहर में उद्योग-धंधे फले फूले. एक समय दूर राज्यों से लोग यूपी की औद्योगिक राजधानी में नौकरी करने आते थे. हालांकि वक्त के साथ रेस में कानपुर पिछड़ गया. दिल्ली-हावड़ा रेलवे रूट पर कानपुर से होकर लाखों लोग रोज आते जाते हैं. आईआईटी यहां की शान है. राजनीति की बात करें तो वह भी कम दिलचस्प नहीं है. जी हां, कानपुर के लोगों का मिजाज आप इसी से समझ लीजिए यहां से निर्दलीय, जनता पार्टी, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और भाजपा सभी को मौका मिला है. एक बात और. यहां के लोग जिसे जिताते हैं कुछ अपवाद को छोड़कर उसे कई बार मौका देते हैं. कांग्रेस ने करीब तीन दशक बाद ब्राह्मण कैंडिडेट के रूप में आलोक मिश्रा (Alok Mishra Kanpur) को खड़ा किया है. भाजपा ने रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा है.
कानपुर लोकसभा चुनाव रिजल्ट 2024
कानपुर लोकसभा सीट पर चौथे चरण में 13 मई को वोट डाले गए. यहां कुल 53.05 प्रतिशत वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. सबसे कम आर्य नगर विधानसभा में वोटिंग हुई. लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आएंगे.
भाजपा | रमेश अवस्थी |
सपा-कांग्रेस | आलोक मिश्रा |
बसपा | कुलदीप भदौरिया |
आरिफ मोहम्मद भी कानपुर से जीते
केरल के वर्तमान राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कभी कानपुर से जीतकर संसद पहुंचे थे. 2014 में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी ने ब्राह्मण बहुल कानपुर लोकसभा सीट कांग्रेस से छीन ली. वह प्रयागराज से यहां आकर लड़े थे. उसके बाद 2019 में भी भाजपा ने यह सीट अपने पास रखी. इस समय यहां से भाजपा के सत्यदेव पचौरी सांसद हैं. 75 साल से ज्यादा उम्र के कारण इस बार उनका टिकट कट सकता है.
भाजपा vs सपा-कांग्रेस
फिलहाल यूपी के 8 बार के विधायक सतीश महाना और यूपी के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक यहां से अपने लिए संभावनाएं देख रहे हैं. सतीश महाना यहां से भाजपा के टिकट पर 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 2019 के चुनाव में यहां कांग्रेस दूसरे और सपा तीसरे नंबर पर रही थी. इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन होने से फाइट जोरदार हो सकती है. सपा ने कांग्रेस के जनाधार को देखते हुए यह सीट उसे दी है.
कांग्रेस से आलोक मिश्रा और अजय कपूर का नाम चर्चा में था और अब मिश्रा को टिकट मिल गया है. कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल यहां से कई बार जीते थे और केंद्र में मंत्री भी रहे. पिछले लोकसभा चुनाव में श्रीप्रकाश के सपोर्ट में प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार किया था फिर भी कांग्रेस जीत नहीं सकी. भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी के आने से पहले तक कांग्रेस के 'श्री' फैक्टर का कानपुर में अच्छा खासा प्रभाव था.
1952 | हरिहर नाथ शास्त्री-शिव नारायण टंडन | कांग्रेस |
1957 | एसएम बनर्जी | स्वतंत्र नेता |
1962 | एसएम बनर्जी | स्वतंत्र नेता |
1967 | एसएम बनर्जी | स्वतंत्र नेता |
1971 | एसएम बनर्जी | स्वतंत्र नेता |
1977 | मनोहर लाल | जनता पार्टी |
1980 | आरिफ मोहम्मद खान | कांग्रेस |
1984 | नरेश चन्द्र चतुर्वेदी | कांग्रेस |
1989 | सुभाषिनी अली | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) |
1991 | जगत वीर सिंह द्रोण | भाजपा |
1996 | जगत वीर सिंह द्रोण | भाजपा |
1998 | जगत वीर सिंह द्रोण | भाजपा |
1999 | श्रीप्रकाश जायसवाल | कांग्रेस |
2004 | श्रीप्रकाश जायसवाल | कांग्रेस |
2009 | श्रीप्रकाश जायसवाल | कांग्रेस |
2014 | मुरली मनोहर जोशी | भाजपा |
2019 | सत्यदेव पचौरी | भाजपा |
समझिए आलोक मिश्रा को कांग्रेस ने क्यों उतारा?
तीन दशकों से यहां सामान्य जाति के नेता ही जीतते रहे हैं. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रमुख दलों ने अपर कास्ट को ही यहां से मौका दिया. सबसे ज्यादा 5 लाख से ज्यादा सामान्य वोटरों के बाद कानपुर में ओबीसी, अनुसूचित जाति और मुसलमान वोटर हैं. ओबीसी तीन लाख, अल्पसंख्यक 4 लाख और अनुसूचित जाति के वोटर पौने चार लाख के करीब हैं. मुस्लिम और अनुसूचित जाति का वोट जिस तरफ साथ जाता है, जीत उसी की होती है. ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण को देखते हुए ही कांग्रेस ने आलोक मिश्रा को टिकट देने का फैसला किया.