Lok Sabha Chunav Result: लोकसभा चुनावों के परिणामों ने बीजेपी के लिए कुछ राज्यों के लिए नई प्लानिंग पर विचार करने को मजबूर किया है. अगले कुछ महीनों में महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं. इसमें महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा में तो इसी वर्ष अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हैं. लोकसभा में महाराष्ट्र के नतीजों ने बीजेपी को बड़ा झटका दिया है. जिन मंसूबों के साथ बीजेपी ने शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजीत पवार गुट के साथ नए-नए फॉर्मूले बनाए थे, वो सारे लगभग असफल साबित हुए हैं.


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- महाराष्ट्र की 48 में से बीजेपी को 9, शिवसेना शिंदे गुट को 7, एनसीपी अजीत गुट को 1 सीट यानी कुल 17 सीट मिली है.
- जबकि 2019 में जब बीजेपी और शिवसेना के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था, तब बीजेपी को 23, शिवसेना को 18 सीटें यानी कुल 41 सीटें मिली थीं.


भाजपा को कैसे पहुंचा नुकसान?


जोड़-तोड़ की नीति ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है. पुराने साथी शिवसेना में हुई फूट से शिंदे गुट उभरा. इसके साथ मिलकर राज्य में तो बीजेपी ने सत्ता हासिल कर ली. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र से हासिल होना चाहिए था वो नहीं हुआ. वहीं दूसरी ओर इस बार 13 सीटें कांग्रेस, 9 सीटें शिवसेना उद्धव गुट और 8 सीटें एनसीपी शरद पवार गुट को मिली हैं, यानी कुल 30 सीटें INDI गठबंधन के खाते में गईं, जिसका नुकसान बीजेपी को भी हुआ.


..तो कामयाबी के चांस ज्यादा हैं


लोकसभा के नतीजों से एक बात साफ है, कि अगर एकजुट शिवसेना, बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े, तो कामयाबी के चांस ज्यादा हैं. आज इससे जुड़ा एक बड़ा राजनीतिक संकेत महाराष्ट्र बीजेपी से मिलता दिखा. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए, इस्तीफे के पेशकश कर दी है. कई राजनीतिक विश्लेषकों को इस कदम में विधानसभा चुनाव की Future Planning दिख रही है. इसको इस तरह से समझ सकते हैं कि


- महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से बीजेपी 103 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है,
- वहीं एनसीपी का अजीत गुट और शिवसेना का शिंदे गुट 40-40 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर हैं.
- दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है जिसके पास 41 सीटें हैं.


एनसीपी में फूट पड़ी और..


2019 विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी ने सरकार बनाई थी. 2022 में शिवसेना की गुटबाजी ने अघाड़ी सरकार गिरा दी, और नाटकीय तरीके से बीजेपी ने शिवसेना के शिंदे गुट के साथ मिलकर सरकार बना ली. बाद में एनसीपी में फूट पड़ी और अजीत गुट, सरकार में जुड़ गया. इस जोड़ तोड़ का लोकसभा चुनावों में कोई फायदा नहीं हुआ. राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि शिवसेना का उद्धव गुट और शिंदे गुट, एक बार फिर से साथ आकर, बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ सकता है. इससे केंद्र में भी NDA को उद्धव गुट के 9 सांसदों का साथ मिलेगा.


महाराष्ट ही नहीं, इस बार हरियाणा ने भी बीजेपी का चौंका दिया है.


- 2014 में 9 और 2019 में 10 की 10 सीटें जीतने वाली बीजेपी, 2024 चुनाव में केवल 5 सीटें जीत पाई है.
- बाकी बची पांच सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं.
- सिर्फ यही नहीं पिछली बार बीजेपी को 58 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन इस बार उन्हें केवल 46 प्रतिशत यानी 12 प्रतिशत कम वोट शेयर मिला है.


हरियाणा के लोगों में बीजेपी के प्रति विश्वास घटा


संकेत यही है कि हरियाणा के लोगों में बीजेपी के प्रति विश्वास घटा है. इसी वर्ष हरियाणा में भी चुनाव होने हैं. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, उसने जेजेपी के साथ सरकार बनाई है. लोकसभा चुनाव के परिणामों ने बीजेपी को हरियाणा पर ज्यादा ध्यान देने को मजबूर किया है. कई राजनीतिक जानकार, इस खराब परिणाम के पीछे सीएम बदलने से मची कलह को जिम्मेदार मानते हैं.


नीतीश कुमार की राजनीतिक फितरत


अगले साल यानी वर्ष 2025 में बिहार में चुनाव होने हैं. इसमें सबसे मुख्य भूमिका नीतीश कुमार की रहने वाली. नीतीश फिलहाल NDA में अपने 12 सांसदों के समर्थन के साथ सरकार में शामिल हो रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार की राजनीतिक फितरत, टेनिस बॉल की तरह है. जो कभी इस पाले में है तो कभी उस पाले में.


बिहार में एनडीए को 30 सीटें


बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से एनडीए को 30 सीटें मिली हैं. इसमें बीजेपी और जेडीयू को सबसे ज्यादा 12-12 सीटें मिली हैं. इसके अलावा एलजेपी को 5 और हिंदुस्तान अवामी मोर्चा को 1 सीट मिली है. वर्ष 2020 विधानसभा चुनावों में JDU और BJP ने मिलकर जीत दर्ज की थी.इसमें बीजेपी बड़े भाई और JDU छोटे भाई की भूमिका में थी. उस चुनाव में आरजेडी 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी, दूसरे नंबर पर 78 सीटों के साथ बीजेपी और तीसरे नंबर पर 44 सीटों के साथ नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए गए. वर्ष 2022 में नीतीश ने पलटी मार ली, और बीजेपी छोड़कर RJD के साथ सरकार बना ली. गठबंधन की अंदरूनी राजनीति ने नीतीश कुमार को फिर से पलटी मारने को मजबूर कर दिया. ऐसे में लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले, नीतीश कुमार, NDA में शामिल हो गए. उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली.