Amethi Lok Sabha Chunav: अमेठी में जब गांधी vs गांधी हुआ लोकसभा चुनाव, नतीजे आए तो एक की जमानत जब्त हो गई
Amethi अब कांग्रेस के हाथ से फिसलकर भाजपा के पाले में जा चुका है. यहां स्मृति इरानी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Lok Sabha Election) को पिछले चुनाव में करारी शिकस्त दी. इस बार फिर चर्चा है कि राहुल अमेठी से लड़ सकते हैं. हालांकि एक बार इस सीट से चुनाव में गांधी परिवार के दो कैंडिडेट उतरे थे.
Lok Sabha Election 2024: राजनीति को थोड़ा भी समझने वाले जानते हैं कि अमेठी (Amethi News) गांधी परिवार का गढ़ रहा है. इस सिलसिले को स्मृति इरानी ने तोड़ा. हालांकि आज की पीढ़ी को यह जानकर हैरानी होगी कि एक बार अमेठी लोकसभा चुनाव में फाइट गांधी vs गांधी परिवार की हो गई थी. जी हां, वो लोकसभा चुनाव था 1984 का. तब राजीव गांधी के सामने मेनका गांधी मैदान में उतर गई थीं. यह स्थिति कैसे बनी, इसे समझने के लिए थोड़ा और पीछे चलना होगा.
गांधी परिवार में झगड़ा
हवाई दुर्घटना में संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी अपने दूसरे बेटे राजीव गांधी को राजनीति में वो स्पेस देना चाहती थीं. अचानक मार्च 1982 में लंदन से लौटने के बाद इंदिरा के घर में माहौल गरम हो गया. वह संजय की पत्नी मेनका गांधी से नाराज थीं. मेनका ने संजय के भरोसमंद अकबर अहमद के सहयोग से लखनऊ में एक जनसभा की थी. इसके जरिए मेनका ने सक्रिय राजनीति में आने का ऐलान कर दिया था. वह संजय गांधी की खाली जगह को खुद भरना चाहती थीं जबकि सास इंदिरा गांधी राजीव को तैयार कर रही थीं. पूरी फाइट संजय गांधी के निर्वाचन क्षेत्र और नेहरू-गांधी परिवार के गढ़ अमेठी को लेकर थी.
राजीव गांधी vs मेनका गांधी
संजय की मौत के बाद 1981 में हुए उपचुनाव में बड़े भाई राजीव गांधी अमेठी से जीत चुके थे. लेकिन मेनका इससे खुश नहीं थीं. वैसे संजय के जीवित रहते इंदिरा गांधी उन्हें ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी मानकर चल रही थीं. दूसरी तरफ राजीव गांधी अपने फ्लाइंग करियर से ही खुश थे. हालांकि संजय की मौत पर जब इंदिरा ने राजीव को आगे किया तो मेनका गांधी को यह पसंद नहीं आया. मेनका 1970 के दशक में अपने पति के साथ चुनाव प्रचार में दिखाई दे चुकी थीं. रशीद किदवई ने '24 अकबर रोड' में लिखा है कि 1981 उपचुनाव के समय राजीव गांधी ने नामांकन दाखिल किया तो मेनका ने भी काफी कोशिश की लेकिन वह उस समय 25 साल की नहीं थीं जो देश में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र सीमा थी. वह चाहती थीं कि रूल बदला जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
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मार्च 1982 की एक रात वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का घर छोड़कर चली गईं. उस समय वरुण गांधी करीब 2 साल के थे. (ऊपर तस्वीर उसी रात की है) इसके बाद मेनका गांधी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा स्पष्ट हो गई. राजीव गांधी के अमेठी उपचुनाव जीतने के एक साल बाद ही मेनका गांधी ने वहां का दौरा किया. उन्होंने राष्ट्रीय संजय मंच बनाया और 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से आम चुनाव लड़ने का फैसला किया. चुनाव प्रचार में वह कांग्रेस कल्चर के खिलाफ बोलती नजर आतीं.
राजीव के साथ उतरीं सोनिया गांधी
चुनाव से पहले राजीव गांधी के खेमे को महसूस हुआ कि मेनका को हराना इतना आसान नहीं होगा. अमेठी में महिला वोटरों की तादाद बहुत थी. ऐसे में राजीव गांधी ने अपनी पत्नी सोनिया के साथ मिलकर प्रचार करने का फैसला किया. सोनिया ने भी उनका पूरा साथ दिया और साड़ी में जमीन पर उतरीं. उन्होंने अपनी टूटी-फूटी हिंदी में तब भाषण भी करना शुरू किया. हालांकि 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चीजें तेजी से बदलीं. राजीव गांधी अंतरिम पीएम बने और दिसंबर के चुनाव में उनके साथ जनता की सहानुभूति हो गई.
मेनका का राजीव पर निशाना
हालांकि मेनका ने हार नहीं मानी. उनका मुकाबला अब एक पीएम से था. वह भाषणों में कहने लगीं कि प्रधानमंत्री के तौर पर राजीव गांधी देश चला रहे हैं, उनके पास अमेठी के लिए समय नहीं होगा. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मेनका ने श्रीमती गांधी का उदाहरण दिया था. कहतीं कि जब उनके (इंदिरा) पति की मौत हो गई तो वह अपने पति के क्षेत्र रायबरेली गईं. जनता ने उन्हें वोट दिया, तरक्की हुई लेकिन जब वह पीएम बन गईं तो रायबरेली पीछे छूट गया. अमेठी में भी ऐसा ही होगा. यह कहते हुए मेनका ने कहा था कि राजीव जी आप देश देखिए, अमेठी को मेनका के लिए छोड़ दीजिए.
हालांकि कांग्रेस की लहर में राजीव गांधी को प्रचंड जीत मिली. 514 में से पार्टी को 404 सीटें मिलीं. अमेठी में राजीव ने मेनका गांधी को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया. मेनका की जमानत जब्त हो गई. इसके बाद उन्होंने अमेठी से कभी चुनाव नहीं लड़ा.