Lok Sabha Election: दूसरे लोकसभा चुनाव में हुई थी देश की पहली बूथ कैप्चरिंग, कांग्रेस के अलावा बस दो पार्टी पहुंची दहाई पार
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Lok Sabha Election: दूसरे लोकसभा चुनाव में हुई थी देश की पहली बूथ कैप्चरिंग, कांग्रेस के अलावा बस दो पार्टी पहुंची दहाई पार

Lok Sabha Chunav News: लोकसभा चुनाव 1957 के दौरान देश ने पहली बार बूथ कैप्चरिंग जैसी घटना को देखा. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के बेगूसराय जिले में रचियाही गांव में कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया था. इसके बाद के चुनावों में बूथ लूट जैसी वारदात आम हो गई थी.

Lok Sabha Election: दूसरे लोकसभा चुनाव में हुई थी देश की पहली बूथ कैप्चरिंग, कांग्रेस के अलावा बस दो पार्टी पहुंची दहाई पार

Second General Election: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के सौ साल और आजादी हासिल करने के एक दशक पूरे होने के साथ ही देश ने दूसरे आम चुनाव के मैदान में अपना कदम रख दिया था. पहली लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने देश में दूसरे लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई. यह आम चुनाव 24 फरवरी से 9 जून, 1957 तक यानी करीब साढ़े 3 महीने तक चला. पहले आम चुनाव में 489 सीटों के मुकाबले दूसरे आम चुनाव में बढ़कर 494 लोकसभा सीटों पर चुनाव में कुल रजिस्टर्ड वोटरों के 45.44 फीसदी ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.

देश के लिए कई मायनों में खास रहा था दूसरा आम चुनाव

केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में 371 पर जीत हासिल की. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में ही फिर से सरकार बनी. दूसरे आम चुनाव में ही जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे थे. इसके अलावा भी 1957 का लोकसभा चुनाव का लोकतंत्र पर बड़ा असर हुआ. इसी चुनाव के दौरान देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की वारदात सामने आई.

दूसरे आम चुनाव के दौरान देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग

दूसरे आम चुनाव के दौरान ही देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना हुई. रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के बेगूसराय जिले में रचियाही गांव में कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया था. इसके बाद आगामी कई चुनावों तक किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के लिए असामाजिक तत्व इस तरह की वारदात को अंजाम देने लगे. राजनीति में अपराधी ताकतों की मदद लेने का ट्रेंड शुरू होने लगा था.

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दूसरे आम चुनाव में 4 राष्ट्रीय और 15 छोटे-बड़े दलों का मुकाबला

दूसरे आम चुनाव में देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय जन संघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी चार राष्ट्रीय दलों ने हिस्सा लिया. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में राज्यस्तर की 11 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनके अलावा कई सौ निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी थी. हालांकि, कांग्रेस के सामने महज दो पार्टियों ने ही नतीजे में दहाई के आंकड़े को पार किया था. 

1957 के आम चुनाव में कुल 403 संसदीय सीटों से लोकसभा के कुल 494 सांसदों को चुना गया. 91 संसदीय क्षेत्र से एक सामान्य वर्ग और दूसरा एससी-एसटी समुदाय सांसद चुने गए थे. 312 सीट इकलौते सांसद वाली थी. हालांकि, इसी आम चुनाव के बाद एक संसदीय क्षेत्र से जो सांसदों को चुनने की व्यवस्था खत्म कर दी गई.

कांग्रेस के मुकाबले काफी पीछे रहीं बाकी पार्टियां, बस दो दल दहाई पार

लोकसभा चुनाव 1957 के दौरान देश में  13 राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश थे. चुनावी नतीजे में कांग्रेस के मुकाबले काफी पीछे रही सीपीआई दूसरे पायदान पर रही. उसे 27 सीटों पर जीत मिली. उसका वोट शेयर 8.92 प्रतिशत रहा. इसके बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 10.41 प्रतिशत वोट शेयर और 19 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही. जन संघ ने 4 सीटों पर जीत हासिल की. उसका वोट शेयर 5.97 प्रतिशत रहा. 

क्षेत्रीय दलों में गणतंत्र परिषद का प्रदर्शन बेहतर रहा. उसका वोट शेयर1.07 प्रतिशत ही था, लेकिन उसके सात उम्मीदवार संसद पहुंचे. इसी तरह झारखंड पार्टी और शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने 6-6 सीटों पर जीत हासिल की थी.

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उत्तर भारत में कांग्रेस का जनाधार खिसकना शुरू, संसद पहुंचे वाजपेयी

लोकसभा चुनाव 1957 में ही जन संघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की. आगे चलकर वह देश के पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया. दूसरे आम चुनाव में सिर्फ 45 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरीं. उनमें से 22 ने जीत हासिल की. वहीं, उत्तर भारत की 85.5 प्रतिशत सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन उत्तर भारत में धीरे-धीरे  कांग्रेस का जनाधार खिसकना शुरू हो गया था.

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