Family Politics in India: लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बज चुकी है और चुनाव के सबसे बड़े महाकुंभ में तमाम पार्टियों के योद्धा उतर चुके हैं. लेकिन भारत की राजनीति की बात हो और वंश, विरासत, परिवार और रिश्तेदारी का जिक्र ना आए ऐसा कैसे हो सकता है. देश के तमाम राज्यों में कोई ना कोई ऐसा उदाहरण मिल ही जाएगा. झारखंड भी इसमें अपवाद नहीं है. यहां भी हर पार्टी में वंशवाद की फसल लहलहाती रही है. इस बार के चुनावों में भी कई सीटें ऐसी हैं, जहां फैमिली फैक्टर का असर देखा जाएगा.


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सोरेन परिवार में सियासी द्वंद


झारखंड की सियासत पर नजर डालें तो यहां सबसे बड़ा कुनबा तो सोरेन परिवार का ही है. शिबू सोरेन, जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी, वह दुमका सीट से 8 बार सांसद रह चुके हैं. माना जा रहा है कि इस बार लोकसभा चुनाव में इस सीट पर विरासत और परिवार के नाम पर कांटे की टक्कर हो सकती है.


शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहीं सीता सोरेन को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. वह शिबू सोरेन के बड़े बेटे दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं. सीता सोरेन विरासत के नाम पर इस चुनाव में जनता से वोट मांग रही हैं. जामा क्षेत्र से दुर्गा सोरेन दो बार विधायक रहे थे और उनकी गिनती झारखंड मुक्ति मोर्चा का कद बढ़ाने वाले नेताओं में होती थी. यह पहली बार है, जब सोरेन परिवार के घर का झगड़ा चुनावी दंगल तक पहुंच गया है. 


परिवार में अपने गलत बर्ताव के आरोप सीता सोरेन ने लगाए हैं. माना जा रहा है कि उनके खिलाफ शिबू सोरेन के बेटे और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन या फिर उनकी पत्नी कल्पना सोरेन मैदान में उतर सकती हैं. जवाबी रणनीति के रूप में JMM यह भी दांव खेल सकती है कि बीमार होने के बावजूद शिबू सोरेन खुद चुनावी मोर्चा संभालने आगे आ जाएं. फिलहाल, पार्टी तमाम विकल्पों पर मंथन कर रही है.


2019 में हार गए थे शिबू सोरेन


शिबू सोरेन 2019 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार सुनील सोरेन से हार गए थे, लेकिन सोरेन परिवार इसे आज भी अपनी परंपरागत सीट मानता है. शिबू सोरेन ने 1999 के चुनाव में अपनी पत्नी रूप सोरेन को यहां बतौर झामुमो उम्मीदवार उतारा था, लेकिन वह हार गई थीं. शिबू सोरेन के छोटे बेटे बसंत सोरेन दुमका सदर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं.


दुमका के बाद हजारीबाग दूसरी लोकसभा सीट है, जहां इस बार परिवार और विरासत में सीधी टक्कर है. बीजेपी उम्मीदवार मनीष जायसवाल और कांग्रेस के प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल, दोनों राजनीति में अपने पिता की विरासत के साथ दाखिल हुए थे.


विरासत और परिवार की लड़ाई


मनीष जायसवाल के पिता ब्रजकिशोर जायसवाल अपने दौर में कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख नेताओं में शुमार रहे हैं. वह कई बार हजारीबाग नगरपालिका और जिला परिषद के अध्यक्ष रहे हैं. उन्होंने हजारीबाग विधानसभा सीट से भी कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन वह कभी विधायक नहीं बन पाए. बाद में उनके पुत्र मनीष जायसवाल हजारीबाग सीट से लगातार दो बार विधायक चुने गए और अब पहली दफा संसदीय चुनाव के मैदान में हैं.


दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल अपने पिता स्व. टेकलाल महतो की सियासी विरासत को आधार बनाकर मांडू विधानसभा सीट से तीन बार विधायक बने और अब लोकसभा चुनाव में ताल ठोक रहे हैं. जयप्रकाश पटेल ने हाल में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ा है और इसके पीछे की जो वजह उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में बताई है, वह यह कि भाजपा में रहते हुए वह अपने पिता टेकलाल महतो की विरासत और सोच को जमीन पर नहीं उतार पा रहे थे. 


क्या जनता भेजेगी संसद?


टेकलाल महतो मांडू क्षेत्र से पांच बार विधायक और गिरिडीह से एक बार सांसद रहे थे. टेकलाल महतो हजारीबाग संसदीय सीट से भी दो बार चुनाव लड़ चुके थे, लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी थी. उनके अचानक निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे जयप्रकाश पटेल पहली बार विधायक बने थे. दिलचस्प यह कि जयप्रकाश पटेल के ससुर और टुंडी क्षेत्र के विधायक मथुरा महतो बगल की गिरिडीह सीट पर JMM के संभावित उम्मीदवार हैं.


सिंहभूम सीट पर बीजेपी उम्मीदवार गीता कोड़ा की राजनीति में एंट्री अपने पति मधु कोड़ा की वजह से हुई थी. मधु कोड़ा झारखंड के सीएम रह चुके हैं और अदालत से सजायाफ्ता होने के कारण फिलहाल कोई चुनाव नहीं लड़ सकते.


कांग्रेस ने खूंटी लोकसभा सीट से जिस कालीचरण मुंडा को प्रत्याशी बनाया है, वह अपने जमाने के दिग्गज कांग्रेस नेता स्व. टी. मुचिराय मुंडा के बेटे हैं. टी. मुचिराय मुंडा खूंटी क्षेत्र से कई बार विधायक चुने गए थे. वह बिहार सरकार में मंत्री भी रहे थे. दिलचस्प बात यह कि कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा के सहोदर भाई नीलकंठ सिंह मुंडा खूंटी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक हैं. जाहिर है, दोनों भाई दो अलग-अलग पार्टियों के लिए वोट मांगते नजर आएंगे.


राजमहल सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा एक बार फिर मौजूदा सांसद विजय हांसदा को उम्मीदवार बनाएगा. उन्होंने भी अपने पिता दिवंगत थॉमस हांसदा की विरासत की बदौलत राजनीति में जगह बनाई. थॉमस हांसदा इस इलाके से कांग्रेस के विधायक और सांसद रह चुके थे.


अन्नपूर्णा देवी पर फिर पार्टी ने जताया भरोसा


कोडरमा सीट की बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी अपने पति रमेश यादव के निधन के बाद उनकी विरासत संभालने पहली बार राजनीति में आई थीं. वह कोडरमा क्षेत्र से कई बार विधायक चुनी गई थीं. वह 2019 में पहली बार संसद पहुंचीं और एक बार फिर पार्टी ने उन पर यहां भरोसा जताया है. 


इसी सीट पर इंडिया गठबंधन की ओर से भाकपा माले के विनोद सिंह को प्रत्याशी बनाया जाना तय माना जा रहा है. वह फिलहाल बगोदर सीट से विधायक हैं और उनकी भी सियासत में एंट्री उनके पिता महेंद्र सिंह की हत्या के बाद हुई थी. महेंद्र सिंह बगोदर से कई बार विधायक रह चुके थे.


गोड्डा क्षेत्र से कांग्रेस की उम्मीदवारी के लिए इस बार विधायक दीपिका पांडेय के नाम की चर्चा है. वह फिलहाल महगामा विधानसभा क्षेत्र की विधायक हैं. उनके ससुर अवध बिहारी सिंह इस सीट से कई बार विधायक और बिहार सरकार में मंत्री भी रहे थे.


गिरिडीह सीट से एनडीए की ओर से मौजूदा सांसद और आजसू पार्टी के चंद्रप्रकाश चौधरी का प्रत्याशी बनना तय है. उनकी पत्नी सुनीता चौधरी रामगढ़ सीट से विधायक हैं और उनके भाई रोशनलाल चौधरी बड़कागांव सीट से कई बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं.


(एजेंसी इनपुट के साथ)