West Bengal Lok Sabha Chunav: एकला चलो रे... रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह गीत पश्चिम में ममता बनर्जी की सियासत पर मुफीद बैठता है. जब तमाम विपक्षी दल मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने की योजना बना रहे थे, ममता के मन में शायद यही गीत गूंज रहा था. 28 पार्टियों वाले I.N.D.I.A. धड़े का हिस्सा होने के बावजूद ममता क्लियर थीं- बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) अपने दम पर बीजेपी का मुकाबला करेगी. यह तो 04 जून 2024 को ही साफ होगा कि ममता की जिद 'मास्टरस्ट्रोक' थी या नहीं. बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (BJP) जोश से लबरेज है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले, ANI से बातचीत में कहा था कि पार्टी को सबसे बड़ी सफलता बंगाल में ही मिलने वाली है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लोकसभा चुनाव में सीटों का गणित देखें तो बंगाल देश का तीसरा सबसे अहम राज्य है. उत्तर प्रदेश (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें पश्चिम बंगाल (42) में ही हैं.


पश्चिम बंगाल में बीजेपी का चुनावी रिकॉर्ड


बंगाल में बीजेपी के आत्मविश्वास की वजह उसका ट्रैक रिकॉर्ड है. 2009 आम चुनाव में बीजेपी यहां सिर्फ एक सीट जीत पाई थी. 2014 लोकसभा चुनाव में भी कुछ खास प्रदर्शन नहीं रहा. बीजेपी 2014 में बंगाल की सिर्फ दो लोकसभा सीटें जीती. इसके बाद बीजेपी ने रणनीति बदली. बड़े ही आक्रामक ढंग से खुद को TMC के विकल्प के रूप में पेश किया. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की मेहनत रंग लाई. नतीजों ने सबको चौंका दिया. 42 लोकसभा सीटों वाले राज्य में बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब रही. वोट शेयर बढ़कर 40% तक पहुंच गया. दूसरी तरफ, ममता की TMC के लिए चुनौती बढ़ती गई है. 2014 में पार्टी जहां 34 सीटें जीती थी, 2019 में सिर्फ 22 पर जीत दर्ज कर पाई.


ममता को सबसे बड़ी चोट उनके पुराने सिपहसालार रहे सुवेंदु अधिकारी ने दी है. दिसंबर 2020 में बीजेपी से जुड़े अधिकारी ने अगले साल के विधानसभा चुनाव में ममता को उन्हीं के गढ़, नंदीग्राम में हराया था. अधिकारी के नेतृत्व में बीजेपी अब राज्य का प्रमुख विपक्षी दल बन गई है.


पढ़ें: 151 के अंक में छिपा है 4 जून का रहस्‍य, भेदने वाले को मिलेगी सत्‍ता की चाभी!


आसान नहीं बंगाल की डगर


पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने जिस तेजी के साथ बंगाल में पैठ बनाई है, उसे देखते हुए पार्टी को बड़ी जीत की उम्मीद है. अगर बीजेपी बंगाल में 2019 की टैली में दर्जन भर सीटें और जोड़ लेती है तो अन्य राज्यों में संभावित नुकसान की भरपाई हो सकती है. पीएम मोदी ने 28 मई को ANI से बातचीत में कहा था कि बंगाल में चुनाव एकतरफा है. उनका कहना था, 'पिछले विधानसभा चुनाव (2016) में हम 3 पर थे और बंगाल की जनता हमें 80 (सीटों) तक ले आई. पिछले लोकसभा चुनाव में भी हमें बड़ा बहुमत मिला था.'


बंगाल में बीजेपी का रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा ममता और TMC ही हैं. 2019 के करिश्माई प्रदर्शन के बावजूद, 2021 विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी ममता को हरा नहीं पाई. 2021 में बीजेपी को 294 में से 77 सीटें हासिल हुई थीं. पार्टी का वोट शेयर 38.1% रहा था, 2019 से भी कम. 2024 की लड़ाई में बीजेपी ने और ताकत लगाई है.


लोकसभा चुनाव 2024 : पश्चिम बंगाल


बंगाल में इस बार सभी सातों चरणों में मतदान हुआ है. बीजेपी ने TMC को भ्रष्‍टाचार, जमीनों पर कब्जा, संदेशखाली यौन शोषण मामले समेत तमाम मुद्दों पर घेरा. कलकत्ता हाई कोर्ट के 25,000 टीचर्स की भर्ती रद्द करने का फैसला भी बीजेपी के लिए हथियार बना. दूसरी तरफ, TMC का प्रचार बीजेपी के हिंदुत्ववादी एजेंडे को काउंटर करने, बंगाल का फंड रोकने और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर फोकस रहा है. ममता ने प्रचार में अपनी कैश ट्रांसफर स्कीमों का भी खूब जिक्र किया है.


बीजेपी को उम्मीद है कि वह उत्तरी बंगाल में बेहतर प्रदर्शन करेगी. 2019 में बीजेपी यहां की 8 में से 7 सीटें जीती थीं. तृणमूल का फोकस दक्षिणी जिलों पर हैं जहां मुस्लिम आबादी बहुलता में है. TMC के लिए बड़ी चुनौती लेफ्ट-कांग्रेस का गठबंधन भी है जो कुछ सीटों पर निर्णायक अंतर पैदा कर सकता है. 


पश्चिम बंगाल: नतीजों पर असर डाल सकते हैं ये 5 फैक्टर


  • संदेशखाली प्रकरण: उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट का एक गांव इस साल अचानक चर्चा में आ गया. तमाम महिलाओं ने TMC के स्थानीय नेता शाहजहां शेख पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए. जमीन हड़पने की शिकायतें भी आईं. कलकत्ता हाई कोर्ट (HC) के निर्देश पर शेख को 29 फरवरी को अरेस्ट कर लिया गया था. मामला सीबीआई के पास है. बीजेपी ने इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रचार में खूब हवा दी. ममता और TMC को कठघरे में खड़ा किया. चुनावी नतीजों पर इस मुद्दे का असर दिख सकता है.

  • I.N.D.I.A. से दूरी: राष्ट्रीय स्तर पर तो TMC एंटी-बीजेपी मोर्चे का हिस्सा है लेकिन बंगाल में नहीं. TMC ने कांग्रेस और लेफ्ट दलों के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ा जिसका उसे नुकसान हो सकता है. कांग्रेस-CPI (M) का गठबंधन कई सीटों पर TMC के लिए वोट काटने वाला साबित हो सकता है.

  • मुस्लिम तुष्टीकरण: बीजेपी ने बंगाल में TMC को 'हिंदू विरोधी' और 'मुस्लिम हितैषी' बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. चुनाव के बीच ही, कलकत्ता HC ने TMC सरकार द्वारा कई मुस्लिम समुदायों को OBC का दर्जा दिए जाने के फैसले को रद्द कर दिया. बीजेपी ने उसे भी लपका और TMC समेत पूरे I.N.D.I.A. ब्लॉक को घेरा. पीएम मोदी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जाता.

  • एंटी-इनकंबेंसी: ममता 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री हैं. उनकी कल्याणकारी योजनाओं का जनता ने स्वागत किया है लेकिन भ्रष्‍टाचार के दाग भी खूब हैं. बंगाल में इंडस्ट्रीज का उभार न होना भी चुनौती साबित हो रहा है.

  • महिला वोट: संदेशखाली प्रकरण ने भले ही ममता की इमेज को नुकसान पहुंचाया हो, अपनी सरकारी योजनाओं से वह महिलाओं को लुभाने में कामयाब रहीं हैं. SC और ST वर्ग की महिलाओं को 1,000 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं और अन्य वर्गों की महिलाओं को 500 रुपये महीना. राज्य की 48% आबादी महिलाओं की है. पिछले चुनावों में ममता को महिलाओं का साथ मिलता रहा है. इस बार नतीजा क्या रहेगा, उसमें महिला वोटर्स की अहम भूमिका होगी.


बंगाल की चुनावी राजनीति किस करवट बैठेगी, यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है. बंगाल में इस बार बहुत सारे 'साइलेंट वोटर्स' भी हैं. ऐसे में पूरी तस्वीर तो 04 जून को ही साफ होगी.