Lok Sabha Elections 2024: 9 सीट जीतकर भी क्यों बाजीगर नहीं बन पाए उद्धव? महाराष्ट्र में कठिन है डगर पनघट की
Maharashtra Politics: लोकसभा चुनावों के लिए सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर बनी सहमति में उनकी पार्टी को महाराष्ट्र की 48 में से 21 सीट की पेशकश हुई. उद्धव ठाकरे की पार्टी मुंबई की चार में से तीन सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन रायगढ़, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, ठाणे और कल्याण सीट वह हार गई.
Shiv Sena Uddhav Thackeray: पांच साल पहले तक उद्धव ठाकरे की छवि ऐसे नेता के तौर पर थी जो सिर्फ अपने पिता बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अनिच्छा के साथ राजनीति में हैं, लेकिन अपने पुराने सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) से नाता तोड़ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ हाथ मिलाकर उन्होंने न सिर्फ खुद को बल्कि अपनी पार्टी को भी नए सिरे से नई पहचान देने का काम किया. महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन वो 2019 जैसी पुरानी रौ में नहीं लौट पाए. हालांकि जोरदार जीत के बाद ये शिवसेना यूबीटी के कार्यकर्ताओं का उत्साह ही था जिसके तहत पार्टी दफ्तर के बाहर पोस्टर लगाकर एकनाथ शिंदे की शिवसेना पर तंज कसते हुए लिखा गया कि 'कौन असली शिवसेना है जनता ने ये बता दिया है'.
उद्धव ने समय की मांग के हिसाब से किया शिवसेना का मेकओवर?
उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना एक आक्रामक हिंदुत्ववादी पार्टी से मुसलमानों, दलितों और गैर-महाराष्ट्रियन लोगों को लुभाने वाली एक उदारवादी पार्टी में बदल गई. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान उद्धव ठाकरे के आलोचकों ने उन्हें ‘घर से काम करने वाला’ मुख्यमंत्री कहकर उनका मजाक उड़ाया, लेकिन वह कोविड-19 महामारी के दौरान सोशल मीडिया मंच ‘फेसबुक’ पर लाइव आकर लोगों से जुड़ने में सफल रहे.
बीजेपी से अलग होकर क्या खोया- क्या पाया?
हालांकि इसके बावजूद उन्हें जून 2022 में एकनाथ शिंदे की खिलाफत का सामना करना पड़ा और उन्होंने विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किए बिना ‘फेसबुक लाइव’ आकर अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी.
घर से बाहर नहीं निकलने के लिए आलोचकों के निशाने पर रहने वाले उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनावों के दौरान पूरे राज्य का दौरा किया और उनकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी.
कठिन डगर है महाराष्ट्र की
लोकसभा चुनावों के लिए सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर बनी सहमति में उनकी पार्टी को महाराष्ट्र की 48 में से 21 सीट की पेशकश हुई. उद्धव ठाकरे की पार्टी मुंबई की चार में से तीन सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन रायगढ़, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, ठाणे और कल्याण सीट वह हार गई. मुंबई में उन्होंने साबित कर दिया कि शिवसेना कार्यकर्ता अभी भी उनके साथ हैं, लेकिन कोंकण क्षेत्र के बाकी हिस्सों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.
महाअघाड़ी की बल्ले बल्ले फिर भी...
हालांकि विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडियन नेशल डवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) ने लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) भी ‘इंडिया’ का हिस्सा है. ठाकरे की पार्टी के लिए इससे बड़ी चुनौती इस वर्ष के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की होगी.
महाविकास आघाडी (MVA) ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीट में से 30 पर जीत हासिल की. वर्ष 2019 में महाराष्ट्र में महज एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 13 जीत हासिल की, जबकि शिवसेना (UBT) को नौ और NCP(SP) को 8 सीट मिलीं. BJP और उसके सहयोगियों को 17 सीट ही मिल पाईं. जबकि महाराष्ट्र में पिछला चुनाव भाजपा और शिवसेना (अविभाजित) ने मिलकर लड़ा था और राज्य की 48 सीटों में से 41 पर कब्जा किया था.
शिवसेना में दो फाड़ की कहानी
शिवसेना में टूट के बाद पार्टी में 2 नए दल बने. उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (UBT) पार्टी का गठन 10 अक्टूबर 2022 को की गई. महाराष्ट्र में शिवसेना (UBT) का जन्म साल 2022 में पैदा हुए राजनीतिक संकट की वजह से हुआ. उस समय तक मूल शिवसेना यूपीए के साथ गठबंधन में थी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे. उन समय शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बगावत हो गई और ज्यादातर विधायकों ने उद्धव सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
इसके बाद बीजेपी के सहयोग से एकनाथ शिंदे ने राज्य में सरकार बना ली. इस तरह से मूल शिवसेना दो फाड़ हो गई, लेकिन दोनों ही गुट खुद को असली शिवसेना होने का दावा करते हुए नाम और निशान को लेकर पहले चुनाव आयोग और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से 17 फरवरी 2023 को आधिकारिक तौर पर पर महाराष्ट्र में शिवसेना (UBT) अस्तित्व में आई. इस पार्टी का चुनाव चिन्ह मशाल है. अब भले ही उद्धव गुट ने शिंदे गुट से ज्यादा सीटें हासिल की हैं, लेकिन शिवसेना (उद्धव ग्रुप) को अभी पुरानी रौ में लौटने में बहुत वक्त लग सकता है.