Sirsa Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस के गढ़ सिरसा में कौन मारेगा बाजी, BJP का रिपोर्ट कार्ड ऐसा; जानिए सियासत का गुणा-गणित
Sirsa Lok Sabha Election 2024 News: सिरसा सीट रिजर्व है. इस जिले का नाम पहले `सरस्वती` नगर हुआ करता था बाद में सिरसा नाम पड़ गया. दिल्ली से 250 Km दूर स्थित सिरसा की जनता ने सांसदी के चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा मौके दिए हैं.
Sirsa Lok Sabha Election 2024: सिरसा पंजाबी बहुल सीट है. जो इनेलो (INLD) के चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला का होम टाउन और गढ़ रहा है. संसदीय सीट की बात करें तो इनेलो/जनता दल को 5 बार जीत मिली जबकि 9 बार कांग्रेस ने बाजी मारी. BJP को जीत का ताज केवल 1 बार मिला. जब 2019 में हरियाणा की 10 में से 10 सीटें बीजेपी ने जीतीं. सिरसा की जनता ने 10 बार बाहरी उम्मीदवार को विजेता बनाकर संसद भेजा. बीजेपी ने यहां अपनी सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटा और कई पार्टियों से घूम कर आए अशोक तंवर को टिकट दे दिया.
सिरसा लोकसभा चुनाव 2024 रिजल्ट
हरियाणा में 25 मई को सभी लोकसभा सीटों पर एक साथ मतदान हुआ. नतीजे 4 जून को आएंगे.
2009 में सांसद बने अशोक तंवर झज्जर के रहने वाले हैं. तो 2019 की सांसद सुनीता दुग्गल हिसार की रहने वाली हैं. यहां तीन ऐसे सांसद रहे जो मूल रूप से इसी लोकसभा सीट से ताल्लुक रखते हैं. इनमें आत्मा सिंह गिल फतेहाबाद जिला के बलियाला गांव के रहने वाले तो 1988 और 1989 में MP रहे स्वर्गीय हेतराम भी सिरसा जिले के मूल निवासी थे. 2014 में सांसद बने चरणजीत सिंह सिरसा जिला के गांव रोड़ी के रहने वाले हैं. यानी अपने शहर के नेताओं पर भरोसा जताने के बजाए यहां जनता-जनार्दन ने बाहरी कैंडिडेट को विजेता बनाकर दिल्ली भेजना पसंद किया.
सिरसा लोकसभा सीट के बारे में जानकारी
पंजाबी बाहुल्य सिरसा जिले में लोकसभा की रिजर्व सीट होने के कारण केवल अनुसूचित जाति के नेता को सांसद बनने का मौका मिला. हरियाणा के तीन जिलों के विधानसभा क्षेत्र इसमें आते हैं. सिरसा जिले के पांच विधानसभा क्षेत्र, फतेहाबाद के 3 और जींद का एक विधानसभा क्षेत्र इसके अंतर्गत आता है. हरियाणा की इस सीट से चौधरी दलबीर सिंह लगातार चार बार के सांसद रहे. वो केंद्र में मंत्री भी रहे.
आगे उनकी बेटी 1991 और 1996 में सिरसा से जीतीं. वो भी केंद्र में मंत्री बनीं. तीन बार सिरसा की सांसदी महिलाओं को मिली. वहीं सुशील इंदौरा हों, आत्माराम गिल हों, अशोक तंवर हो या हेतराम, चंद राम, चरणजीत सिंह रोरी और 2019 की विनर सुनीता दुग्गल, सब सांसद बने, लेकिन मंत्री न बन सके.
बड़ा पद मिलने का सौभाग्य केवल कुमारी शैलजा को या उनके पिता चौधरी दलबीर को ही मिला. 2019 में सुनीता दुग्गल को मौका मिला. वो आईआरएस अधिकारी थीं. उन्होंने VRS लिया और 3 लाख वोटों से जीती थीं.
कौन कैंडिडेट और किसके हाथ लगेगी बाजी?
सिरसा लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर मचे घमासान के बीच बीजेपी ने निवर्तमान सांसद सुनीता दुग्गल (Sunita Duggal) का टिकट काट दिया. जबकि सुनीता काफी समय से कह रही थीं कि घाट-घाट का पानी पीकर बीजेपी में शामिल हुए तंवर चुनाव न लड़ेंगे. तंवर भी अपनी दावेदारी के सवाल पर गोल-मोल जवाब दे रहे थे. कभी खांटी कांग्रेसी थे. 2009 में सिरसा से सांसद बने. 2014-2019 तक हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
2019 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया और अपनी पार्टी बनाई. मन नहीं लगा तो TMC में गए. वहां से मोह भंग हुआ तो अप्रैल 2022 को आप (AAP) में शामिल हुए. समय का पहिया घूमा तो बीजेपी में आए गए और आते ही टिकट पा गए.
सियासी समीकरण
सिरसा ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अलावा अन्य प्रादेशिक दलों और स्थानीय दलों यानी कुल मिलाकर सभी पार्टियों को प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है. सिरसा लोकसभा सीट में 18 लाख से ज्यादा मतदाता है. पुरुष मतदाताओं की संख्या की बात करें तो 9,25,150 पुरुष मतदाता हैं तो वहीं महिला वोटरों की संख्या 8,15,032 है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 13,69,486 लाख मतदाताओं ने अपना वोट डाला था. पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां 75% से ज्यादा वोटिंग हुई थी.
जातिगत समीकरण
सिरसा संसदीय क्षेत्र में सिख मतदाताओं के अलावा एससी वर्ग में वाल्मीकि, धानक और बाजीगर समुदाय के करीब 8 लाख वोटर हैं. जाट समुदाय के करीब साढ़े तीन लाख, जट्ट सिख समुदाय के 2 लाख वोट हैं. पंजाबी समुदाय के करीब सवा 1 लाख, बनिया 1 लाख, बिश्नोई मतदाता 60 हजार, ब्राह्मण मतदाता 70 हजार, कंबोज समुदाय के 1 लाख मतदाता हैं. इसी तरह सैनी, गुर्जर, खाती, कुम्हार और सुनार समुदाय के करीब डेढ़ लाख वोटर हैं. अल्पसंख्यक मतदाताओं की बात करें तो 25 हजार मुस्लिम मतदाता, उससे कम क्रिश्चियन और जैन कम्युनिटी के वोटर सबसे कम हैं.
चुनावी मुद्दे
सिरसा ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अलावा बीजेपी के साथ प्रादेशिक दलों और स्थानीय दलों यानी कुल मिलाकर सभी पार्टियों को प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है. कभी इस शहर की पहचान गोपीचंद टैक्सटाइल मिल के नाम से होती थी. आज यहां पेपर मिल, मिल्क प्लांट, और राइस मिलें हैं. अभी भी कई जगहों पर सड़कें नहीं बनी हैं. पेयजलापूर्ति एक बड़ा मुद्दा है. बरसात के समय में जलनिकासी एक बड़ी समस्या है.
इतिहास और नई पहचान
सिरसा को महाभारतकालीन नगर माना जाता है. दिल्ली से इसकी दूरी 260 KM है. सरस्वती नदी के तट पर बसे होने के कारण सिरसा का नाम पहले 'सरस्वती' नगर था. हरियाणा के अंतिम छोर पर बसा सिरसा धार्मिक पटल पर अब नई पहचान गढ़ चुका है. सिरसा में 'डेरा सच्चा सौदा' का मुख्यालय है. जो एक गैर लाभकारी सामाजिक कल्याण और आध्यात्मिक संगठन है. डेरा की स्थापना 29 अप्रैल, 1948 को शाह मस्ताना महाराज ने की. शाह मस्ताना महाराज के बाद डेरा प्रमुख शाह सतनाम महाराज बने. उन्होंने 1990 में बाबा गुरमीत सिंह को गद्दी सौंपी. इसके बाद बाबा गुरमीत का नाम संत गुरमीत राम रहीम सिंह कर दिया गया. आगे क्या बताएं आज राम रहीम कहां है ये कहानी सबको पता है.
हरियाणा के इतिहास में महिला सांसद
हरियाणा के इतिहास में कुमारी सैलजा, कैलाशो सैनी, डॉक्टर सुधा यादव, श्रुति चौधरी और सुनीता दुग्गल को ही सांसद बनने का मौका मिला है. कुमारी सैलजा दो बार अंबाला से जबकि दो बार सिरसा लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. इसके अलावा चंद्रावती साल 1977 में भिवानी से सांसद बनीं, कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से और डॉक्टर सुधा यादव महेंद्रगढ़ से सांसद रहीं. वहीं 2009 में श्रुति चौधरी भिवानी से सांसद चुनी गईं.
लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास : कब किस पार्टी से कौन रहा सांसद
साल | विजेता | पार्टी |
1962 | चौधरी दलजीत सिंह | कांग्रेस |
1967 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1971 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1977 | चौधरी चंदराम | भारतीय लोकदल |
1980 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1984 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1988 | हेतराम | लोकदल |
1989 | हेतराम | जनता दल |
1991 | कुमारी शैलजा | कांग्रेस |
1996 | कुमारी शैलजा | कांग्रेस |
1998 | सुशील कुमार इंदौरा | हरियाणा लोकदल राष्ट्रीय |
1999 | सुशील कुमार इंदौरा | INLD |
2004 | आत्म सिंह गिल | कांग्रेस |
2009 | अशोक तंवर | कांग्रेस |
2014 | चरणजीत सिंह रोरी | INLD |
2019 | सुनीता दुग्गल | BJP |