Subramanian Swamy Story: आम चुनाव 1977 में आपातकाल विरोधी आंदोलनों के कारण मिले अपार जनसमर्थन से देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था. मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की यह सरकार भले ही पूरे समय नहीं चल सकी, लेकिन उसकी ऐतिहासिक चर्चा आज भी बदस्तूर होती रहती है. कैबिनेट के मंत्रालयों की रस्साकशी की कहानी अब भी ताजा लगती है.


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वित्त मंत्री नहीं बन पाए सुब्रमण्यम स्वामी, नानाजी ने भी दावा छोड़ा


लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपने बयानों को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी फिर से सुर्खियों में हैं. स्वामी जैसे सीनियर नेता के मन में मोरारजी कैबिनेट में वित्त मंत्री नहीं बनाए जाने की कसक बनी हुई है. गाहे-बगाहे उनका यह दर्द लोगों के सामने आ ही जाता है. हालांकि, उस दौरान जनसंघ के कोषाध्यक्ष नानाजी देशमुख भी उद्योग मंत्री बनते-बनते रह गए थे, लेकिन उन्होंने इसको लेकर कभी ज्यादा चर्चा नहीं की.  


आइए, किस्सा कुर्सी का में जानने की कोशिश करते हैं मोरारजी सरकार में वित्त मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी क्यों पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कारण बताते हैं. इसके साथ ही जनसंघ के दिग्गज नेता नानाजी देशमुख ने तब क्यों केंद्रीय मंत्री बनने से अपने कदम पीछे खींच लिए. 


मोराजी देसाई सरकार में जनसंघ को मिली सबसे कम हिस्सेदारी


विनय सीतापति ने अपनी किताब जुगलबंदी में इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में विस्तार से लिखा है. उन्होंने लिखा है कि 1977 में देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री और मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के कुछ घंटे बाद कैबिनेट की घोषणा की गई. बीच रात सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक मोरारजी ने अपने मंत्रिमंडल के लिए 19 लोगों को चुना था. आश्चर्यजनक रूप से उनके मंत्रिमंडल में जनसंघ को सबसे कम प्रतिनिधित्व मिला था.


प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बीच रात में मंत्रिमंडल का एलान 


किताब में लिखा है कि जनता पार्टी सरकार में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के सामने मंत्रिमंडल गठित करने की बड़ी चुनौती थी. क्योंकि आपातकाल के विरोधी आंदोलन में साथ आए अलग-अलग राजनीतिक दलों के कई बड़े नेता उनकी सरकार में शामिल होना चाहते थे. मंत्री पद से आगे बढ़कर कई नेताओं के बीच भारी-भरकम विभागों को लेकर भी रस्साकसी शुरू हो गई थी. इसलिए मोरारजी ने बीच रात में मंत्रिमंडल का एलान किया. 


मोरारजी सरकार में 93 सांसदों वाले जनसंघ से सिर्फ 3 मंत्री


मोरारजी देसाई के 19 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल में 93 सांसदों वाले जनसंघ से सिर्फ तीन मंत्री बनाए गए थे. इसके पीछे जनसंघ की ओर से ठीक से सियासी बारगेनिंग नहीं होने, पूर्व कांग्रेसी और समाजवादी दलों के अनुभवी राजनेताओं के दांव पेंच समेत कई वजहों को आज भी गिनाया जाता है. इसी दौरान जनसंघ के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और नानाजी देशमुख भी केंद्रीय मंत्री नहीं बन सके थे. स्वामी इसको लेकर आज भी शिकायत करते दिखते हैं. 


अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों वजह मानते हैं सुब्रह्मण्यम स्वामी


सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मीडिया के सामने भी कई बार इस घटना के बारे में जिक्र किया है. स्वामी बताते हैं कि मोरारजी ने उनसे कहा था कि तुम वित्त मंत्री बनोगे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे कह दिया कि स्वामी को संगठन का काम सौंपा जाने वाला था. हालांकि तब ऐसी कोई बात नहीं थी. इस बात को लेकर स्वामी ने हमेशा वाजपेयी को दोषी ठहराया. दोनों नेताओं में कभी पहले जैसी नजदीकी नहीं दिखी. बाद के दिनों में एक वोट से अटल सरकार गिराए जाने को इसका सियासी बदला तक कहा जाने लगा था. 


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मोरारजी सरकार में क्यों उद्योग मंत्री नहीं बने नानाजी देशमुख


सुब्रमण्यम स्वामी के अलावा नानाजी देशमुख भी तब मोरारजी के मंत्रिमंडल से बाहर रहे थे. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन्हें केंद्रीय उद्योग मंत्री देने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नानाजी ने तब तत्काली सरकार्यवाह राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया की सलाह को महत्व दिया. रज्जू भैया ने उनसे कहा कि जनसंघ के कोषाध्यक्ष होने के चलते उद्योगपतियों से आपके अच्छे रिश्ते हैं. अगर आप केंद्रीय उद्योग मंत्री बन गए तो सवाल खड़े होंगे.


उद्योगपतियों की ओर से कई तरह की मांग भी सामने आएगी. इससे आपकी, जनसंघ की और सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ सकता है. इस सलाह को मानकर नानाजी देशमुख खुद मंत्रीपद से चुपचाप पीछे हट गए. उन्होंने बाद में भी कभी इस बात का कोई जिक्र तक नहीं किया.


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