West Bengal Lok Sabha Chunav 2024 7th Phase Voting: पश्चिम बंगाल में ममता सरकार को एक्सपोज करने की बीजेपी की रणनीति काम कर गई है. राज्य की 9 लोकसभा सीटों पर 1 जून को वोटिंग होनी है लेकिन उससे पहले ओबीसी आरक्षण मुद्दे और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की साधु-संतों के बारे में विवादास्पद टिप्पणियों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज कर दिया. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इन घटनाक्रम ने मौजूदा विभाजन को और गहरा कर दिया है. सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस इसका बड़ा नुकसान होने जा रहा है. वहीं बीजेपी फायदे की हालत में आ गई है. लोकसभा चुनावों के आखिरी चरण में बंगाल में कोलकाता और उसके आस-पास के दक्षिण और उत्तर 24 परगना जिलों के नौ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होगा. इस चरण की सभी नौ सीट वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के पास हैं और उन्हें पार्टी का गढ़ माना जाता है. 


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हाई कोर्ट ने मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण खारिज किया


बताते चलें कि पिछले हफ्ते कलकत्ता हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 2010 से बंगाल में कई वर्गों को दिए गए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के दर्जे को रद्द कर दिया था. इसके साथ ही कहा कि राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों के लिए इस तरह के आरक्षण अवैध हैं. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र मानदंड रहा है. लिहाजा हमारा मानना ​​है कि मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा घोषित करना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है.'


कोलकाता हाईकोर्ट के इस फैसले से करीब पांच लाख ओबीसी कार्डधारक प्रभावित हुए हैं. अदालत का फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि इस फैसले को उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में में चुनौती देगी. बनर्जी ने आरोप लगाया कि अदालत का आदेश भाजपा के चुनावी विमर्श से प्रभावित है. उन्होंने दावा किया कि कोई भी ओबीसी के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों को नहीं छीन सकता. 


साधु- संतों पर ममता की टिप्पणी से और बढ़ा विवाद


टीएमसी के लिए केवल इतना ही काफी नहीं था. सीएम ममता बनर्जी ने 18 मई को बनर्जी ने रामकृष्ण मिशन (आरकेएम), भारत सेवाश्रम संघ (बीएसएस) और इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) के साधु-संतों के एक वर्ग की आलोचना करके एक और विवाद को जन्म दे दिया. उन्होंने कहा कि ये संगठन भाजपा के साथ राजनीतिक सांठगांठ किए हुए हैं. मुख्यमंत्री की टिप्पणी पर घमासान शुरू होने के साथ टीएमसी और भाजपा दोनों ने मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया. 


राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम का मानना है कि अदालत के फैसले से सांप्रदायिक विभाजन बढ़ सकता है, क्योंकि भाजपा अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर करने के लिए हिंदू ओबीसी की शिकायतों का प्रभावी ढंग से फायदा उठा सकती है. उन्होंने कहा, ‘इस फैसले से करीब पांच लाख लोग प्रभावित होंगे, जिससे विभिन्न समुदायों में काफी असंतोष पैदा होगा. मुस्लिम ओबीसी, जिन्होंने टीएमसी से मोहभंग के संकेत दिए थे, अब अदालत के फैसले के मद्देनजर बनर्जी की पार्टी के साथ फिर से जुड़ सकते हैं. वहीं हिंदू ओबीसी, जो 2019 के बाद से भाजपा की तरफ जा रहे थे, वे पार्टी के लिए अपना समर्थन मजबूत कर सकते हैं.’


17 लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की खासी आबादी


बंगाल में 17 लोकसभा सीटों पर मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है. इन सीटों में से वर्तमान में टीएमसी के पास 12 सीटें हैं जबकि शेष पांच सीटों में से भाजपा के पास तीन और कांग्रेस के पास दो सीटें हैं. भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘अदालत के फैसले से ओबीसी के प्रति टीएमसी का विश्वासघात उजागर हुआ है, जिनके अधिकारों से तुष्टीकरण की राजनीति के लिए समझौता किया जा रहा है. यह टीएमसी सहित ‘इंडिया’ गठबंधन पार्टियों का एजेंडा है, जिनका राजनीतिक अस्तित्व अल्पसंख्यक मतदाताओं के समर्थन पर टिका है.’


इसी तरह, आरकेएम और बीएसएस के कुछ साधु-संतों को राजनीतिक घमासान में घसीटने का मुद्दा भी एक बड़े विवाद में बदल गया है. हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने और खुद को हिंदू हितों के संरक्षक के रूप में पेश करने के अपने प्रयासों में भाजपा ने बनर्जी की टिप्पणियों को प्रतिष्ठित धार्मिक संस्थाओं पर हमले के रूप में पेश किया. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘टिप्पणियां टीएमसी की हिंदू विरोधी मानसिकता को दर्शाती हैं. क्या आपने कभी किसी को रामकृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ पर उंगली उठाते सुना है? इस तरह की टिप्पणियां केवल एक वर्ग को खुश करने के लिए की जा रही हैं.’


हमारी नेता की टिप्पणी को गलत समझा गया- टीएमसी प्रवक्ता


वहीं, टीएमसी प्रवक्ता शांतनु सेन ने कहा, ‘हमारी नेता की टिप्पणी को भाजपा ने गलत समझा है. यह एक या दो साधु-संत के बारे में था, किसी संस्था के खिलाफ नहीं. टीएमसी और राज्य के लोग इन सामाजिक-धार्मिक संगठनों का बहुत सम्मान करते हैं.’ राजनीतिक विश्लेषक सुमन भट्टाचार्य ने कहा कि बनर्जी की टिप्पणी के राजनीतिक मायने थे. उन्होंने कहा, ‘बंगाली भद्रलोक समुदाय या उदारवादी और कुलीन बंगालियों का एक हिस्सा विभिन्न कारणों से टीएमसी से दूर होकर वामपंथियों और कांग्रेस की ओर जा रहा था. यह मुद्दा फिर से उनके समर्थन को टीएमसी की ओर मोड़ सकता है, जिससे बंगाली कुलीन वर्ग के एक महत्वपूर्ण हिस्से का समर्थन मिल सकता है.’


(एजेंसी भाषा)