Dev Anand Film: हम दोनों, देव आनंद की वह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी, जिसे उन्होंने 50 साल बाद रंगीन में ढालकर री-लॉन्च किया था. वह अपनी इस फिल्म से बेहद प्यार करते थे. फिल्म में उनका डबल रोल था. यह देव आनंद की बेहतरीन फिल्मों में एक मानी जाती है. 1961 में बनी इस फिल्म को 2011 में उन्होंने रंगीन करके नए सिरे से सिनेमाघरों में लगाया. देव आनंद चाहते थे कि नई पीढ़ी उनकी पसंदीदा फिल्म को देखे. उन्हें पता था नया युवा वर्ग ब्लैक एंड व्हाइट में तो फिल्म देखेगा नहीं. इसलिए उन्होंने इस फिल्म को रंगीन बनाने का फैसला किया. यह फिल्म भारत-बर्मा सीमा पर द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी थी. देव आनंद के भाई विजय आंनद ने फिल्म को लिखा तथा देव आनंद ने प्रोड्यूस किया था.


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दो हमशक्लों की कहानी
इस फिल्म के निर्देशक थे, अमर जीत. फिल्म में देव आनंद के साथ नंदा, साधना, ललीता पवार और लीला चिटनिस की मुख्य भूमिकाएं थी. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट थी. फिल्म की कहानी महेश आनंद (देव आनंद) से शुरू होती है, जिसे मीता (साधना) के धनी पिता बेकारी के कारण अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर देते हैं. आनंद खुद को साबित करने के लिए भारतीय सेना में शामिल हो जाता हैं. वहां उसकी मुलाकात हमशक्ल मेजर मनोहर वर्मा से होती है और दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं. लेकिन युद्ध के दौरान मनोहर लापता हो जाता है. जब आनंद, मनोहर के घर पर उसके परिवार को इस बारे में सूचित करने के लिए जाता है तो उसकी पत्नी रूमा (नंदा) और मां (ललिता पवार) गलती से उसे मनोहर समझ लेती हैं. मनोहर की मौत की खबर को आनंद किसी को नहीं बता पाता और मनोहर के रूप में ही उसके परिवार के साथ रहने लगता है. जिसके कारण आनंद के व्यक्तिगत जीवन में काफी उथल पुथल मच जाती है. क्योंकि वह किसी को भी कुछ बताने करने में असमर्थ है. अब केवल मेजर मनोहर ही उसे इस कश्मकश से बाहर निकाल सकता है.



सपना कराया पूरा
फिल्म के निर्देशक अमरजीत असल में देव आनंद के पब्लिसिस्ट थे और विजय आंनद के अच्छे दोस्त भी. किसी समय वह विजय आंनद के साथ ही रहते थे. उनकी बहुत सेवा करते. अमरजीत का सपना निर्देशक बनने का था. विजय आंनद ने अमरजीत से वादा किया था कि वह, उनका यह सपना जरूर पूरा करवाएंगे. जब विजय आंनद ने हम दोनों की स्क्रिप्ट लिखी तो उनके दिमाग में यही था कि अमरजीत इसे डायरेक्ट करेंगे. इसीलिए उन्होंने स्क्रिप्ट डिटेल के साथ सीन-दर-सीन लिखी, जिससे अमरजीत को कोई भी परेशानी न हो. लेकिन अमरजीत निर्देशन का जिम्मा ठीक से संभाल नहीं पाए. आखिरकार विजय आंनद ने ही फिल्म का निर्देशन किया लेकिन इसका क्रेडिट अपने दोस्त अमरजीत को ही दिया.


युद्ध के विरुद्ध सिनेमा
हम दोनों की हिंदी सिनेमा में एक खास जगह है और यह मस्ट वॉच फिल्मों में शामिल है. आनंद भाइयों द्वारा स्थापित नवकेतन बैनर हमेशा सार्थक फिल्में बनाता रहा है. हम दोनों भी युद्ध की भयावहता को सामने लाने के साथ, उसमें खो जाने वाले लोगों तथा परिवारों के दर्द को सामने लाती है. 1960-70 के दशक में तकनीक आज की तरह नहीं थी और हीरो या हीरोइन को डबल रोल में दिखाना एक्टर, कैमरामैन तथा डायरेक्टर तीनों के लिए बेहद कठिन था. इसके बावजूद इस फिल्म में देव आनंद के डबल रोल के लंबे सीन थे, जिसमें वह मेजर मनोहर वर्मा और महेश आनंद के रूप में आमने-सामने दिखते हैं. फिल्म में साहिर लुधियानवी के गीत थे. मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया तो अमर गीतों में शुमार है. यह फिल्म आप यूट्यूब और जियो सिनेमा पर देख सकते हैं.