Anna Salunke Life Facts: बात 1912 की है. फोटोग्राफर धुंडिराज गोविंद फाल्के जिन्हें दुनिया अब दादा साहब फाल्के (Dada Saheb Phalke) के नाम से जानती है, वे पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र (Raja Harishchandra) बनाने की प्लानिंग कर रहे थे.उस जमाने में भी फिल्म का बजट 15000 रु. था. फाल्के ने इस फिल्म को बनाने में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी और पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए थे. उनकी लगभग सारी तैयारी हो गई बस कोई अभिनेत्री नहीं मिल रही थी क्योंकि उस जमाने में फिल्मों में काम करना दुनिया का सबसे घटिया पेशों में से एक माना जाता था. अच्छे घर की लड़कियां तो दूर तवायफों ने भी दादा साहब फाल्के को खाली हाथ लौटा दिया तब अन्ना सालुंके उन्हें मिले और इतिहास में उनका नाम दर्ज हो गया.

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अन्ना सालुंके. आप इनके नाम से ज्यादा वाकिफ न हों लेकिन हिंदी सिनेमा के इतिहास में इनका नाम हीरोइन के रूप में दर्ज है. पहली हीरोइन जिसने इतिहास रचा. जब पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के लिए कोई हीरोइन नहीं मिली तो ढाबे में काम करने वाले अन्ना सालुंके (Anna Salunke) ही साड़ी पहनकर महिला बन गए, वो भी ऐसी महिला बने कि इन्हें सालों-साल तक हीरोइन ही समझा गया. दिलचस्प बात ये है कि इन्हें नाजुक हाथ और पतली कमर की बदौलत ये रोल मिला था. दरअसल, ढाबे में जब दादा साहेब फाल्के ने इनसे चाय मंगवाई तो इनके हाथ और कमर देखकर लगा कि अन्ना ही रोल में जचेंगे. फिर क्या था, पैसों के लिए अन्ना पर्दे पर महिला बनने के लिए रेडी हो गए.

खूबसूरत ऐसे थे कि जब पहली बार बड़े पर्दे पर माइथोलॉजिकल फिल्म लंका दहन में माता सीता दिखाई जानी थीं तो हीरोइनों के आने के बावजूद अन्ना को ही हीरोइन का रोल दिया गया.भारत के पहले एक्टर जिसने डबल रोल निभाया था. राम और सीता दोनों का रोल निभाते हुए इन्होंने अभिनय का वो जादू चलाया कि लोगों ने इन्हें असली भगवान समझ लिया. ऐसा जादू कि थिएटर में लोग जूते चप्पल उतारकर दाखिल होते थे.