Sara Ali Khan Film: हॉरर और थ्रिलर क्या एक ही मजा देते हैंॽ दोनों में फर्क है. बॉलीवुड में ज्यादातर निर्देशकों की समस्या यह है कि वह सब एक साथ मिला देना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि दर्शक ये नहीं, तो वो पसंद कर लेंगे. परंतु दो नाव की सवारी डुबा देती है. निर्देशक पवन कृपलानी की फिल्म गैसलाइट शुरू होती है हॉरर फिल्म की तरह, फिर धीरे-धीरे मर्डर मिस्ट्री में बदल जाती है. हॉरर का नामो-निशान नहीं बचता. यहां न हॉरर सही तरीके से काम करता है और न थ्रिल. उस पर किरदारों की परत भी जब खुलती है, तो उन्हें देखकर हंसी आने लगती है. अपना कोट पहन लेने पर एक बच्चे को नंगा करके पीटने वाले राजा साहेब यहां महान हैं. उनके एहसान तले दो बच्चे पले-बढ़े हैं. बड़े होकर उनके मन में क्या है, यह आप गैसलाइट में देख सकते हैं.


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कहानी का सिर-पैर
लेखक-निर्देशक पवन कृपलानी को गैसलाइट कहानी ट्यूबलाइट की रोशनी में लिखनी चाहिए थी, जिससे उनके सामने चीजें साफ रहतीं. दर्शकों को भी मजा आता. परंतु सब कुछ फार्मूला ढंग से यहां-वहां जोड़ने की कोशिश हुई है. कहानी शुरु होती है कि राजकुमारी मीशा (सारा अली खान) पंद्रह साल बाद अपने पिता के घर लौटी है. एक हादसे में मीशा ने दोनों पैर खो दिए थे और वह व्हीलचेयर पर रहती है. पिता ने आज के जमाने में चिट्ठी लिखकर उसे बुलाया है. लेकिन मीशा को राजमहल में पता चलता है कि राजा साहब काम से बाहर गए हैं. राजा साहब की दूसरी पत्नी रुक्मणि (चित्रांगदा सिंह) मीशा के नजदीक आने की कोशिश करती है, परंतु वह दूरी बनाए रखती. फिर अचानक मीशा को महल में राजा साहब दिखाई देने लगते हैं और उसके साथ एक-दो डरावनी घटनाएं हो जाती हैं. क्या राजा साहब मर चुके हैंॽ यह मीशा का सवाल हैॽ राजा साहब मीशा को बार-बार दिखकर क्या बताना रहे हैंॽ क्या राज हैॽ क्या रहस्य हैॽ राजा का करीबी सेवक कपिल (विक्रांत मैसी) मीशा को दिलासा देते-देते उसके नजदीक आने लगता है. कहानी में पुलिस अफसर (राहुल देव), डॉक्टर (शिशिर शर्मा) और दूर के एक रिश्तेदार (अक्षय ओबेराय) की भी एंट्री होती है और धीरे-धीरे राज खुलने लगते हैं.


गैस लीक गुब्बारा
गैसलाइट में जो राज खुलते हैं, उससे कहानी की स्थिति गैस लीक हुए गुब्बारे जैसी हो जाती है. दर्जनों फिल्मों में दोहराई बातें यहां हैं और कहानी का क्राफ्ट भी कुछ नए अंदाज में बात नहीं करता. कुल मिलाकर फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे बोर करती है. फिल्म की रफ्तार बहुत धीमी है और आप अपने बॉलीवुड अनुभव से जानते हैं कि हर फिल्म में व्हीलचेयर पर दिखने वाला आखिर में दौड़ने लगता है. जो सबसे मासूम और भरोसेमंद दिखता है, अंत में वही सबसे बड़ा खिलाड़ी साबित होता है. ऐसे में अगर गैसलाइट में किसी शाहकार खड़ा की उम्मीद न करें.


सारा का हॉरर
पवन कृपलानी इससे पहले रागिनी एमएमएस (2011) और फोबिया (2016) जैसी बढ़िया हॉरर फिल्में बना चुके हैं. परंतु उनके खाते में डर एट द रेट द मॉल (2014) और भूत पुलिस (2021) जैसी बेहद कमजोर फिल्में भी हैं. गैस लाइट में वह हॉरर और थ्रिलर के बीच कनफ्यूज हैं. फिल्म में सारा अली खान और विक्रांत मैसी अपनी तरफ से भरपूर कोशिश करते हैं, परंतु बात बन नहीं पाती. सारा के चेहरे पर न डरने वाले भाव आते हैं और न डराने वाले. नेपोटिज्म का फायदा यही है कि नाकामी डराती नहीं है. वहीं विक्रांत फिल्म बढ़ने के साथ ऐक्टिंग से ओवर एक्टिंग की तरफ खिसकते जाते हैं. फिल्म का अंत किसी भी कोण से हॉरर-थ्रिलर फिल्म वाला नहीं लगता. दर्शक को किसी बड़े तूफान के गुजर जाने का रत्ती भर एहसास नहीं होता. गैसलाइट मूलतः किसी कहानी के बजाय सैट-अप जैसी फिल्म है. जिसमें लोकेशन और किरदारों की गिनती के आधार पर बजट बनाया जाता है. फिर उसी बजट में सबके मुनाफे को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट पूरा किया जाता है. डिज्नी हॉटस्टार पर फिल्म रिलीज हुई है. अगर आपका दिल इतना मजबूत है कि कमजोर हॉरर, लचर थ्रिलर देख सकता है तो ट्यूबलाइट बंद करके गैसलाइट देख लें. एक घंटा 52 मिनिट लगेंगे.


निर्देशकः पवन कृपलानी
सितारे : सारा अली खान, विक्रांत मैसी, चित्रांगदा सिंह
रेटिंग**


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