Gulzar Poems: नई दिल्ली: गुलजार ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक गीत दिए हैं. उन्होंने न केवल अपनी कलम से कलम से जादू पैदा किया, बल्कि कई कठिन उर्दू-फारसी शायरों की पंक्तियों को समय के हिसाब से इतने सरल लहजे में ढाला कि लोग उन्हें आज भी गुनगुनाते हैं. ऐसे ही एक गीतों में शामिल है, फिल्म गुलाम का यह गानाः जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन बरंजिश. इस गाने को लता मंगेशकर के साथ शब्बीर कुमार ने दिल में उतर जाने वाले अंदाज में गाया है. जबकि इसकी पहली पंक्ति इतनी कठिन है कि हिंदी का आम श्रोता तो क्या विद्वानों को भी समझने में पसीने छूट जाएं. वास्तव में यह मध्यकालीन महान कवि अमीर खुसरो की कविता थी, जिसे गुलजार ने अपनी रंगत में रंग दिया.


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अमीर खुसरो ने लिखा
गुलजार ने अमीर खुसरो की पंक्तियों को लेकर बेहद सरल में इस तरह से आगे लिखा कि यह गाना लोगों की जुबान पर चढ़ गया. गुलजार ने अमीर खुसरो की जिस प्रसिद्ध रचना है से प्रेरित होकर अपना गाना लिखा वह फारसी और बृजभाषा में थी. अमीर खुसरो ने लिखा थाः
‘ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऐ जान
न लेहो काहे लगाये छतियां’

इन पंक्तियों का अर्थ है कि आंखें चुराकर और बातें बनाकर मेरी बेबसी से यूं नजर मत फेरो. तुमसे बिछड़ने से मेरी जान ऐसे जल रही है कि मेरे प्राण ही निकलने वाले हैं. अब भी क्यों नहीं तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेते.


गुलजार ने रंग भरा
अमीर खुसरी की पंक्तियों को आज के समय में समझ पाना बहुत ही मुश्किल है. परंतु गुलजार ने जब इसे अपने सरल सादगी भरे अंदाज में लिखा, तो इनका अलग ही अर्थ निखर कर आ गया. इन पंक्तियों से प्रेरित होकर गुलजार ने फिल्म गुलामी का गीत लिखाः
‘जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन बरंजिश
बेहाल-ए-हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है’

यहां भी यह जरूर है कि कि शुरुआती दो लाइनें बहुतों को समझ नहीं पड़तीं. मगर इनका अर्थ है कि मेरे दिल पर रहम करो, इससे नाराजगी न हो. दिल तो बेचारे है, इसने तो जुदाई का दर्द सहा है. उल्लेखनीय है फिल्म गुलामी मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेंद्र, अनीता राज, नसीरुद्दीन शाह, रीना रॉय और स्मिता पाटिल अहम भूमिकाओं में थे. जबकि के इस गाने का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने तैयार किया था.


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