Mrunal Thakur Film: बॉलीवुड फिल्मों के दर्शकों ने गुमराह होना बंद कर दिया है. अब वे साउथ की रीमेक फिल्मों के बहाने खुद को चमकाने वाले सितारों को देखने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे. बीते दो साल का हिसाब छोड़िए, इसी साल कार्तिक आर्यन (शहजादा), अक्षय कुमार-इमरान हाशमी (सेल्फी) और अजय देवगन (भोला) की रीमेक फिल्में टिकट खिड़की पर फ्लॉप हैं. तमिल फिल्म थडम की रीमेक, आदित्य रॉय कपूर स्टारर गुमराह भी उसी रास्ते पर है. फिल्म का प्रमोशन भी इतना कमजोर था कि लोगों को पता तक नहीं चला कि यह फिल्म आ रही है. यह निर्देशक वर्द्धन केतकर की डेब्यू फिल्म है. कहने को फिल्म मर्डर मिस्ट्री है, लेकिन चीजें इसमें जिस तरह से खुलती हैं वह ज्यादा समय तक दर्शक को बांध कर नहीं रख पातीं.


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केस की उलझन
कहानी दिल्ली-गुरुग्राम में सैट है. शुरुआत में आप देखते हैं कि फ्लैट के अंदर एक व्यक्ति (आदित्य रॉय कपूर) आकाश सरदाना (आदित्य लाल) की बेरहमी से हत्या करता है. हत्यारे का चेहरा देखकर दर्शक को लगता है कि मामला बिल्कुल साफ है. संयोग से पुलिस को हत्यारे का सुराग एक सेल्फी से मिलता है, जो बहुत दूर कहीं ली गई थी और उसके बैकग्राउंड में हत्यारे की तस्वीर कैद हो गई. फोटो एकदम क्लीयर है. पुलिस उस व्यक्ति को तुरंत खोज निकालती है और यह है, अर्जुन सहगल (आदित्य रॉय कपूर). एक इंजीनियर. जब तक अर्जुन के मुंह से सच उगलवाया जाए, तब तक थाने में दूसरे युवक को लाया जाता है और यह है, सूरज राणा उर्फ रॉनी (आदित्य रॉय कपूर). एक लोकल बदमाश. अब पुलिस हैरान है कि यह क्या माजरा है. दो एक जैसे दिखने वाले शख्स! कौन है हत्याराॽ मामले की जांच एसीपी धीरेन यादव (रोनित रॉय) और इंस्पेक्टर शिवानी माथुर (मृणाल ठाकुर) के हाथों में हैं. अब उलझा केस कैसे आगे बढ़ेगाॽ


एंगल और भी
फिल्म रोमांचक शुरुआत के साथ आगे बढ़ती है. फिर अर्जुन और सूरज की कहानियां बैकग्राउंड में खुलती हैं। पता चलता है कि हत्या की वजह क्या है, किसकी हत्या हुई, क्यों हत्या हुई। लेकिन इन सबके बीच स्क्रिप्ट ढीली पड़ती जाती है. फ्लैशबैक में आने वाले फैमेली ड्रामा और लव स्टोरी थ्रिल को पटरी से उतार देते हैं. एसीपी और अर्जुन के बीच एक पुराना मामला सामने आता है, जिसमें पुलिस अफसर हर हाल में अर्जुन को मर्डर में फंसाना चाहता है. जबकि लेडी इंस्पेक्टर माथुर इसके खिलाफ है. वह चाहती है कि पूरा सच सामने आए. पता चले कि आखिर किसने हत्या की. इस द्वंद्व में कहानी बिखर जाती है. फिल्म को एडिटिंग के द्वारा कसे जाने की जरूरत थी. फिल्म को जब मर्डर की जांच के दौरान सबसे रोमांचक होना चाहिए, वह हो नहीं पाती. ऐसा लगता है कि राइटर-डायरेक्टर ने हत्या की जांच के मामले को गंभीरती से नहीं लिया. नतीजा यह कि पहले हिस्से में लचर पड़ने के बाद गुमराह दूसरे हिस्से में भटकने लगती है. लेकिन इससे भी ज्यादा निराशा होती है, जब केस अदालत में जाता है. रोमांचक उतार-चढ़ाव के अभाव में ढाई घंटे की फिल्म बहुत लंबी मालूम पड़ती है.


एक्शन और जीरो-इमोशन
मूल रूप से गुमराह का आइडिया रोमांचित करता है, लेकिन शुरुआती मिनटों के बाद ही फिल्म शिथिल होने लगती है. आदित्य रॉय कपूर दोनों भूमिकाओं को शिद्दत से निभाने की कोशिश करते हैं, लेकिन दर्शक के दिल को नहीं छू पाते. उनका अपना कोई स्टाइल उभर कर नहीं आता. साथ ही लगता है कि एक्टिंग से ज्यादा एक्शन दृश्यों पर जोर है. जो अर्जुन और सूरज के किरदारों से मैच नहीं करते. मृणाल ठाकुर की समस्या यह है कि उन्हें इमोशन दिखाने का मौका ही नहीं मिला. वर्दी में वह भावहीन चेहरे के साथ पर्दे पर आती हैं. रोनित रॉय जरूर अपने किरदार में जमते हैं, लेकिन बीते कई वर्षों में वह हर दूसरा रोल पुलिसवाले या सरकारी एजेंट का ही कर रहे हैं. अतः कोई विविधता उनमें भी नहीं दिखती. अर्जुन बने आदित्य की गर्लफ्रेंड के रूप में वेदिका पिंटो ने अपना काम ठीक किया है. जबकि म्यूजिक कोई जादू नहीं जगाता. डेब्यू निर्देशक के रूप में वर्द्धन केतकर औसत हैं. अगर आपने मूल फिल्म नहीं देखी तो इस मर्डर मिस्ट्री को देख सकते हैं। परंतु ध्यान रखें कि जेब में एक्स्ट्रा मनी और फ्री टाइम हो, तभी उम्मीद लिए बगैर थियेटर में जाएं.


निर्देशकः वर्द्धन केतकर
सितारे : आदित्य रॉय कपूर, मृणाल ठाकुर, रोनित रॉय, आदित्य लाल, वेदिका पिंटो
रेटिंग**


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