Bollywood Eid Release: इस साल की शुरुआत में पठान की रिलीज के वक्त शाहरुख खान के फैन्स ने अपने हीरो को सिर-आंखों पर बैठा के अपनी ताकत बताई थी. अब सलमान खान के फैन्स की बारी है. किसी का भाई किसी की जान को ये फैन ही बचा पाएंगे. यह साउथ की तमिल फिल्म वीरम की रीमेक है और सलमान ने यहां बॉलीवुड के साथ साउथ को मिक्स किया है. फिल्म पूरी तरह से सलमान के कंधों पर हैं. फिल्म में सलमान के भाई बने सिद्धार्थ निगम, राघव जुयाल, जस्सी गिल और इनकी गर्लफ्रेंड्स बनीं शहनाज गिल, पलक तिवारी, विनाली भटनागर जैसे नए चेहरे हैं, लेकिन ये सारे भाईजान के स्टारडम के आगे फीके पड़ गए. पूजा हेगड़े, व्यंकेटेश और जगतपति बाबू फिल्म में साउथ का फ्लेवर जोड़ते हैं.


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चार लव स्टोरी और गायब रोमांस
फिल्म की कहानी दिल्ली में रहने वाले भाईजान की है, जिसने तीन अनाथ बच्चों को अपने भाइयों की तरह पाला. भाईजान की कभी एक गर्लफ्रेंड भाग्या (भाग्यश्री) थी. मगर दोनों की शादी नहीं हो सकी. भाईजान ने जिंदगी भर शादी न करने का फैसला किया है क्योंकि वह नहीं चाहता कि पत्नी की वजह से भाइयों का प्यार बंट जाए. जबकि तीनों छोटे भाई भाईजान से नहीं कह पाते कि उन्हें प्यार हो गया है. तभी उनके मोहल्ले में हैदराबाद से भाग्या (पूजा हेगड़े) आती है. तीनों छोट भाई भाग्या की जोड़ी भाईजान के साथ बनाने में जुट जाते हैं ताकि खुद भी जिंदगी सेट हो सके. परंतु कहानी में खलनायक भी हैं. दिल्ली वाले खलनायक (बॉक्सर विजेंदर सिंह) अलग और हैदराबाद वाले खलनायक (जगतपति बाबू) अलग. भाईजान इन खलनायकों से लड़ता है. सवाल रह जाता है कि क्या भाईजान के इरादे बदलेंगेॽ क्या भाईजान की शादी होगीॽ क्या तीनों छोटे भाइयों की अपनी गर्लफ्रेंड्स से शादी होगीॽ गौर करने वाली बात यह भी है कि फिल्म में कहने को चार-चार लव स्टोरी चलती हैं परंतु कहीं आपको रोमांस महसूस नहीं होता.


जैसे सलमान की फिल्म
किसी का भाई किसी की जान के बारे में आप यही कह सकते कि यह वैसी फिल्म है, जैसी सलमान की फिल्में होती हैं. जिसमें आप दिमाग न लगाएं. जो दिखाया जा रहा है, देखते रहें. इसके बावजूद समस्या यह है कि फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है, रफ्तार बहुत धीमी है, हर दस मिनट में फिल्म याद दिलाती है कि भाईजान ब्रांड हैं. कुल मिलाकर फिल्म से आप कुछ उम्मीद न करें. कहानी के साथ स्क्रिप्ट में समस्याएं हैं. पटकथा में बहाव या निरंतरता गायब है. यह खटकता है. भाईजान को देखकर फिल्म के अंदर मोहल्ले वाले जरूर खूब सीटियां बजाते हैं, परंतु सलमान के पास ऐसे संवाद नहीं हैं कि जिन्हें सुन कर आप सीटी बजाएं. यही स्थिति एक्शन की है. सलमान ने अपनी मार्केट छवि को ही यहां जीया है और उसे ही नए सिरे स्थापित करते हैं. मगर साफ महसूस होता है कि समय सलमान को पीछे छोड़कर अपनी गति से आगे निकल चुका है.


एक्टिंग का क्या
वास्तव में फिल्म के शुरुआती मिनटों में ही साफ हो जाता है कि लेखकों और निर्देशक ने किसी भी स्तर पर नएपन से दूरी बनाए रखी. सलमान का फिल्म में जैसा इंट्रोडक्शन है, वैसा दर्जनों फिल्मों में आ चुका है. क्लाइमेक्स के फाइटिंग सीन 1980 और 1990 के दशक के मालूम पड़ते हैं. पूरा फोकस सलमान पर है. थोड़ा बहुत भाइयों पर. बाकी सारे लोग तमाशाई बने खड़े हैं. जहां तक अभिनय का सवाल है तो सलमान ने लंबे बालों और दाढ़ी वाले गेट-अप के अलावा सब कुछ वही किया, जो बाकी फिल्मों में करते हैं. शहनाज गिल का खूब हल्ला था कि वह इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू कर रही हैं. लेकिन गिनती के सीन और गिनती के डायलॉग उनके हिस्से आए. एकाध ही क्लोज-अप होगा. यही स्थिति पलक तिवारी की है.


बात निर्देशक की
सिद्धार्थ निगम, राघव जुयाल और जस्सी गिल के हिस्से में जरूर लंबा काम हैं. मगर वह ऐसा नहीं है जो बॉलीवुड में जमा पाएंगे. पूजा हेगड़े सुंदर दिखी हैं परंतु सलमान के साथ उनकी जोड़ी नहीं जमती. ऐक्टिंग करते और किरदार में उतरते अगर कोई कलाकार नजर आते हैं तो वह हैं व्यंकटेश, जगतपति बाबू और रोहिणी हट्टंगड़ी. तीनों ने अपनी भूमिकाओं को बहुत खूबसूरती से निभाया है. फिल्म को सीमित लोकेशनों पर फिल्माया गया है. जबकि संगीत औसत है. निर्देशक फरहाद सामजी फिल्म में असर पैदा करने में नाकाम रहे हैं.


निर्देशकः फरहाद सामजी
सितारे: सलमान खान, पूजा हेगड़े, सिद्धार्थ निगम, शहनाज गिल, पलक तिवारी, व्यंकटेश, जगतपति बाबू और रोहिणी हट्टंगड़ी
रेटिंग**1/2


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