Bollywood Bold Films: कई लोग अपने काम से समय और समाज को चुनौती देते हैं. वे लीक से हटकर चलते हैं और इसलिए अक्सर उनका सही मूल्यांकन भी नहीं हो पाता. 1970 के दशक में जब हिंदी सिनेमा के निर्माता-निर्देशक-कलाकार मानते थे कि हीरोइन को प्रेमिका और पत्नी ही होना चाहिए, उस दौर में लेखक-निर्देशक बी.आर. इशारा ने ऐसी फिल्म बनाई, जिसने इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया. फिल्म थी, चेतना. शत्रुघ्न सिन्हा, रेहाना सुल्तान और अनिल धवन. फिल्म के अंदर जो था, वह तो हंगामाखेज था लेकिन चेतना के पोस्टर ने ही लोगों को हिला दिया. पोस्टर पर नायिका के खुले पैर अंग्रेजी के ए अक्षर की तरह दिखाए गए थे और उनके बीच में हीरो को खड़ा किया था.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


कहानी चेतना की
चेतना ने बॉक्स ऑफिस पर ऐसी धमाकेदार कामयाबी और चर्चा पाई कि इसके बाद हिंदी में बोल्ड फिल्मों की लहर पैदा हो गई. चेतना एक कॉल गर्ल सीमा (रेहाना सुल्तान) की कहानी है. सीमा एक शर्मीले लड़के अनिल (अनिल धवन) का दिल जीत लेती है. वह उसके सामने शादी करने और समाज में सम्मानित जीवन की पेशकश करता है. सीमा हिचकिचाती है लेकिन जब उसे यकीन हो जाता है कि अनिल वास्तव में प्यार करता है, तो वह तैयार हो जाती है. दोनों का विवाह होता है. परंतु तभी सीमा को पता चलता है कि वह गर्भवती है. उसे पता नहीं है कि होने वाले बच्चे का पिता कौन है. क्लाइमेक्स जानने के लिए आप फिल्म देख सकते हैं. फिल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है. अगर आप फिल्म संगीत के शौकीन हैं तो यह गाना जरूर सुना होगाः मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा. यह शानदार गाना इसी फिल्म का है.


निकाला धक्के देकर
चेतना का विषय उस समय के हिसाब से इतना बोल्ड था कि दो निर्माताओं कहानी सुनने के बाद बी.आर. इशारा को धक्के देकर दफ्तर से निकाल दिया था. आखिरकार इशारा की फिल्मों के एडिटर आई.एम. कुन्नू ने चेतना प्रोड्यूस की. मगर इस शर्त पर कि इशारा इसे एक स्टार्ट-टू-फिनिश शेड्यूल में शूट करेंगे. 25 दिनों के लिए पुणे के एक बंगले में फिल्म की शूटिंग हुई. सुबह 5.30 बजे से रात 11 बजे तक काम चलता. एक दिन तो लगातार 26 घंटे तक शूटिंग हुई. इसके बाद एक दिन की शूटिंग मुंबई में हवाई अड्डे पर हुई और एक गाना अलीबाग में फिल्माया गया. महीने भर के अंदर पूरा काम खत्म हुआ और कुल मिलाकर बजट था, 95 हजार रुपये. चेतना अपने समय की सबसे सस्ती फिल्मों में से एक थी, और निश्चित रूप से सबसे विवादास्पद भी.


होश उड़े निर्माताओं के
फिल्म बनने के बाद वितरक इसे हाथ लगाने को राजी नहीं थे. उस दौर के प्रसिद्ध वितरक नाज ने इसे तीन बार खरीदा और लौटाया. लेकिन जब आखिरकार चेतना रिलीज हुई, तो थिएटरों में भीड़ उमड़ पड़ी. जबकि सेंसर बोर्ड ने इसे ए प्रमाणमत्र (केवल वयस्कों के लिए) दिया था. फिल्म की चर्चा इतनी तेज हुई कि टिकट ब्लैक में बिके. चेतना की लोकप्रियता ने इंडस्ट्री के निर्माताओं को हिला दिया. सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के पास 45 बड़े फिल्म निर्माताओं ने शिकायत की और कहा कि चेतना को बैन किया जाना चाहिए. फिल्म में एक विदेशी शराब की बोतल दिखाई गई थी, इस पर भी कई लोगों को आपत्ति थी कि इससे व्हिस्की के आयात को बढ़ावा मिलेगा. कई निर्माता चाहते थे कि रेहाना सुल्तान की खुली टांगों के सीन हटाए जाएं. वे फिल्म के उत्तेजक पोस्टर से भी नाराज थे.


आइटम नंबरों से बेहतर
1970 वही साल था जब आनंद, हीर रांझा, कटी पतंग, पूरब और पश्चिम, जॉनी मेरा नाम, मेरा नाम जोकर और प्रेम पुजारी जैसी सितारों से सजी फिल्में रिलीज हुई थीं. मगर इन सबके बीच चेतना की धमक सबसे अलग थी. बी.आर. इशारा ने चेतना के बाद भी कई बोल्ड फिल्में बनाईं. उनका तर्क था कि दो युवा लोगों को एक साथ अंतरंग पलों में दिखाना, आइटम नंबरों में हीरोइन के शरीर को उत्तेजक ढंग से दिखाने से अधिक सभ्य होता है. चेतना के विषय पर अंगली उठाने वालों से उन्होंने कहा कि हर वेश्या एक महिला होती है और हर महिला पुरुष के बराबर है. उसकी भी भावनाएं और इच्छाएं होती हैं. उन्हें नजरअंदाज करना गलत है. चेतना को रिलीज हुए 50 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन आज भी यह हमारे समय और समाज को आईना दिखाती है.