Triple Murder Case In Delhi: सबूतों की कड़ी, 45 गवाहों में सभी का बयान पर टिके रहना और खुद जांच अधिकारी के तर्क ने आखिरकार दिल्ली (Delhi) में 8 साल पहले हुए दर्दनाक हत्या, बलात्कार और लूट के तीनों आरोपियों को मौत की सजा के कगार पर पहुंचा दिया. तीस हजारी अदालत की एएसजे आंचल ने इस मामले के तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई है. इन आरोपियों में वह शख्स भी शामिल है जिस पर जेल में पारा मंगाकर कैदियों की हत्या करने की साजिश का आरोप है. उसे कैदियों पर उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों के दौरान एक धार्मिक स्थल में आग लगाने का शक था. इस मामले में जेल प्रशासन ने उससे मोबाइल भी जब्त किया था और उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज है.


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हत्या, बलात्कार और लूट के मामले ने मचा दी थी सनसनी


20 सितंबर 2015 को सुबह लगभग 6 बजकर 55 मिनट पर, थाना ख्याला में एक सनसनीखेज ट्रिपल मर्डर का मामला सामने आया था. जिसमें एक महिला की न केवल हत्या कर दी गई थी, बल्कि उसके साथ बलात्कार और लूटपाट भी की गई थी. इसके अलावा, उसके 6 और 7 साल के दो मासूम बच्चों की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. बच्चे के शव पर एक रंग बिरंगा तौलिया पड़ा हुआ था और उसके मुंह से खून निकल रहा था. उसके मुंह के पास खून से सनी एक सफेद रंग की शर्ट के साथ एक पॉलिथीन भी पड़ी थी. युवती के गले में एक सफेद रंग का रूमाल बंधा हुआ मिला. इसके अलावा उक्त महिला के दोनों पैर लाल रंग की डोरी से बंधे हुए थे. महिला के सिर के नीचे खून से सना हुआ एक बहुरंगी तकिया था. उक्त शव के साथ चूड़ियों के कुछ टूटे हुए टुकड़े पड़े हुए थे.


सबसे पहले किस पर हुआ शक?


इसके अलावा महिला की गर्दन चुन्नी से बंधी हुई थी. उसके चेहरे पर खून लगा हुआ था और गर्दन से खून बह रहा था. कमरे के फर्श पर कुछ खून भी पड़ा हुआ था. एक मैरून रंग की सलवार फर्श पर पड़ी थी और पैजामी का एक हिस्सा डोरी से बंधा हुआ मिला. इस संबंध में, मृत महिला के पति की शिकायत पर ख्याला पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया. एफआईआर में शिकायतकर्ता ने अपने मकान मालिक फहीम पर शक जताया था. जांच अधिकारी और तत्कालीन एसएचओ इंस्पेक्टर तनवीर अशरफ ने मकान मालिक से पूछताछ की लेकिन उसकी संलिप्तता नहीं पाई गई.


मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश


बलात्कार, हत्या और लूट के इस सनसनीखेज मामले के बाद बड़ी संख्या में लोग सड़क पर उतरकर हिंसक हंगामा करने लगे. पथराव में इंस्पेक्टर तनवीर अशरफ सहित कई पुलिसकर्मी घायल हो गए. कई गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया. उस रात, कुछ लोगों ने उक्त घटना को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की, लेकिन पुलिस ने बहुत ही चतुराई से स्थिति को संभाल लिया और क्षेत्र की कानून व्यवस्था बनाए रखने में सफल रही. व्यापक मीडिया कवरेज वाली इस घटना ने पूरी दिल्ली में सनसनी फैला दी थी. पुलिस ने दवाब में ना आकर असली अभियुक्तों की तलाश शुरू की और 04 अक्टूबर 2015 को गुप्त सूचना मिलने पर दो आरोपी मो. अकरम और शाहिद को रघुबीर नगर से गिरफ्तार किया गया. उनकी निशानदेही पर तीसरे आरोपी रफत अली उर्फ मंजूर अली को अलीगढ़ से गिरफ्तार किया गया और एक जेसीएल को खजूरी चौक, दिल्ली से पकड़ा गया.


इस तरह इकट्ठा किए गए सबूत


तीनों आरोपियों की निशानदेही पर एक लूटा हुआ स्कूल बैग जिसमें उनके खून से सने कपड़े और अपराध का हथियार यानी खून से सना स्क्रू ड्राइवर था, जब्त कर लिया गया. सभी आरोपियों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए. खास बात ये थी कि तीनों आरोपी व्यक्तियों का यौन क्षमता परीक्षण भी करवाया गया, जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मरीज यौन क्रिया करने में सक्षम नहीं हैं. आरोपी शाहिद और रफत अली की टीआईपी कार्यवाही कराई गई जिसमें आरोपी शाहिद अली की सही पहचान हुई जबकि रफत अली ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया. पुलिस रिमांड के दौरान, तीनों आरोपियों की पहचान उक्त शब्बू और एक सुरक्षा गार्ड आनंद (उक्त फैक्ट्री के, जिसमें आरोपी व्यक्ति अपराध करने के बाद रुके थे) द्वारा सही ढंग से की गई थी. आरोपी शाहिद की निशानदेही पर, लूटे गए आभूषणों को अलीगढ़ में स्थित एक आभूषण की दुकान से बरामद किया गया, जहां उसने गिरवीनामा के माध्यम से इन्हें गिरवी रखा था. गहनों और लूटे गए स्कूल बैग की टीआईपी कार्यवाही अदालत के माध्यम से कराई गई और शिकायतकर्ता द्वारा इसकी सही पहचान की गई. गिरवीनामा पर अभियुक्त शाहिद अली के हस्ताक्षर का भी एफएसएल से मिलान कराया गया.


इसके अलावा सभी आरोपी व्यक्तियों के मोबाइल फोन की सीडीआर प्राप्त की गई और उसका विश्लेषण किया गया. इसी के आधार पर अलीगढ से दिल्ली और दिल्ली से अलीगढ़ तक उनके मार्ग स्थापित किए गए. मौके से इकट्ठा किए गए सबूतों और आरोपी व्यक्तियों की निशानदेही पर बरामद किए गए प्रदर्शनों की डीएनए प्रोफाइलिंग का मिलान पाया गया.


अदालत में इस तरह टिके सबूत और गवाह


मुकदमे के दौरान, सभी 45 गवाहों से पूछताछ की गई, जिसमें सभी ने वही बयान सुनाया जो सीआरपीसी की धारा 161 के तहत जांच अधिकारी के सामने दर्ज करवाया था. जांच अधिकारी होने के नाते इंस्पेक्टर तनवीर अशरफ ने मामले की सुनवाई बहुत कुशलता से की. वह प्रत्येक तारीख पर कोर्ट के सामने उपस्थित हुए. इसके अलावा, उन्होंने अभियोजन पक्ष के गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की. अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच के समापन के बाद, उन्होंने अदालत के समक्ष उपस्थिति नहीं छोड़ी. उन्होंने मामले की अंतिम बहस की हर तारीख में भाग भी लिया और सरकारी वकील के साथ-साथ खुद भी तर्क पेश किए.


यह थी इस मामले की खासियत


अदालत के सामने एक भी गवाह अपने बयान से मुकरा नहीं और सभी ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान के अनुसार अपनी गवाही दी. अदालत के समक्ष परीक्षण के समय सभी संबंधित गवाहों ने आरोपी व्यक्तियों की सही पहचान की. बचाव पक्ष प्रदर्शनों की बरामदगी पर कोई सवाल नहीं उठा पाया.