नई दिल्ली. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सर्विसेज परीक्षा को देश की सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षाओं में एक माना जाता है. यही वजह है कि इस परीक्षा में सभी को सफलता नसीब नहीं होती है. जो अभ्यर्थी इस परीक्षा में सफल होते हैं, वो दूसरों के लिए प्रेरणादायी बन जाते हैं. ऐसी ही कुछ कहानी नीरीश राजपूत की है. 


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मूलरूप से मध्य प्रदेश के रहने वाले नीरीश के पिता परिवार का खर्च चलाने के लिए दर्जी का काम करते थे. बावजूद इसके कभी-कभी ऐसी स्थिति हो जाती थी कि उनके पिता को खर्च चलाने के लिए लोगों से उधार लेने पड़ते थे. पिता की आर्थिक हालत और मेहनत देखकर नीरीश ने ठान लिया कि वो किसी भी हाल में यूपीएससी की सिविल सेवा क्रैक करेंगे.


अपने गांव से कुछ दिनों बाद नीरीश ग्वालियर चले आएं और यहां एक प्राइवेट नौकरी पकड़ ली. यहां से उन्होंने नौकरी के साथ बीएससी और एमएससी की. हालांकि, तैयारी के दौरान उन्हें नोट्स आदि का पैसा घर से नहीं मिल पाता था, इसके लिए वह खुद अखबार बेचते थे. अखबार से जो पैसा मिलता था, उससे वह अपनी नोट्स खरीदते थे और तैयारी करते थे. 
 
यूपीएससी की परीक्षा (UPSC Exam) की तैयारी करने के दौरान नीरीश के एक दोस्त ने कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला और उसने नीरीश को पढ़ाने के लिए बुलाया और कहा कि अगर कोचिंग चल जाएगी, तो वह उसकी मदद करेगा. मगर जब दो वर्ष बाद कोचिंग इंस्टीट्यूट चल पड़ी, तो उसने नीरीश को निकाल दिया गया. 


दोस्त का विश्वघात नीरीश को अंदर से खाए जा रहा था. इसके बाद नीरीश अपने एक दोस्त के पास दिल्ली (Delhi) चले गए, जो की यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहा था. नीरीश के कोचिंग के पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने खुद तैयारी की. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि उन्हें यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा में 370 रैंक मिली. हालांकि इससे पहले नीरीश तीन बार असफल हुए थे. 


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