Margashirsha Mahina 2024: पृथ्वी पर कब शुरू हुआ था सतयुग? जब जलदैत्य हयग्रीव को मारने के लिए त्रिलोकीनाथ को लेना पड़ा मत्स्य अवतार
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Margashirsha Mahina 2024: पृथ्वी पर कब शुरू हुआ था सतयुग? जब जलदैत्य हयग्रीव को मारने के लिए त्रिलोकीनाथ को लेना पड़ा मत्स्य अवतार

Margashirsha Mahina 2024 Importance: क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी पर सतयुग कब शुरू हुआ था, जब भगवान विष्णु को जलदैत्य हयग्रीव को मारने के लिए मत्स्य के रूप में अपना पहला अवतार लेना पड़ा था. 

 

Margashirsha Mahina 2024: पृथ्वी पर कब शुरू हुआ था सतयुग? जब जलदैत्य हयग्रीव को मारने के लिए त्रिलोकीनाथ को लेना पड़ा मत्स्य अवतार

Margashirsha Mahina 2024 Start Date: आप में से बहुत से दर्शकों को अगर अगहन का मतलब नहीं मालूम, तो उन्हें बता दें, कि ये मौजूदा हिंदू कैलेंडर का 9 महीना है, जिसे मार्गशीर्ष कहा जाता है. 30 सूर्य दिवस का ये महीना नवंबर में शुरू होता है और दिसंबर में खत्म होता है. हमारी वैदिक गणना बताती है, अगहन महीने के पहले दिन धरती पर पहले मानव युग, यानी सतयुग की शुरुआत हुई. ये करीब 39 लाख साल पहले की बात है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे, धरती पर युगों का बंटवारा और काल-गणना का रहस्य क्या है. दिलचस्प बात ये है कि सतयुग का ये कैलेंडर आज भी काम करता है और वैज्ञानिक गणना को चुनौती देता है.

'मैं ही मार्गशीर्ष हूं, ये मेरा ही स्वरूप'

मसानां मार्गशीर्षो अयम् यानी मैं ही मार्गशीर्ष हूं, ये मेरा ही स्वरूप है! श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण, मार्गशीर्ष, यानी अगहन मास को अपना स्वरूप बताया है. वो गीता ये भी बताती है, कि श्रीकृष्ण ने ऐसा क्यों कहा. भगवान श्रीकृष्ण की ये बात धरती के तीसरे युग, द्वापर की है, लेकिन धरती पर पहले युग की शुरुआत रहस्य क्या है...?

अब यहां मार्गशीर्ष पर देव कृपा का रहस्य समझिए, हिंदू पंचांग का ये नौंवा महीना है, कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन शुरू होता है. यानी देव दीपावली के अगले दिन. देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. वैदिक मान्यता के मुताबिक धरती दीपों का उत्सव देव लोक से धरती पर उतरे देवताओं के लिए मनाया गया था. 

सतयुग से पहले की आखिरी रात यानी देव दीपावली. देव दीपावली की वो दिव्य परंपरा अगर आज चौथे युग में भी जारी है, तो उसके पीछे एक विधान है, धरती पर पहले मानव युग की काल गणना का प्रतीक है. धरती पर युगों की परिकल्पना की तरह दो लोकों की मान्यता है, एक जहां देवता रहते हैं, वो देवलोक. यहां मृत्यु नाम की चीज नहीं होती. जहां जीवन मरण का सिलसिला चलता है, उसे कहते मृत्युलोक. 

39 लाख साल पहले धरती पर सतयुग आया

मानव युग की शुरुआत इसी मृत्युलोक की है. वैदिक गणना के मुताबिक ये 39 लाख साल पहले की बात है. सृष्टि की रचना के बाद धरती पर जब जीवन पनपा, उसके हिसाब से ही युग किए गए. 39 लाख साल पहले धरती पर सतयुग आया. सतयुग इस धरती के पहले युग को कहा जाता है. ये कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि ऐसा गणित है, जो युगों की वैज्ञानिक गणना की तरह सटीक है. विज्ञान ने धरती पर जीव विकास के आधार पर युगों को 20वीं और 21वीं शताब्दी में विभाजित किया. 

39 लाख साल पहले के सतयुग को लेकर विज्ञान भी ये मानता है, धरती पर इंसान जैसे दिखने वाले जीवों की उत्पति करीब 40 लाख साल पहले हुई. इन्हें पैरेन्थ्रोपस कहा जाता था. 

धरती पर युगों को लेकर विज्ञान की अलग अवधारणा है. इसकी गणना हर सदी में नए-नए शोधों के हिसाब से बदलती रहती है. लेकिन इसकी कोई भी रिपोर्ट युगों के वैदिक कॉन्सेप्ट को खारिज नहीं करती. जैसा कि हमने आपको पहले बताया, विज्ञान भी धरती पर मानव जैसे जीव की उत्पति करीब 40 लाख साल पहले मानता है. उसी तरह हमारी वैदिक गणना धरती पर पहले मानव युग की शुरुआत करीब 39 लाख साल पहले बताती. वो युग था सतयुग. आज के कलियुग में जानना दिलचस्प होगा, कि तीन युग पहले सतयुग में दुनिया और इसके लोग कैसे थे.

भगवान विष्णु ने पहला अवतार कौन सा लिया

धरती पर 39 लाख साल पहले के जीवन को अगर संकेतों से समझें, तो सतयुग का दृश्य कुछ होगा. जीवन की सुगबुगाहट पूरी धरती पर सुनाई देने लगी थी. जमीन से लेकर जंगल और समुंदर हर जगह जीवन की रौनक दिखाई देने लगी थी. जीवन के इस लोक को वेदों में मृत्युलोक कहा गया है. यानी जो यहां जन्म लेता है, वो अपनी आयु के मुताबिक मृत्यु को प्राप्त होता है. ये विधान सिर्फ जीवों पर नहीं, इनके जन्मदाता कहे गए भगवान पर भी लागू होता है.

सतयुग में ईश्वर का पहला अवतार था- मत्स्य! वैदिक मान्यता के मुताबिक धरती पर जीवन की शुरुआत में ही हयग्रीव नाम के जलदैत्य का आतंक था. उसने सारे वेद अपने कब्जे में ले लिए थे. तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर हयग्रीव का वध किया और धरती को पहले जीवन प्रलय से बचाया था. सतयुग में ऐसे 4 अवतार और हुए थे भगवान विष्णु के. इन चार अवतारों में में पहला था मत्स्य अवतार, फिर कूर्म अवतार, इसके बाद वराह अवतार और आखिर में नरसिंह अवतार.
 
मत्स्य अवतार की तरह भगवान के चौथे अवतार नरसिंह की कथा भी काफी लोकप्रिय है. पौराणिक कथा के अनुसार, भाई हिरण्याक्ष का वध होने से हिरण्यकश्यप देवताओं से नाराज हो गया था और वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानने लगा था. उसने विजय प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया. उसे वरदान प्राप्त हुआ कि कोई नर या पशु मार नहीं सकता है. उसे घर या बाहर, जमीन या आसमान में नहीं मारा जा सकता है. 

चार चरणों में पूरा हुआ सतयुग

तब भगवान विष्णु ने आधे नर, आधे शेर का रूप धरकर हिरणकश्यप को वध किया और सतयुग को आखिरी राक्षसी प्रवृति से मुक्त कराया. सतयुग की शुरुआत के साथ ये ईश्वर का आह्वान था. धरती पर जब भी पाप का आतंक बढ़ेगा, तब वो अवतार लेंगे और हर युग में मानवीय मूल्यों की रक्षा करेंगे.

भगवान विष्णु के चौथे अवतार के साथ यही हुआ. सतयुग अपने नाम के मुताबिक सत्य की शक्ति से संचालित होने लगा. सतयुग में इन्हीं मूल्यों की वजह से इसे 4 युगों में सबसे शुद्ध और स्वर्ण युग कहा जाता है. इस युग में मुद्रा रत्नों की होती थी और पात्र सोने के. 

सतयुग का जीवन में कोई व्यापार नहीं था, बल्कि जीवन बिलकुल प्रकृति पर निर्भर था. सतयुग चारों युगों में सबसे लंबा भी रहा. वैदिक काल गणना के मुताबिक सतयुग 4 चरणों में पूरा हुआ. धरती पर सतयुग का काल 17 लाख, 28000 साल माना जाता है. इसमें मनुष्यों की उम्र 1 लाख साल की होती थी. इस युग के इंसानों की कद काठी भी काफी लंबी चौड़ी होती थी
वैदिक मान्यताओं के मुताबिक मनुष्यों की लंबाई 32 फीट होती थी. 

धरती का पूरा समय चक्र 4 युगों में बंटा

सतयुग के बारे में एक और बात दिलचस्प है, इस युग में इंसानों को अपने कर्म के मुताबिक  मृत्यु चुनने का अधिकार था. माना जाता है, कि जिस प्रलय के साथ कलियुग का काल खत्म होगा, उसके बाद सतयुग की वापसी होगी. मान्यताएं कहती हैं, सतयुग जैसा शुभ कोई युग नहीं. इसका शुभ काल हर युग में याद किया जाता है. आज भी जब शादियों का मौसम होता है, तो सतयुग के कैलेंडर को ही देखा जाता है.

जिस त्रेता युग में भगवान विष्णु का राम अवतार हुआ था, वो सतयुग का अगला काल था. लेकिन सतयुग वाले अगहन मास, जिसमें श्रीराम का विवाह हुआ, उसकी मान्यताएं आज भी हमारी परंपरा में दर्ज हैं. मार्गशीर्ष यानी अगहन, यानी सतयुग के शुरुआती महीने में आपके कर्म का फल हजार गुना होता है. ये सिर्फ मान्यता नहीं, बल्कि इसकी भी एक गणना है. ये गणना निर्धारित होती है युग की काल अवधि से.

वैदिक मान्यता के मुताबिक धरती का पूरा समय चक्र 4 युगों में बंटा है. सतयुग से इसकी शुरुआत होती है और कलियुग से इस कालचक्र का अंत होगा. विज्ञान के अनुमान के मुताबिक ब्रह्मांड की उम्र 13.7 अरब साल मानी जाती है. जबकि पृथ्वी की उम्र 4.6 अरब साल होती है. वैज्ञानिक गणना के मुताबिक 460 करोड़ साल पहले बनी धरती चार महाकल्पों से गुजरते हुए जीवन की सुगबुगाहट से भरी. धरती पर जीवन की पहली आहट आखिरी महाकल्प, यानी करीब 6 करोड़ साल पहले पहली सुगबुगाहट हुई.

महान ज्योतिषी आर्यभट्ट ने दी सटीक गणना

पहले जीव से इंसानों की उत्पति तक के 6 करोड़ सालों को भी विज्ञान छोटे छोटे 4 कल्पों और 7 युगो में बांटता है. उसी काल को हमारी वैदिक गणना 4 युगो में बांटती है. सतयुग- 4800 दिव्य वर्ष यानी 1 करोड़, 72 लाख साल, त्रेतायुग- 3600 दिव्य वर्ष यानी 1 करोड़, 29 लाख, 60 हजार साल, द्वापर युग- 2400 दिव्य वर्ष यानी 86 लाख 40 हजार साल और कलियुग- 1200 दिव्य वर्ष यानी 4 लाख 32 हजार साल.

इस गणना को आसानी से समझने के लिए आपको दिव्य वर्ष के बारे में बता दें- एक दिव्य वर्ष, यानी देवताओं का एक साल होता है, जिसमें 3600 मानव वर्ष होते है. दिव्य वर्ष का इस्तेमाल युगों को नापने के लिए एक इकाई के रूप में किया जाता है, जैसे वैज्ञानिक गणना में कल्पों और महाकल्पों का इस्तेमाल होता है. ज्योतिषीय गणना, महान गणितज्ञ आर्य भट्ट की देन मानी जाती है. ये गणना इतनी सटीक है कि सूर्य से पृथ्वी, शुक्र, बुद्ध की दूरी ठीक उतनी ही है, जिसकी पुष्टि 19वीं और 20वीं सदी का विज्ञान करता है. 

भारतीय वैदिक मानकों पर हुई इस गणना के मुताबिक 3 करोड़ 87 लाख साल धरती पर जीवन के पूरे हो चुके हैं. इस दौरान तीन युगों में तीन बार महाविनाश हुए, अब चौथे की बारी है. चौथे युग का अंत, यानी एक और प्रलय. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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