Success Story: ऐसी कहानी जो जगाएगी आगे बढ़ने का जज्बा, मां करती हैं सफाई-पिता चपरासी, बेटी ने पलट दी किस्मत
Success Story: रितिका के पिता नवल सुरीन उसी निजी कॉलेज में चपरासी की नौकरी करते हैं, जहां उनकी बेटी ने उनका नाम रोशन किया. रितिका की मां नोएडा में लोगों के घरों में काम करती हैं. वह बताती हैं कि शुरू में पेट भरने के पैसे भी नहीं थे, लेकिन मेहनत की और बेटी को पढ़ाया.
Ritika Surin Success Story: "टूटने लगे हौसले तो ये याद रखना, बिना मेहनत के तख्तों-ताज नहीं मिलते, ढूंढ लेते हैं अंधेरों में मंजिल अपनी, क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते." इस कथन को सच कर दिखाया है झारखंड की रितिका सुरीन ने. आज की इस सफलता की कहानी (Success Story) में हम आपके लिए लेकर आए हैं रितिका सुरीन की कहानी. ग्रेटर नोएडा के निजी कॉलेज में पढ़ने वाली रितिका को 20 लाख रुपये सालाना पैकेज का कॉलेज प्लेसमेंट (College Placement) मिला है.
रितिका को मिली इस सफलता के बाद उनके माता-पिता बेहद खुश हैं. बकौल नवल सुरीन, "मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी बेटी पढ़ेगी और इतना अच्छा करेगी. किसी तरह से कठिनाई में जीवन काट कर हमने बेटी को पढ़ाया है. हमें तो हिंदी भी ठीक से बोलने नहीं आती, लेकिन रितिका तो खूब अच्छी अंग्रेजी बोलती है."
पहले प्रयास में मिली बड़ी कामयाबी
कुछ दिनों पहले रितिका के कॉलेज में एक नामी साफ्टवेयर कंपनी प्लेसमेंट के लिए आई थी. उनकी कड़ी मेहनत और प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने पहले ही प्रयास में उन्हें 20 लाख रुपये का पैकेज मिला.
बहुत ही सामान्य परिवार से आती हैं रितिका
रितिका का प्लेसमेंट ऑटो डेस्क कंपनी में हुआ है. उनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. उनके माता-पिता परिवार के पालन-पोषण की खातिर 20 साल पहले झारखंड से नोएडा आए थे. उसके बाद यहां जा वापस न जा सकें और यहीं अपनी दुनिया बसा ली.
रितिका कहती हैं, "मुझे खुद को प्रूव करना है कि जो मौका मुझे मिला उसे मैं डिजर्व करती हूं. मैंने अपनी मां को कड़ी मेहनत करते देखा है. मैंने जिस कॉलेज से एमबीए किया, मेरे पिता वहीं चपरासी का का काम करते हैं. ये सब मैं कभी भूल नहीं सकती."
कॉलेज मैनेजमेंट ने किया भरपूर सहयोग
रितिका ने जिस निजा संस्थान से अपना एमबीए कंप्लीट किया, वहां के सीईओ का कहना है, "रितिका दूसरे स्टूडेंट्स के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं. छात्रा के अच्छे नंबर और पारिवारिक स्थिति को देखते हुए 50 प्रतिशत स्कालरशिप दी गई थी. साथ ही कोर्स की किताबें फ्री में अवेलेबल कराई गई थीं."