मुंबईः महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 (Maharashtra Assembly Elections 2019) से पहले शिवसेना के मुखपत्र सामना में शरद पवार और अजीत पवार पर निशाना साधा गया है.सामना में लिखा है, 'चुनाव आते ही राजनीति में बवंडर उठते रहते हैं. श्री शरद पवार ने महाराष्ट्र में ऐसा ही एक बवंडर लाया. इस बवंडर के तूफान का रूप लेने से पहले भतीजे अजीत पवार अचानक अदृश्य हो गए, विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और दूसरे दिन प्रकट होकर अपने अदृश्य होने की कहानी पत्रकारों को बताई....


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...यह सब बताते हुए अजीत पवार का गला भर आया. उनके आंसुओं का बांध फूट पड़ा और उन आंसुओं का छिड़काव बवंडर पर पड़ने से तूफान नहीं बन पाया.  ये सारा ‘नाटक’ सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर 4 बजे के बीच हुआ.'


शिवसेना ने आगे लिखा है. 'जब नाटक अपने शबाब पर था, तब पहले चरण का पर्दा गिरा और दूसरे चरण की जिम्मेदारी अजीत पवार ने संभाली. पहला चरण रोमांचित करनेवाला भव्य शरदनाट्य था और इसके आगे बढ़ने के दौरान ही अजीत पवार ने अपना रहस्यमय और ‘ट्रेजेडी’ वाला नाटक बीच में घुसाकर शरद पवार के जमे हुए नाट्य आविष्कार को बेरंग कर दिया. अजीत पवार ने आनन-फानन में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और अज्ञातवास में चले गए. अजीत पवार ने बड़े साहब को धोबी पछाड़ दे दिया.'



पार्टी ने आगे लिखा है, 'अजीत पवार बीजेपी में प्रवेश कर रहे हैं और जल्द ही अजीत पवार अपनी नई पार्टी की घोषणा करेंगे, यहां से लेकर मुलायम सिंह यादव की तरह पवार के परिवार में गृह कलह का दीमक लग गया है, ऐसी हवा चलाकर मीडिया ने पवार-नाट्य का तीसरा चरण भी शुरू कर दिया. नाटक समाप्त होने के बाद गायब हो चुके अजीत पवार ने प्रकट होकर आंखों में आंसू लिए अपने इस्तीफे की पटकथा सुनाई. राजनीति अत्यंत निचले स्तर पर जा पहुंची है, ‘ऐसी राजनीति से खेती भली’. शरद पवार ने अजीत पवार की यह इच्छा बताई और दूसरे दिन छोटे पवार ने वही ‘स्क्रिप्ट’ आगे बढ़ाई.'


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शिवसेना का कहना है, 'राज्य सहकारी बैंक घोटाले के मामले में अजीत पवार ने अपनी बात रखी और कहा कि अगर इसमें अजीत पवार का नाम नहीं होता तो ये ‘केस’ आगे नहीं बढ़ता. अजीत पवार सुबके, ये बात सही है. हम भी इंसान हैं और हमारी भी भावनाएं हैं.'


सामना में लिखा है, 'यदि शरद पवार का नाम आने से ही व्यथित होकर अपना इस्तीफा दिया था तो ये बात उन्होंने दूसरों को क्यों नहीं बताई? दूसरी बात ये कि इस्तीफा देने के चार दिन पहले से ही वे विधानसभा अध्यक्ष के संपर्क में थे और उन्होंने इस्तीफा देने का समय भी तय किया हुआ था. अगर उन्होंने शरद पवार पर लगे आरोपों से व्यथित होकर इस्तीफा दिया था तो संघर्ष के दिन वे पवार के साथ तो कहीं दिखे ही नहीं. लोगों के मन में ऐसे कई सवाल हैं. ये सब देखकर यही लगता है, ‘दादा, कुछ तो गड़बड़ है!’