नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) स्टारर फिल्म 'कागज' (Kaagaz) के निर्माता शुक्रवार 8 जनवरी को उत्तर प्रदेश के सीतापुर गांव में मोबाइल फिल्म थियेटर तकनीक का उपयोग करते हुए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग करेंगे. फिल्म की कहानी इसी गांव के लाल बिहारी मृतक की जिंदगी पर आधारित है जो 19 साल इस लड़ाई में गुजार देते हैं कि वो जिंदा हैं. 


मोबाइल फिल्म थियेटर तकनीक का किया जाएगा उपयोग


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हाल ही में इस बारे में बात करते हुए फिल्म के निर्देशक सतीश कौशिक (Satish Kaushik) ने कहा, 'ये जानकर मुझे खुशी हुई कि हमारी फिल्म 'कागज़' ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंच पाएगी, खासकर देश के उन अंदरूनी हिस्सों में जहां सिनेमा देखना अभी भी एक सपना है.' फिल्म की कहानी एक वास्तविक घटना पर आधारित है जो लाल बिहारी नाम के एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता की जिंदगी पर आधारित है. फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने एक बैंड मास्टर की भूमिका निभाई है, जो ये जानता है कि वह सरकारी रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर मर चुका है. 


ऐसी है फिल्म की कहानी


फिल्म 'कागज' (Kaagaz) की कहानी उत्तर प्रदेश के रहने वाले भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) (Pankaj Tripathi) की है जो एक बैंड चलाता है. अपनी आम सी जिंदगी को खास बनाने के लिए और परिवार के सपनों को पूरा करने के लिए भरत लाल कर्जा लेना चाहता हैं. इसी सिलसिले में वो लेखपाल के पास जाता हैं और अपनी जमीन के मांगता हैं, क्योंकि उन्हें कर्जा लेने के लिए बतौर सिक्योरिटी जमीन के कागज देने हैं. बस यहीं से शुरू होता है फिल्म में असली बवाल. अपने हक की जमीन की वजह से ही भरत लाल को अपनी जिंदगी की ऐसी सच्चाई का पता चलता है जिसकी वजह से उनके होश उड़ जाते हैं.


काबिलेतारीफ है पंकज त्रिपाठी का काम 


भरत लाल को पता चलता है कि वो सरकारी कागजों में कई साल पहले ही मृत घोषित कर दिए गए हैं. सरकारी कागज के एक टुकड़े ने भरत लाल की जिंदगी में ऐसा तूफान खड़ा कर दिया जिसकी वजह से उन्हें खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़नी पड़ी. इस लड़ाई में वकील साधूराम (सतीश कौशिक) (Satish Kaushik) भरत लाल का पूरा साथ देते हैं. तो क्या भरत लाल जिंदा होकर भी अपने जिंदा होने के सबूत को अदालत में पेश कर पाएंगे? इस सवाल के जवाब को जानने के लिए सतीश कौशिक की फिल्म 'कागज' (Kaagaz) जरूर देखिए.


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