Prem Nath Life: सौ से ज्यादा हिंदी फिल्मों में काम करने वाले अभिनेता प्रेमनाथ की आज पुण्यतिथि है. उन्हें गुजरे हुए बीस साल हो चुके हैं. अविभाजित भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में पैदा हुए प्रेमनाथ का पूरा नाम प्रेमनाथ मल्होत्रा था. विभाजन के बाद उनके माता-पिता सेंट्रेल प्रॉविंस के जबलपुर (Jabalpur, MP) में बसे थे. प्रेमनाथ को फिल्में देखने का शौक था और वह एक्टर बनना चाहते थे. जबलपुर में एम्पायर नाम का एक टॉकीज था, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था. प्रेमनाथ चोरी-छुपे टॉकीज में घुस कर फिल्में देखा करते थे. एक दिन जब वह चुपचाप अंदर घुस कर फिल्म देख रहे थे तो टिकट चेक करने वाला व्यक्ति उनकी कुर्सी के पास आया और टिकट मांगा. प्रेमनाथ ने कहा कि टिकट नहीं है. तब टिकट चेकर ने पूछा कि फिर अंदर कैसे आए, तो उन्होंने बताया दीवार फांद कर.


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हॉल से बाहर, फिल्मों का सफर
टिकट चेकर ने प्रेमनाथ को कुर्सी से उठाया. उसने प्रेमनाथ को झापड़ मारा और बाहर लाकर कहा कि जिस दीवार को फांद कर आए हो, उसे ही फांद कर बाहर जाना पड़ेगा. गुस्साए प्रेमनाथ ने वहां से जाने से पहले टिकट चेकर से कहा कि तुम देखना, मैं एक दिन इस टॉकीज को ही खरीद लूंगा. प्रेमनाथ अपने पिता की मर्जी के खिलाफ मुंबई चले गए, फिल्मों में हीरो बनने. उनके पिता पुलिस में अधिकारी थे. मुंबई (Mumbai) में प्रेमनाथ को पहली फिल्म मिली अजित (1948). इसी साल राजकपूर ने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा और अपनी पहली फिल्म बनाई, आग (Aag). इसमें प्रेमनाथ को भी अहम भूमिका मिली. 1952 में मधुबाला (Madhubala) के हीरो के रूप में उनकी फिल्म आई बादल, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. इसके बाद उनका करियर चल पड़ा और उन्होंने आगे चल कर अलग-अलग की भूमिकाएं की.


बैठे उसी कुर्सी पर
प्रेमनाथ के भाई राजेंद्र नाथ और नरेंद्र नाथ भी फिल्मों में आए. प्रेमनाथ की बहन कृष्णा से राज कपूर (Raj Kapoor) का विवाह हुआ. उनकी सौतेली बहन की शादी प्रेम चोपड़ा (Prem Chpora) से हुई. प्रेमनाथ का विवाह अपने दौर की चर्चित अभिनेत्री बीना राय से हुआ. खैर, इन सबके बीच फिल्मों में जमने के बाद प्रेमनाथ ने 1952 में उन्होंने एम्पायर टाकीज खरीद लिया. जब प्रेमनाथ ने टाकीज का उद्घाटन किया तो वैसे ही दीवार फांदकर टाकीज के अंदर गये, जैसे किशोरावस्था में उन्हें दीवार फांदकर बाहर जाने को मजबूर किया गया था. जब प्रेमनाथ ने यह टॉकीज खरीदा तब उन्हें झापड़ मार कर बाहर का रास्ता दिखाने वाला टिकिट चेकर तब भी वहीं काम कर रहा था. प्रेमनाथ ने उसे बुलाया. वह घबरा रहा था. प्रेमनाथ उसके सामने उसी कुर्सी पर जाकर बैठे, जहां से उन्हें उठाकर भगाया था. फिर उन्होंने खड़े होकर उस टिकिट चेकर को उसी कुर्सी पर बैठाया और फूलमालाएं पहनाई, मिठाई खिलाई. उन्होंने टिकिट चेकर को गले लगा कर कहा कि अगर तुमने मुझे झापड़ मार कर भगाया नहीं होता तो आज मैं इस टाकीज का मालिक नहीं बनता.


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