नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी का कार्डिएक अरेस्ट के कारण देहांत हो गया. कार्डिएक अरेस्ट दिल के दौरे से अलग होता है. डॉक्टरों के अनुसार, कार्डिएक अरेस्ट में व्यक्ति के जिंदा बचने की संभावनाएं काफी कम होती हैं. दूसरी ओर दिल के दौरे में जान बचने के चांसेस ज्यादा होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कार्डिएक अरेस्ट शरीर के सभी अहम अंगों को भी कुछ ही सेकंड में बुरी तरह प्रभावित करता है. वहीं दिल के दौरे में ये असर तुल्नातमक रूप से धीरे होता है.


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क्या होता है कार्डिएक अरेस्ट
कार्डिएक अरेस्ट या पूर्णहृदरोध दिल के अंदर वेंट्रीकुलर फाइब्रिलेशन पैदा होने के कारण होता है. कार्डिएक अरेस्ट दिल के दौरे से अलग है, हालांकि ये हार्ट अटैक की वजह हो सकता है. कार्डिएक अरेस्ट में दिल खून पंप करना बंद कर देता है, जिससे अन्य अंगों पर दबाव बढ़ जाता है. उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती. पीड़ित व्यक्ति की सांसे रुक जाती है. कुछ ही सेकंड में एक-एक कर अंग फेल होना शुरू हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति की कुछ ही सेकंड या मिनटों में मौत हो जाती है.


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कार्डिएक अरेस्ट के इलाज के लिए मरीज को कार्डियोपल्मोनरी रेसस्टिसेशन (सीपीआर) दिया जाता है, इससे दिल की धड़कन को बनाए रखने और व्यक्ति को सांस लेने में मदद मिलती है. कार्डिएक अरेस्ट के बाद व्यक्ति की जान बचाने के लिए मरीज को 'डिफाइब्रिलेटर' से बिजली का झटका दिया जाता है. इससे दिल की धड़कन को नियमित होने में मदद मिलती है.


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क्या होता है दिल का दौरा
दिल का दौरा तब होता है जब हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन युक्त रक्त का प्रवाह रुक जाता है. ये दिल की किसी धमनी में क्लॉट या किसी अवरोध के कारण हो सकता है. हार्ट अटैक होने पर दिल के भीतर की कुछ पेशियां काम करना बंद कर देती हैं. अधिकांश दिल के दौरे कोरोनरी हृदय रोग (सीएचडी) की वजह से होते हैं. कोरोनरी धमनियों की दीवारें भीतर के वसायुक्त पदार्थ के एक क्रमिक बिल्ड-अप से संकुचित हो जाती हैं. हार्ट अटैक में दिल की धड़कन बंद नहीं होती, लेकिन कार्डिएक अरेस्ट में दिल धड़कना बंद कर देता है. यही वजह है कि दिल के दौरे में मरीज के बचने की उम्मीद ज्यादा होती है.


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कार्डिएक अरेस्ट आने पर क्या करें


  • यदि किसी व्यक्ति को कार्डिएक अरेस्ट हुआ है तो उसे तुरंत सीपीआर दिया जाए. इसमें दोनों हाथों को सीधा रखते हुए मरीज की छाती पर जोर से बार-बार दबाव दिया जाता है.

  • मुंह के जरिए मरीज को हवा पहुंचाएं. इससे सांस को जारी रखने में मदद मिलती है.

  • मरीज को इलेक्ट्रिक शॉक देकर रिकवर किया जा सकता है. इसके लिए डिफिब्रिलेटर टूल का इस्तेमाल किया जाता है.


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  • डिफिब्रिलेटर टूल अस्पतालों में आम तौर पर मौजूद होता है. इस टूल के सहारे व्यक्ति को शॉक दिया जाता है, जिससे दिल पंप करना शुरू कर देता है.

  • दिल के शुरू होते ही खून दोबारा पंप होने लगता है, जिससे मरीज के बचने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं.